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जनता की जान सबसे सस्ती, पर फिक्र किसे?

👤 Veer Arjun | Updated on:15 Sep 2019 5:50 AM GMT

जनता की जान सबसे सस्ती, पर फिक्र किसे?

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जनता की जान सबसे सस्ती, पर फिक्र किसे?

-अनिल बिहारी श्रीवास्तव

आखिर हो क्या रहा है? अब नए मोटर व्हीकल एक्ट को लेकर राजनीति शुरू हो गई। चौंकाने वाली बात यह है कि कुछ भाजपा शासित राज्य भी यातायात नियम उल्लंघन पर बढ़ाए गए जुर्माने के खिलाफ हैं। गुजरात में जुर्माना राशि में 50 प्रतिशत तक की कमी की घोषणा कर दी गई। विजय रुपाणी सरकार के फैसले पर आश्चर्य हुआ। कारण यह कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा गृहमंत्री अमित शाह दोनों ही गुजरात से हैं। क्या मुख्यमंत्री रुपाणी ने यह कदम उठाने से पहले मोदी और शाह को इसकी जानकारी दे दी थी? गुजरात के बाद भाजपा शासित उत्तराखंड ने भी जुर्माने की दरें कम कर दी। महाराष्ट्र नया कानून फिलहाल लागू नहीं करने की मंशा जता चुका है। मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के अनुसार जुर्माने की दर बहुत अधिक है। फडणवीस सरकार ने जुर्माना दर कम करने के लिए सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को पत्र लिखा है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा जुर्माना दरों को बहुत अधिक बता चुके हैं। सड़क दुर्घटनाओं और उनमें मौतों के मामले में सबसे आगे रहनेवाले उत्तरप्रदेश ने जुर्माना राशि कम करने पर विचार शुरू कर दिया है। माना जा रहा है कि वहां समाजवादी पार्टी के सियासी खेल को नाकाम करने के लिए योगी सरकार जुर्माना राशि कम कर सकती है। नए मोटर व्हीकल एक्ट के जुर्माना प्रावधानों के विरोध में भाजपा शासित राज्यों के फैसलों से क्या संदेश जा रहा है?

यहां दो सवालिया विचार आते हैं। एक- क्या एक्ट के जुर्माना प्रावधानों पर कांग्रेस शासित राज्यों के साथ-साथ ओडिशा और पश्चिम बंगाल की सरकारों का रुख सही माना जाए? दो- क्या केन्द्र सरकार ने व्यावहारिक पक्षों पर विचार किए बगैर ही बहुमत के बूते विधेयक पारित करवा लिया? कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दल जिस शैली की राजनीति पर उतर आए हैं, उसको देखते हुए दोनों ही स्थितियों में जुर्माने का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी को भारी पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में यदि केन्द्र सरकार दो कदम पीछे ले लेती है तो आश्चर्य नहीं होगा।

लेकिन, एक्ट के विरूद्ध राजनीति से गडकरी खुश नहीं हैं। पूरी नेकनीयत के साथ मोटर व्हीकल एक्ट में किए गए सुधारों के विरुद्ध दुष्प्रचार से वह खिन्न हैं। उनकी यह बात सही है कि लोगों की जान बचाना अकेले उनकी जिम्मेदारी नहीं है।जुर्माना घटाने वाले मुख्यमंत्री नतीजों की जिम्मेदारी लें। गडकरी का कहना सही है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री के रूप में उनका प्रदर्शन शानदार रहा है। उनकी चिंता सड़कों पर हर दिन होने वाली हजारों मौत को लेकर है। यातायात नियमों में सख्ती और उनके उल्लंघन पर भारी जुर्माने के प्रावधानों का मकसद लोगों को नियम कानून का पालन करने पर विवश करना है। ताकि, हर साल सड़कों पर हो रही हजारों मौतों को रोका या कम किया जा सके। गडकरी का लक्ष्य सन 2020 तक सड़क द़र्घटनों में 50 प्रतिशत की कमी लाने का है। यह कैसे संभव हो पाएगा? वोट के सौदागरों को लोगों की जान से अधिक चिंता वोटों की है। गडकरी ने तो ऐसा काम कर दिखाया जो बरसों से लटका था। बड़ा जटिल मिशन माना जाता था। सन 2017 में महाराष्ट्र, विशेषकर पुणे के लगभग 70 प्रबुद्ध नागरिकों, उद्योगपतियों, नौकरशाहों और राजनेताओं ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर देश में बड़ी संख्या में होने वाली सड़क दुर्घटनाएं और उनमें मौतों पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए जरूरी कदम उठाने का अनुरोध किया था। भारत में हर साल लगभग पांच लाख सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। डेढ़ लाख से अधिक मौतें हो जाती हैं। इतनी ही संख्या में लोगों को गंभीर किस्म की चोटें आती हैं। हजारों लोग विकलांग हो जाते हैं। एक्ट के संशोधित जुर्माना प्रावधानों के विरोध में झण्डा उठाने वाले गैर भाजपा शासित राज्यों पर नजर डालना जरूरी लग रहा है। मध्य प्रदेश में हर साल 50 हजार तक छोटी-बड़ी दुर्घटनाएं हो जाती हैं। राजस्थान में 22 हजार और पंजाब में 6 हजार से अधिक सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। पश्चिम बंगाल में हर साल लगभग 11 हजार सड़क दुर्घटनाएं हो रही हैं। ओडिशा में यह संख्या 10 हजार से कम नहीं है। जुर्माना घटाने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी को इस बात की जानकारी अवश्य होगी कि गुजरात में हर दिन औसतन 20 मौतें सड़कों पर होती हैं। दुर्घटनाओं के शिकारों में लगभग 65 प्रतिशत हिस्सा 18 से 35 वर्ष आयु समूह के युवकों का है।

