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गुरु नानक देव की चमत्कारिक शक्तियां

👤 mukesh | Updated on:12 Nov 2019 5:20 AM GMT

गुरु नानक देव की चमत्कारिक शक्तियां

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- योगेश कुमार गोयल

प्रतिवर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा को गुरु नानक जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष 12 नवम्बर को यह पर्व पूरे जोश और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। इस साल गुरु नानक जयंती की विशेषता यह है कि इस बार 'सिखों के प्रथम गुरु' गुरु नानक का 550वां प्रकाश पर्व है। इसलिए गुरु नानक जयंती मनाने के लिए देशभर के गुरुद्वारों में विशेष तैयारियां की गई हैं। हजारों सिख श्रद्धालु देश की आजादी के बाद पहली बार पाकिस्तान में करतारपुर साहिब गुरुद्वारे में भी मत्था टेकने जा रहे हैं। गुरु नानक जयंती को 'प्रकाश पर्व' भी कहा जाता है। पाखण्डों के घोर विरोधी रहे गुरु नानक देव की यात्राओं का वास्तविक उद्देश्य लोगों को परमात्मा का ज्ञान कराना और बाह्य आडम्बरों से दूर रखना था। गुरु नानक जयंती के अवसर पर उनके जीवन, आदर्शों तथा उनकी दी हुई शिक्षा का भी स्मरण किया जाता है।

गुरु नानक के 550वें प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में इसी साल सितम्बर माह में नेपाल ने सौ, एक हजार और ढाई हजार रुपये के तीन स्मारक सिक्कों का सेट जारी किया था। पाकिस्तान सरकार द्वारा भी गुरुजी के 550वें प्रकाश पर्व पर 50 रुपये का एक सिक्का जारी किया गया। अब वहां की सरकार 8 रुपये मूल्य का एक डाक टिकट जारी करने जा रही है। कोलकाता टकसाल द्वारा 12 नवम्बर को 550वें प्रकाशोत्सव पर 44 मिलीमीटर गोलाई वाला 35 ग्राम वजनी 550 रुपये का एक स्मारक सिक्का जारी किया जा रहा है, जिसमें 50 फीसदी चांदी, 40 फीसदी तांबा और पांच-पांच फीसदी निकल व जिंक का मिश्रण है। इस सिक्के के एक ओर गुरुद्वारा श्री बेर साहिब का चित्र उकेरा गया है। उसी ओर सिक्के पर देवनागरी व अंग्रेजी में 'श्री गुरु नानक देव जी का 550वां प्रकाश पर्व' लिखा गया है। भारत में पहली बार 550 रुपये मूल्य वर्ग का कोई सिक्का जारी किया जा रहा है।

550वें प्रकाशोत्सव के इस विशेष अवसर पर गुरु नानक देव से जुड़ी कुछ घटनाओं का उल्लेख करना भी अनिवार्य हो जाता है, जो उनकी महानता और चमत्कारिक शक्तियों को परिलक्षित करती हैं। गुरु नानक का परम मित्र और सबसे प्रिय शिष्य था मरदाना। मरदाना को यह नाम गुरु नानक ने ही दिया था। नानक उस समय छोटे ही थे। एक दिन वे टहलते-टहलते दूसरे मोहल्ले में चले गए। वहां एक घर के बरामदे में बैठी एक महिला अपनी गोद में एक नवजात शिशु को लिए जोर-जोर से रो रही थी। नानक ने उस महिला से इसका कारण पूछा तो उसने नवजात शिशु की ओर इशारा करते हुए बताया कि यह मेरा पुत्र है। मैं इसके नसीब पर रो रही हूं, क्योंकि इसने मेरे घर में जन्म लिया है। इसलिए अब यह भी मर जाएगा। नानक ने पूछा कि आपसे किसने कहा कि यह मर जाएगा? तब महिला ने बताया कि मेरे घर में इससे पहले जितने भी बच्चे हुए, एक-एक कर सभी मर गए। इसलिए यह भी नहीं बचेगा। नानक ने उस बच्चे को अपनी गोद में लिया और बोले कि तुम्हारे विचार से तो इसे मर ही जाना है। तो फिर तुम इसे मेरे हवाले कर दो। महिला ने इसके लिए अपनी सहमति जता दी। तब नानक ने उस बच्चे का नाम 'मरदाना' रखा और महिला से कहा कि अब से यह बच्चा मेरा है। जिसे अभी मैं आपको ही सौंप रहा हूं। जब मुझे इसकी जरूरत होगी, मैं स्वयं इसे ले जाऊंगा। आगे जाकर वही मरदाना गुरु नानक का परम शिष्य बना, जिसने जीवन पर्यन्त गुरुजी की सेवा की।

