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235 से अधिक नदियों के पवित्र जल होगा से सरस्वती जलाभिषेकः डॉ. रामेन्द्र सिंह

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:11 Jan 2018 2:24 PM GMT
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कुरुक्षेत्र, (अमित गर्ग)। हरियाणा सरस्वती महोत्सव-2018 के सरस्वती जलाभिषेक कार्यत्रढम के संयोजक डॉ. रामेन्द सिंह ने बताया कि देशभर की 235 से अधिक नदियों के पवित्र जल से सरस्वती जलाभिषेक कार्यत्रढम किया जाएगा। ये कार्यत्रढम 18 जनवरी को सरस्वती के उद्गम स्थल आदिबदी और 22 जनवरी को सरस्वती तीर्थ पिहोवा में आयोजित होंगे। उन्होंने बताया कि सांस्कृतिक महत्व के नए दायित्व को स्वीकार करते हुए मात्र एक मास के पयास के परिणामस्वरूप विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के पूरे देश के कार्यकर्ताओं के सहयोग से देश की पमुख नदियों को चिन्हित कर वहां स्थित व्यक्पियों से सम्पर्क कर जल मंगाने के पयास पारंभ किए थे, जिनकी सपलता के रूप में आज तक 235 नदियों का जल एकत्रित हो गया है जबकि देशभर की अन्य नदियों से जल आने का सिलसिला जारी है। इससे लगता है कि यह आंकड़ा और बढ़ेगा। इस नए दायित्व की जिम्मेवारी सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड द्वारा उन्हें सौंपी गई है। इस पवित्र काम का निमित्त बनने के लिए उन्होंने कुरुक्षेत्र की उपायुक्प, सरस्वती बोर्ड के अधिकारियों और हरियाणा के मुख्यमंत्री का धन्यवाद किया। डॉ. रामेन्द सिंह ने बताया कि इस पकार के सांस्कृतिक महत्व के कार्य चाहे देशभर से लोगों को कुरुक्षेत्र बुलाना हो अथवा संपूर्ण देश से सांस्कृतिक महत्व के जागरूकता के कार्यत्रढम एवं कार्यशालाओं का आयोजन करना हो, इन चुनौतियों को सहर्ष स्वीकार करते हुए उन्हें यथासमय पूर्ण करने का पयास रहता है। सरस्वती हैरीटेज बोर्ड टूरिज्म कमेटी के सदस्य, राष्ट्रीय समिति, कल्चरल मैपिंग ऑप इंडिया, भारत सरकार के सदस्य एवं कृष्णा सर्किट कमेटी भारत सरकार के सदस्य डॉ. रामेन्द सिंह ने बताया कि वे इन महत्वपूर्ण जिम्मेवारियों का निर्वाहन करते हुए कुरुक्षेत्र का महत्व संपूर्ण देश में पमुखता से उजागर करते रहते हैं।

देशभर के अनेक स्थानों पर नदी से पाप्त जल संग्रह करते समय विधिवत पूजन, नगर में शोभायात्रा एवं समारोहपूर्वक जल के कुरुक्षेत्र भेजने के कार्यत्रढम विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान के आचार्य, पधानाचार्य एवं छात्र भैया-बहिनों की सहभागिता से आयोजित हुए हैं।
डॉ. रामेन्द सिंह ने बताया कि अतीत में सरस्वती नदी अपने वर्तमान स्वरूप के बिल्कुल विपरीत थी। कालांतर में बहने वाली सरस्वती नदी के विशाल अकल्पनीय स्वरूप का वर्णन है-जो पर्वतांचल में उपजती, पहाड़ी बाधाओं को भेदकर गर्जन-तर्जन करती हुई मैदान में उतरती थी और अन्त में समुद में जा मिलती थी। अनेकों धाराओं से मिलकर बहने वाली सरस्वती के आज के स्वरूप को देखकर इसके विलुप्त होने पर जितनी आसानी से यकीन हो जाता है, उतना ही अतीत में इसके पवाहमान वेग और इसके किनारे पले-पूले जनजीवन को लेकर तमाम तरह के कयासों को सिद्ध करना एक बड़ी चुनौती रही। जिसे हमारे विद्वानों, वैज्ञानिकों ने पयोग शोध के दौरान मिले साक्ष्य, सबूतों, मान्यताओं के आधार पर पूरी तरह नकार कर यह सिद्ध कर दिया है कि सिंधु-गंगा का यह नदीविहीन मैदान हजारों साल पहले बारहमासी बहने वाली सदानीरा नदी सरस्वती से सराबोर था जो आज अंतःसलिला हो गई है।

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