ऐसा नहीं कि दुर्घटनाओं में केवल वाहन चला रहे या वाहन पर सवार लोग ही मारे जाते रहे हैं। किसी अन्य की गलती अथवा लापरवाही के चलते होने वाली दुर्घटनाओं में बड़ी संख्या में शिकार बेकसूर लोग, यहां तक कि राहगीर हो रहे हैं। मशीनी नाकामी से होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या बहुत अधिक नहीं है। अधिकांश मामलों में दुर्घटनाओं की वजह इंसानी लापरवाही, गलती या फिर बड़ी चूक पाई गई है। सड़क सुरक्षा पर समय- समय पर किए गए अध्ययनों के अनुसार दुर्घटनाओं में लाखों मौतों के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं। मसलन, दोपहिया वाहन चालाकों द्वारा हेलमेट नहीं पहनना, कार सवारों द्वारा सीट बेल्ट नहीं बांधना, सड़क अनुशासन की धज्जियां उड़ाई जाना, नियमों का उल्लंघन और उनकी अनदेखी, ओवर लोडिंग, शराब पीकर वाहन चलाने और अनावश्यक रूप से तेज गति इत्यादि।

एक सितम्बर से मोटर व्हीकल एक्ट में संशोधित प्रावधान लागू होने के बाद शुरू हुई कार्रवाही और सामने आ रहे मामले साबित करते हैं कि देश में नियम-कायदों की परवाह लोग करते ही नहीं हैं। उन्हें न अपनी जान की परवाह है, न ही वे यह समझना चाहते हैं कि उनके कारण किसी अन्य का जीवन संकट में पड़ सकता है। पिछले दस-पंद्रह दिनों में देश में हेलमेट की बिक्री में 60 प्रतिशत की वृद्धि ने साबित कर दिया कि नियम होने के बावजूद बड़ी संख्या में दोपहिया वाहन चालक हेलमेट को बोझ समझते रहे हैं। जुर्माने के डर से ही सही लेकिन अब ऐसे लोग हेलमेट का उपयोग तो करेंगे। लाखों लोग ड्राइविंग लाइसेंस के बिना ही सड़कों पर धमाचौकड़ी मचाते रहे हैं। ड्राइविंग लाइसेंस, वाहन का बीमा और प्रदूषण जांच के लिए उमड़ती भीड़ लोगों की मानसिकता उजागर कर रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार अब तक लगभग 70 प्रतिशत दोपहिया वाहन बिना इंश्योरेंस के सड़कों पर दौड़ते रहे हैं। हजारों वाहनों की नंबर प्लेट पर रजिस्ट्रेशन नंबर तक नियमानुसार नहीं लिखे गए हैं। गत दिवस नोएडा पुलिस ने ऐसे 1400 वाहनों के चालन काटे जो गलत ढंग से नंबर प्लेट लगाए हुए थे। लोगों ने नंबर प्लेट पर गुज्जर, ठाकुर, ब्राह्मण, प्रेस, पुलिस और अन्य नाम लिखवा रखे थे। नए नियमों के तहत की जा रही पुलिस कार्रवाई के चलते सामने आ रहे मामलों से आंखें चौड़ी हुई जा रही हैं। स्कूटी की मौजूदा कीमत से लगभग दोगुना चालान काटा जाना काफी चर्चित मामला रहा। एक आटो ड्राइवर पर 47,500 जुर्माने की खबर सुर्खियों में रही। दिल्ली में एक ट्रक पर दो लाख से अधिक का जुर्माना किया गया है। लोग जुर्माना राशि को लेकर रोना रो रहे हैं लेकिन यह देखने को तैयार नहीं हैं कि ऐसे वाहन सड़कों पर दौड़ाने वाले लोग स्वयं और दूसरों की जिंदगी कितने जोखिम में डालते रहे हैं। एक्ट के विरूद्ध राजनीति बहुत ही शर्मनाक और गैरजिम्मेदाराना हरकत है। यदि मोटर व्हीकल एक्ट में सजा और जुर्माने के प्रावधानों को कमजोर बना दिया गया तब इस कानून को बनाने का मतलब क्या रह जाएगा? कौन ऐसे कानून की परवाह करेगा? क्या लोग यूं ही सड़कों पर मरते रहेंगे, कभी खुद की गलती के कारण या कभी किसी दूसरे की लापरवाही का दण्ड उन्हें भोगना होगा? अंत में एक ताजा ट्वीट का उल्लेख जरूरी लग रहा है। उसमें कहा गया है, 'जनता की जान सबसे सस्ती है, न जनता को फिक्र है और न ही राज्य सरकारों को..अपराध रोकने के लिए ही कानून सख्त किये जाते, परन्तु वोट बैंक के गंदे खेल से चालान में डिस्काउंट तो कर दिया पर मौत किसी को डिस्काउंट नहीं देगी।' अजीब विडंबना है लोग नियमों से क्यों नहीं चलना चाहते?'

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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