मरदाना मुस्लिम था। एक बार उसने गुरुजी से कहा कि उसे मक्का शरीफ जाना है। दरअसल मान्यता है कि एक मुसलमान जब तक मक्का नहीं जाता, वह सच्चा मुसलमान नहीं कहलाता। मरदाना के आग्रह पर गुरु नानक उसके साथ मक्का के लिए निकल पड़े। जब दोनों वहां पहुंचे तो बहुत थक गए थे और वहां नानक हाजियों के लिए बनी एक आरामगाह में मक्का की ओर पैर करके सो गए। जब उनकी नींद खुली तो उन्होंने देखा कि उन्हें चारों ओर से मुसलमान घेरे खड़े हैं और काफी बुरा-भला बोल रहे हैं। उनमें से कुछ लोगों ने क्रोध से आग-बबूला होते हुए कहा कि क्या तुम्हें नजर नहीं आता कि तुम पवित्र मक्का मदीना की तरफ पैर करके लेटे हो? गुरु नानक ने कहा कि मैं तो एक मुसाफिर हूं और बहुत थका हुआ हूं, मुझसे गलती हो गई है। आप एक काम कीजिए कि आप मेरे पैरों को उस दिशा की ओर कर दें, जहां खुदा का घर नहीं हो। लोगों ने गुस्से से उनके पैर खींचकर दूसरी ओर कर दिए। किन्तु, घोर आश्चर्य! गुरु नानक के पैर अब जिस दिशा की ओर किए गए, मक्का भी उसी दिशा की ओर था। अब तो लोगों का गुस्सा और बढ़ गया। उन्होंने उनके पैर अब तीसरी दिशा की ओर कर दिए लेकिन यह देखकर सब दंग रह गए कि मक्का भी उसी दिशा की ओर है। लोगों को लगा कि अवश्य ही यह व्यक्ति कोई जादूगर है। इसलिए वे गुरुजी को पकड़कर वहां के काजी के पास ले गए और काजी को सारा मामला विस्तार से बताया। तब काजी ने गुरु नानक से पूछा कि तुम कौन हो, हिन्दू या मुसलमान? गुरुजी ने उत्तर दिया कि वह तो पांच तत्वों का बना एक पुतला हैं। काजी ने उनसे और भी कई सवाल किए और उनके उत्तर सुनकर वह जान गया कि नानक कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं। पहुंचे हुए सिद्ध महात्मा हैं। काजी ने गुरु नानक का खूब आदर-सत्कार किया। तब गुरु नानक ने वहां उपस्थित लोगों को संदेश दिया कि खुदा किसी एक दिशा में नहीं है। वह तो हर दिशा में है। तुम सब अच्छे कर्म करो और खुदा को याद करो, यही सच्चा सदका है।

गुरु नानक प्रायः अपने कुछ प्रिय शिष्यों के साथ ही यात्राएं किया करते थे। भीषण गर्मी में ऐसी ही एक यात्रा के दौरान वे एक बार एक गांव से गुजरे। उस समय उन्हें बहुत जोर की प्यास लगी थी। पास की पहाड़ी पर उन्हें एक कुआं दिखाई दिया। गुरुजी ने अपने एक शिष्य को वहां से पानी लाने के लिए भेजा। उस कुएं पर एक धनवान व्यक्ति का कब्जा था, जो लालची प्रवृत्ति का था। वह कुएं के पानी के बदले लोगों से धन लिया करता था। गुरुजी के शिष्य उस व्यक्ति के पास पानी लेने के लिए तीन बार गए लेकिन उसने हर बार पानी के बदले पैसों की मांग करते हुए उन्हें वहां से भगा दिया। जब उस लालची व्यक्ति ने अपने कुएं से पानी देने से इनकार कर दिया तो गुरु नानक ने उसी जगह पर मिट्टी खोदना शुरू कर दिया, जहां वे खड़े थे। थोड़ा-सा खोदते ही एकाएक वहां से पानी की धारा फूट पड़ी। इसी पानी से गुरुजी और उनके शिष्यों ने अपनी प्यास बुझाई। इस चमत्कार की खबर गांव में फैल गई तो गांव वाले दौड़े-दौड़े यह अद्भुत नजारा देखने पहुंचे। यह दृश्य देखकर कुएं के लालची मालिक को बहुत गुस्सा आया। जब उसने अपने कुएं की ओर देखा तो उसके कुएं का पानी लगातार कम हो रहा था। यह देखकर कुएं के मालिक ने गुरुजी को मारने के लिए एक पत्थर उनकी ओर फेंका लेकिन जैसे ही गुरुजी ने अपना हाथ आगे किया, पत्थर हाथ से टकराते ही रुक गया। यह देख कुएं का मालिक समझ गया कि यह व्यक्ति कोई सिद्धपुरूष है और उसने उनके चरणों में गिरकर उनसे क्षमा याचना की। गुरु नानक ने उसे समझाते हुए कहा कि तुम्हें किस बात का घमंड है? यहां तुम्हारा कुछ नहीं है। तुम खाली हाथ दुनिया में आए थे और खाली हाथ ही जाओगे। यदि कुछ अच्छा करके जाओगे तो हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहोगे।

गुरु नानक ने मानव जाति को रोचक, शिक्षाप्रद और मानवता के ऐसे कई संदेश दिए, जिन्हें अपने जीवन में अपनाकर हम अपना जीवन सफल बना सकते हैं।

(लेखक पत्रकार हैं।)

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