झटका

👤 Veer Arjun | Updated on:27 March 2024 5:57 AM GMT

झटका

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लोकसभा चुनाव से ठीक पहले लुधियाना के सांसद रवनीत बिट्टू का कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल होने का स्पष्ट संदेश है कि राजनीति में सत्ताधारी पार्टा जहां लक्षित दल बदल करवा रही है, वहीं कांग्रेस अपने नेताओं में आशावाद पैदा करने में वुछ भी नहीं कर पा रही है। कांग्रेस के वुछ नेताओं को छोड़कर जिन्हें वह पुंका कारतूस कहती है, ज्यादातर लोग ऐसे हैं जो युवा हैं और उनका राजनीतिक जीवन अभी काफी शेष है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअन्त सिह के पोते रवनीत सिह बिट्टू राजनीतिक दृष्टि से बहुत प्राभावशाली हैं और उनके इस कदम से कांग्रेस को नुकसान होना निाित है।

कांग्रेस छोड़ने वालों की सूची देखने से ही पता चलता है कि भाजपा मौके की तलाश में रहती है कि वह अपने प्रातिद्वंद्वी के किस नेता को अपनी टीम में शामिल करे। से ठीक पहले नवीन जिन्दल का कांग्रेस छोड़ना कांग्रेस को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाएगा जबकि राजनीति में इसका बहुत बड़ा संदेश यह गया कि एक ओर जहां कांग्रेस मात्र जाट-मुस्लिम वोटों पर निर्भर है, वहीं भाजपा गैर जाट-मुस्लिम को वेंद्रित करके अपनी रणनीति तय कर रही है। इसलिए वह पिछड़ा वर्ग और सवर्ण को साधने में लगी है।

इसके पहले मध्य प्रादेश में जिस सुरेश पचौरी की कांग्रेस ने इसलिए उपेक्षा की कि वह तो चुनावी राजनीति के लिए फीसड्डी साबित हो चुके हैं क्योंकि वह लोकसभा और विधानसभा का कोईं चुनाव नहीं जीते, भाजपा ने उन्हें भी अपनी पार्टी में शामिल कर उन्हें उपयोगी साबित करने में जुटी है। राज्य में यदि यादव मुख्यमंत्री हो तो वुछ ब्राrाण नेताओं का चेहरा तो जरूरी हो ही जाता है।

कांग्रेस के उपयोगी युवा नेताओं को भाजपा ने लक्ष्य निर्धारित करके अपनी पार्टी में शामिल किया है। इनमें तीन नाम बहुत महत्वपूर्ण हैं, पहले जितिन प्रासाद, दूसरे ज्योतिरादित्य सिधिया और तीसरे हैं आरपीएन सिह।

इन तीनों को पार्टी में शामिल करके भाजपा ने अपना दीर्घकालिक लक्ष्य पूरा किया। ये सभी नेता भाजपा के लिए जितने महत्वपूर्ण साबित हुए हैं, कांग्रेस के लिए इनकी गैर मौजूदगी उतनी ही अहितकर साबित हो रही है।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस अपने इन युवा और प्राभावशाली नेताओं को पार्टी में रोक क्यों नहीं पाती? इस सवाल का जवाब कांग्रेस खोजने का कष्ट भी नहीं करती बल्कि वह तो रटा रटाया जवाब देती है कि आयकर, सीबीआईं और ईंडी से डरकर उसके नेता भाजपा में शामिल हो जाते हैं। वास्तविकता यह है कि कांग्रेस में कोईं मंथन करने वाला नेता है ही नहीं क्योंकि वहां का मौहाल आज भी वही है जो चार दशक पहले था। कांग्रेस नेतृत्व आज भी अपने उसी मानसिकता से ग्रास्त हैं कि वही एकमात्र साध्य है जिसे जाना हो जाए जिसे जरूरत होगी वह आएगा।

बहरहाल जहां तक रवनीत सिह बिट्टू का सवाल है वह पंजाब में भाजपा के लिए काफी उपयोगी साबित हो सकते हैं क्यों जब वह कांग्रेस में भी थे तो भाजपा के मौजूदा प्रादेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ के साथ काम कर चुके हैं।

उनका संबंध कांग्रेस के पूर्व नेता और मुख्यमंत्री रहे कैप्टन अमरिन्दर से भी काफी अच्छे रहे हैं। किसान आंदोलन में भी बिट्टू ने किसानों का समर्थन तो किया किन्तु आंदोलन में शामिल असामाजिक खालिस्तानी तत्वों का विरोध भी किया था। कांग्रेस को लगता है कि जो उनकी भाषा में सरकार की आलोचना नहीं कर सकता, उसे कांग्रेस में रहने की जरूरत ही नहीं है। यदि सही में ऐसा है तो कांग्रेस का भविष्य बहुत दु:खद होने का संकेत है।

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