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चम्बल नदी के पुल पर पहुंचा पानी, एक सैकड़ा गांव बाढ़ की चपेट में

👤 Veer Arjun | Updated on:16 Sep 2019 4:05 AM GMT

चम्बल नदी के पुल पर पहुंचा पानी, एक सैकड़ा गांव बाढ़ की चपेट में

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मुरैना। चम्बल नदी में निरंतर बढ़ रहे पानी ने तटीय क्षेत्र के एक सैकड़ा से अधिक गांवों को घेर लिया है। प्रशासन ने एक दर्जन से अधिक गांव में रेस्क्यू कर 5 सैकड़ा से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया है। ग्रामीण अपने सामान को पानी से सुरक्षित रखने के लिये मकानों की छतों पर पहुंचा रहे हैं। वहीं आगरा-मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 3 पर निर्मित पुराने पुल के ऊपर से पानी निकल रहा है। प्रशासन व पुलिस ने रेस्क्यू दल भी तैनात कर दिये हैं।

प्रदेश के मालवा अंचल तथा राजस्थान के कई क्षेत्रों में हो रही वर्षा का प्रभाव चम्बल नदी में दिखाई दे रहा है। कोटा बेराज से निरंतर छोड़े जा रहे 6 लाख क्यूसेक पानी का प्रभाव चम्बल नदी में दिखाई दे रहा है। नदी के तटीय क्षेत्रों में 2-2 किलोमीटर तक पानी पहुंच गया है। सबसे ज्यादा प्रभाव अम्बाह तथा सबलगढ़ तहसील के गांवों में हैं। अम्बाह तहसील के एक दर्जन गांवों में प्रशासन ने रेस्क्यू कर ग्रामीणों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया है। प्रशासन ने ग्रामीणों को कुथियाना गांव की पंचायत भवन, आंगनबाड़ी केन्द्र पर पहुंचाया है। कुथियाना गांव के ग्रामीणों द्वारा अपने ट्रेक्टर ट्राली लगाकर डूब में आये परिवारों की दैनिक जीवन उपयोग सामग्री भरकर लाई जा रही है। अम्बाह तहसील के कंचनपुर, घेर तथा पोरसा तहसील के इन्द्रजीत का पुरा, सुखध्यान का पुरा के एक दर्जन मौजा पुरा को खाली कराया गया है। इनके भोजन व दवाईयों की व्यवस्था भी की गई है। इन गांवों में पानी निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। इससे फसल भी डूब रहीं हैं। सबसे अधिक नुकसान बाजरा की फसल में हो रहा है। प्रशासन द्वारा डूब क्षेत्र में आये ग्रामीणों की सुरक्षा व सुविधायें दिये जाने का दावा तो कर रहा है, लेकिन प्रशासन द्वारा पानी से घिरे गांव में से ग्रामीणों को बाहर लाया गया है। वह सडक़ किनारे ही रात काटने को मजबूर है, क्योंकि परिवार के साथ उनका पशुधन भी होने से व्यवस्थायें नहीं हो पा रही हैं। देर शाम तक सडक़ किनारे प्लास्टिक की त्रिपाल लगाकर रात काटने की व्यवस्थायें कीं गईं हैं। पानी खेतों में भी भरा हुआ है। नदी का पानी बढ़ता हुआ गांवों की तरफ आता है तब इन ग्रामीणों को ऊपर की ओर जाना ही पड़ेगा। इस परिवार के सदस्य भगवान सिंह ने बताया कि गांव के शासकीय अशासकीय व्यवस्थाओं में पशुओं के लिये कोई व्यवस्था नहीं है, इसलिये उनके परिवार को अपने घरेलू सामान व पशुओं के साथ सडक़ किनारे रात काटने को मजबूर होना पड़ रहा है।

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