नासमझी

👤 Veer Arjun | Updated on:1 April 2024 4:59 AM GMT

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लोकसभा चुनाव में कच्चातिवु द्वीप की सच्चाईं सामने आते ही राजनीतिक सरगमा तेज हो गईं है। दरअसल शनिवार को तमिलनाडु प्रदेश के भाजपा प्रामुख के. अन्नामलाईं ने कांग्रोस पर आरोप लगाया कि 1975 तक यह द्वीप भारत का था किन्तु तत्कालीन प्राधानमंत्री इंदिरा गांधी ने परिणामों की परवाह किए बिना इस द्वीप को उपहार में श्रीलंका को दे दिया। यह द्वीप तमिलनाडु राज्य के समुद्र तट से मात्र 25 किमी की दूरी पर है। अन्नामलाईं ने शनिवार को जो आरोप लगाया था उसका उद्देश्य यह था कि राज्य के मछुआरे जब मछली पकड़ने समुद्र में जाते हैं तो गलती से वह उस द्वीप के तट पर चले जाते हैं और श्रीलंका के तटरक्षक उन्हें गिरफ्तार कर लेते हैं। लेकिन यह आरोप मात्र एक राज्य के एक मछुआरा वर्ग के वोटरों का समर्थन करने तक ही सीमित नहीं रहा। अब इस द्वीप के बहाने कांग्रोस सरकारों की क्षेत्रीय सुरक्षा एवं भू-राजनीति में संवेदनहीनता व दिशाहीनता का काला अध्याय खुलने लगा है। रविवार को विदेश मंत्री डा. एस. जयशंकर ने जहां कांग्रोस की सरकारों पर तंज कसा वहीं प्राधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी मेरठ की अपनी रैली में कांग्रोस को आईंना दिखाते हुए अदूरदशा पाटा साबित करने की कोशिश की।

1975 में आपातकाल के दौरान तो सारी विपक्षी पार्टियों के शीर्ष नेता जेल में थे इसलिए कांग्रोस कदाचित यह आरोप न लगा सके कि इस पैसले में विपक्ष भी शामिल था किन्तु इतना जरूर है कि अब उसे देश के सीमावता क्षेत्रों में विवादों पर जवाब तो देना ही पड़ेगा। जिन मामलों में गलतियां हुईं हैं चाहे वह जम्मू-कश्मीर में कबाइलियों के साथ पाक सेना को रोकने के लिए अक्टूबर 1948 में देर से लिया गया पैसला हो अथवा अन्तिम रूप से उन्हें राज्य से बाहर निकालने के पहले ही बिना सोचे समझे युद्ध विराम की घोषणा हो। तिब्बत के मामले में ढुलमुल नीति और सियाचिन सहित सैकड़ों किमी चीन के हाथ गंवाने के लिए कांग्रोस की पूर्व सरकारों को जवाब नहीं देते बना था। आज श्रीलंका को एक द्वीप देने मात्र की बात नहीं रह गईं है।

बात यह है कि चीन के हाथों की कठपुतली श्रीलंका मदद तो हमसे लेता है और चीन की जासूसी जहाज को भारत के खिलाफ जासूसी करने के लिए अपने समुद्री क्षेत्र में प्रावेश करने की अनुमति देता है। श्रीलंका तो ‘बैठूं तेरी गोद में उखाड़ू तेरी दाढ़ी’ का खेल खेल रहा है और हमारे नेताओं ने बिना वुछ सोचे समझे ही एक द्वीप दान में देकर दुश्मन को घर में बैठा लिया। अब कांग्रोस जवाब भले न दे, आलोचना तो बर्दाश्त करना ही पड़ेगा।

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