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उदासीनता

👤 Veer Arjun | Updated on:21 April 2024 6:07 AM GMT

उदासीनता

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शनिवार को पंजाब के दो नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए। इनमें दोनों ही कांग्रेस के प्राभावशाली नेता रहे हैं। इनमें एक हैं तजिन्दर बिट्टू जो पंजाब प्रदेश कांग्रेस के महासचिव, पार्टी के राष्ट्रीय सचिव रहे हैं और हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के सह प्राभारी थे। दूसरी हैं करमजीत कौर जो सांसद संतोख चौधरी की पत्नी हैं। संतोख चौधरी की मौत कांग्रेस नेता राहुल गांधी के न्याय यात्रा के दौरान हुईं थी फिर रिक्त हुईं जालंधर की संसदीय सीट से उपचुनाव में कांग्रेस ने करमजीत कौर को उतारा था।

असल में पंजाब में जिस तरह जमीनी नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं, वह निाित रूप से पंजाब कांग्रेस के लिए ही चिन्ता का विषय नहीं हो सकता। इसके लिए कहीं न कहीं पार्टी के वेंद्रीय नेतृत्व की उदासीनता भी जिम्मेदार है। कांग्रेस को यह समझ नहीं आ रहा है कि जितने लोग पार्टी छोड़कर गए हैं वे पूंके कारतूस नहीं हैं। वे जमीन से जुड़े और अनुभवी तथा ज्यादा दिन राजनीति करने वाले लोग हैं। हैरानी की बात तो यह है कि जिनकी तीन-तीन पीढ़ियां कांग्रेस से जुड़ी थीं उन्होंने तो पार्टी छोड़ी ही साथ ही पार्टी के दलित और जाट नेताओं के जाने से भी पार्टी में बेचैनी का माहौल नहीं दिख रहा है। पंजाब में जनसंख्या की दृष्टि से दलित सर्वाधिक हैं तो प्राभावशाली जाति के रूप में पंजाब में जाट सिख सबसे ज्यादा दबदबा रखते हैं। कांग्रेस को दलित और जाट दोनों ही छोड़ते जा रहे हैं। पहले राज्य में आम आदमी पार्टी (आप), अकाली दल और कांग्रेस में ही सिख नेता और कार्यंकर्ता होते थे। अब सिख भाजपा में चले गए। मतलब यह कि राज्य में आम आदमी पार्टी, अकाली और भाजपा के बीच संघर्ष होने की संभावना बन रही है। भाजपा जानबूझकर रणनीति के तहत कांग्रेस के जाट और दलित आधार को खोखला करने पर तुली है ताकि वह उसके द्वारा खाली स्थान को भाजपा हासिल कर सके।

दुर्भाग्य की बात तो यह है कि इस तरह की भगदड़ के बाद भी नवजोत सिह सिद्धू और प्राताप सिह बाजवा के बीच लड़ाईं सड़क पर है। बहरहाल यदि कांग्रेस पार्टी जल्दी से नहीं चेती तो पंजाब में यह पार्टी चौथे स्थान पर चली जाएगी। राज्य के लिए कांग्रेस का मजबूत होना जरूरी था क्योंकि आप और अकाली दल अतिवादी सिख नेताओं पर निर्भर करते हैं। कांग्रेस में सिख नेता ही अकाली दल को संतुलित करने में सक्षम थे। किन्तु अब जिस तरह कांग्रेस पार्टी में सिखों का पलायन और भाजपा में शामिल होने का सिलसिला शुरू हुआ है वह कांग्रेस के लिए पंजाब में खतरे की घंटी है। मामला गंभीर इसलिए भी है क्योंकि पार्टी छोड़ने वाले ज्यादातर लोग वे हैं जिनके राहुल गांधी अथवा प््िरायंका व सोनिया के साथ अच्छे संबंध थे।

कांग्रेस से जनाधार वाले नेताओं के निकलने पर प्राय: प्रावक्ता सफाईं देते हैं कि प्रावर्तन निदेशालय, वेंद्रीय जांच ब्यूरो अथवा इनकम टैक्स के छापों के डर से उनके नेता ने दल बदल लिया। लेकिन ये जो कांग्रेस की रीढ़ की हड्डी पार्टी छोड़ रहे हैं, उन पर तो किसी तरह का कोईं मामला ही नहीं है। लब्बोलुआब यह है कि कांग्रेस के जिन नेताओं को अपने राजनीतिक भविष्य की चिन्ता दिख रही है वे कांग्रेस के भविष्य की चिन्ता नहीं कर रहे हैं क्योंकि कांग्रेस नेतृत्व उनकी चिन्ता दूर करने के लिए गंभीर ही नहीं है।

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