अभिशाप
केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआईं) ने सोशल मीडिया विज्ञापनों के माध्यम से नि:संतान दंपतियों को बच्चे बेचने वाले सात लोगों को गिरफ्तार करके बाल तस्करों के एक गिरोह का भंडाफोड़ किया और अभियान के दौरान दो शिशुओं को बचाया भी। असल में बाल तस्कर अस्पताल से ही बच्चों को गायब करने की वारदात को बहुत दिनों से करते आए हैं। वुछ समय पहले भी दिल्ली पुलिस ने कार्रवाईं की थी किन्तु जब नेटवर्क स्थापित हो जाता है तो उसे तोड़ पाना आसान नहीं रह जाता। बाल तस्करों का संबंध अस्पताल के निचले कर्मचारियों और अनाथालय के प्राबंधकों से भी होता है। यही कारण है कि बिना गहन और सूक्ष्म जांच के ऐसे लोगों को पकड़ पाना संभव नहीं है। इस तरह की बाल तस्करी में शामिल शातिर अपराधियों के खिलाफ कार्रवाईं से पहले कितने परिवार के बच्चों को गायब किया गया होगा और कितने ही परिवारों पर विपत्ति के पहाड़ गिरे होंगे।
सीबीआईं की इस कार्रवाईं से संगठित अपराधियों के इस नेटवर्व को बेनकाब तो किया जा सका किन्तु अभी और कितने नेटवर्व सक्रिय होंगे इसका पता तो जांच के बाद ही चलेगा। लेकिन दोष सिर्प बाल तस्करों का ही नहीं है, दोषी ने लोग भी हैं जो गलत तरीके से किसी दूसरे की संतान हड़पना चाहते हैं। लब्बोलुआब यह है कि जिन नि:संतान लोगों को शिशुओं की जरूरत है, उन्हें भी तो वैधानिक तरीके से बच्चा गोद लेने की प्रावृत्ति विकसित करनी चाहिए। यदि चोरी छिपे बच्चा हासिल करने वाले ही नहीं रहेंगे तो बाल तस्करी तो अपने आप ही समाप्त हो जाएगी।