मुहिम

👤 Veer Arjun | Updated on:17 April 2024 5:30 AM GMT

मुहिम

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छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में मंगलवार को सुरक्षा बल के जवानों को उस वक्त बड़ी सफलता मिली जब उन्होंने 29 नक्सलियों को मार गिराया। ये ऐसे खूंखार नक्सली आतंकी थे जिन्होंने असंख्य निदरेष लोगों की जान ली और संपत्तियों को नष्ट किया था। ये नक्सली लोगों की सुरक्षा में तैनात सीआरपीएफ के जवानों को भी घात लगाकर निशाना बनाते हैं। दरअसल नक्सली अल्ट्रा वामपंथी विचारधारा से प्राभावित माने जाते हैं जो खुद को विपन्न वर्ग का मसीहा बताते हैं और संपन्न वर्ग का दुश्मन। किन्तु जब ये लोग गरीब बच्चों का स्वूल जलाते हैं, सड़क बनाने वाले मजदूरों को मारते हैं और बात न मानने पर सरकारी कर्मचारियों एवं अधिकारियों को यातनाएं देते हैं, उससे तो नहीं लगता कि उनके हृदय में गरीबों के प्राति किसी भी तरह की संवेदना होगी।

सच तो यह है कि इन नक्सली आतंकियों की मदद हमारे समाज के वे बुद्धिजीवी करते हैं जिन्हें व्यवस्था से नाराजगी है और वे किसी तरह व्यवस्था के खिलाफ बगावत की मशाल बुझने नहीं देना चाहते। दुर्भाग्य से नक्सलियों को मानसिक खाद-पानी देने वाले विघटनकारी प्रावृत्ति के बुद्धिजीवियों की राजनेता भी मदद करते हैं। जब भी राज्यों और केन्द्र सरकार में वामपंथी राजनेताओं का प्राभाव रहा है तो ऐसे बारूदी बुद्धिजीवियों को आसानी से संरक्षण भी मिल जाता है। ये बुद्धिजीवी नक्सलवादी हिसा के लिए सरकारी तंत्र को जिम्मेदार मानते हैं और यही घुट्टी वह नक्सलियों को भी पिलाते हैं। समाज के प्राति सबसे बड़ा षडांत्र यह करते हैं कि नक्सली समस्या को सामाजिक-आर्थिक समस्या का कारण साबित करने लग जाते हैं। उनके इसी षडांत्र के शिकार हमारे वे राजनेता बन जाते हैं जो वास्तविकता से अनभिज्ञ होते हैं। मौजूदा केन्द्र सरकार ने नक्सली समस्या को विशुद्ध रूप से संगठित सामाजिक एवं राज्य के प्राति अपराध माना है और अब इसके नतीजे आने भी शुरू हो गए हैं।

केन्द्र और राज्य सरकारें मिलकर आत्मसमर्पण कर चुके नक्सलियों के पुनर्वास के लिए तमाम कल्याणकारी योजनाएं भी चलाते हैं किन्तु नक्सली आतंकियों में पुलिस के प्राति अविश्वास रहता है, इसलिए सरकार द्वारा चलाईं जा रही पुनर्वास की तमाम योजनाओं का उतना असर नहीं हो पा रहा है जितना की होना चाहिए।

असल में 1960 के दशक की यह नक्सलवादी बीमारी यदि 2024 तक जीवित है तो निाित रूप से या तो सरकार की नीतियों में कमी रह गईं या फिर जनता में समर्थन न मिलने के बावजूद नक्सलियों की ढिठाईं ही जिम्मेदार है। नक्सलियों का जो विकराल रूप देखने को मिलता है उसके लिए हमारे सुरक्षाकमा ही जिम्मेदार हैं। सुरक्षा बलों में वुछ काली भेड़े होती हैं जो लालच के वशीभूत होकर अपने ही हथियार नक्सली आतंकियों को सौंप देते हैं। बाद में उन्हें ही नक्सलियों के हाथों मरना पड़ता है।

वेंद्रीय गृह मंत्रालय राज्यों में सशस्र पुलिस बल और वेंद्रीय अर्धसैनिक बलों के साथ मिलकर तमाम ऐसे अभियान चलाती है जिससे कि जब एक राज्य के प्राभावित क्षेत्र में नक्सलियों को निशाना बनाया जाए तो वह दूसरे राज्य के प्राभावित क्षेत्र में घुसकर जान न बचा पाएं। केन्द्र व राज्य सरकारों ने नक्सलियों की हकीकत बताकर आम जनता को भी जागरूक कर रही है ताकि वे खुद नक्सलियों के खिलाफ खड़ा होने का साहस कर सके।

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