Home » खुला पन्ना » बढ़ रही डायबिटीज रोगियों की संख्या, सजगता ही इलाज

बढ़ रही डायबिटीज रोगियों की संख्या, सजगता ही इलाज

👤 mukesh | Updated on:14 Nov 2019 5:44 AM GMT

बढ़ रही डायबिटीज रोगियों की संख्या, सजगता ही इलाज

Share Post

- सुरेन्द्र किशोरी

डायबिटीज अब नासूर बनता जा रहा है। इसके रोगी सबसे अधिक सामने आ रहे हैं। विश्व स्वास्थ संगठन समेत विभिन्न चिकित्सीय संस्थान-संगठन इसकी भयावहता से काफी चिंतित हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का मानना है कि दुनिया में हर वर्ष डायबिटीज के कारण करीब 16 लाख लोग अपनी जान गंवा रहे हैं। डायबिटीज के कारण प्रत्येक 30 सेकेंड पर एक व्यक्ति का पांव काटना पड़ रहा है। अगर इसकी रफ्तार यही रही तो 2030 तक डायबिटीज दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी जानलेवा बीमारी बन जाएगी।

विश्व स्वास्थ संगठन वर्ष 2000 से पहले 40 वर्ष उम्र पार करने के बाद वजन बढ़ने पर लोगों को नियमित जांच तथा रिस्क नहीं लेने का अनुरोध करता था। लेकिन 2000 के बाद उसने रोगियों की संख्या को देखते हुए इसकी परिभाषा बदल दी है। अब डायबिटीज होने के लिए उम्र की कोई भी सीमा नहीं है। किसी भी उम्र के लोगों को यह बीमारी हो सकती है। अनियमित दिनचर्या, अनियमित खानपान, दूषित और पैक्ड फूड के भोजन से यह रोग तेजी से फैल रहा है। एक तो वसायुक्त भोजन ऊपर से अशुद्ध तथा परिश्रम से बचने की परिपाटी के कारण यह खतरनाक रूप ले चुका है। इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए 14 नवम्बर को विश्व मधुमेह (डायबिटीज) दिवस के रूप में मनाया जाता है।

दुनिया में भारत डायबिटीज रोगियों की राजधानी के रूप में जाना जाने लगा है। यहां करीब 49 फीसदी लोग डायबिटीज की चपेट में हैं। डायबीटीज रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। दुनिया में करीब 422 लाख लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं, जिनमें से सिर्फ भारत में 62 लाख लोग हैं। डायबिटीज हमेशा रहने वाला रोग है। इससे किडनी, ब्लड प्रेशर और शरीर के अन्य अंगों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव से अधिकांश लोग अवगत हैं लेकिन आंखों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को बहुत ही कम लोग जानते हैं। डायबिटीज के मरीजों में अगर शुगर की मात्रा नियंत्रित नहीं रहती है तो वह रेटिनोपैथी के शिकार हो सकते हैं। इस समस्या का पता तब चलता है जब बीमारी गंभीर रूप ले लेती है।

एक अनुमान के मुताबिक 14.3 प्रतिशत डायबिटीज रोगी रेटिनोपैथी, ग्लूकोमा एवं अंधापन के शिकार होते हैं। डायबिटीज‌ के रोगियों में डिमेन्शिया और लकवा स्ट्रोक की संभावना सामान्य लोगों से डेढ़ गुणा अधिक होती है। खून में शुगर की मात्रा बढ़ने से रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचता है। जिससे तंत्रिका कोशिकाओं से शरीर के दूसरे अंगों में खून की सप्लाई पर असर पड़ता है। साथ ही तंत्रिका कोशिकाओं में ऑक्सीजन की सप्लाई नहीं होने से ऐसा नुकसान पहुंचता है जिसे ठीक नहीं किया जा सकता है। अफसोस है कि डायबिटिक न्यूरोपैथी का कोई इलाज नहीं है। डॉक्टर सिर्फ दर्द कम होने और एंटीडिप्रेसेंट्स जैसी दवाएं इसके लक्षणों को कम करने के लिए करते हैं। डायबिटिक न्यूरोपैथी गंभीर बीमारी है। इस बीमारी के लक्षण काफी बाद नजर आते हैं। तब तक किडनी प्रभावित हो चुका होता है। जिन लोगों को 15 वर्ष या उससे अधिक समय से डायबिटीज है उन्हें यह खतरा अधिक बढ़ जाता है। 50 से 60 वर्ष की आयु में इस बीमारी को होने की आशंका रहती है। इसकी रोकथाम के लिए ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखना बहुत जरूरी होता है। कुल किडनी फेल्योर रोगियों में 18.8 प्रतिशत डायबिटीज से पीड़ित मरीज होते हैं। हृदय रोग और हार्ट अटैक की संभावना भी 50 प्रतिशत तक अधिक हो जाती है। सूनापन, पेरीफेरल आर्टरी डिजीज तथा पेरीफेरल न्यूरोपैथी के कारण दुनिया में हर सेकेंड 30 पर एक मरीजों के पैर काटकर अलग किए जा रहे हैं।

जाने-माने चिकित्सक डॉ. नीरज कुमार बताते हैं कि डायबिटीज एक स्थायी रोग है। जिसमें ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है। अगर इसका इलाज नहीं किया गया तो दिल, ब्लड वैसल्स, आंख और किडनी को हानि पहुंचा सकता है। इसकी पहचान में देरी और जागरूकता की कमी के चलते इसे काबू करना काफी मुश्किल हो जाता है। डायबिटीज से जूझ रहे लोगों को अपने खाने के प्रति अधिक सचेत रहकर मीठे खाद्य पदार्थ, ड्रिंक्स, ट्रांस्फैट्स से हमेशा दूरी बनाकर रखनी चाहिए। डायबिटिक डाइट हमेशा हाईफाइबर फूड, कॉम्पलेक्स कार्ब्स और प्रोटीन का बैलेंस मिक्स होना चाहिए। ऐसे कई हर्ब्स और मसाले हैं जो इस रोग से लड़ने में सहायता करते हैं। डायबिटीज के रोगियों में मस्तिष्काघात होने की संभावना चार गुणा ज्यादा होती है। दुनियाभर में हर वर्ष करीब 50 लाख लोग डायबिटीज के कारण आंखों की रोशनी खो देते हैं। जब हमारे शरीर में इंसुलिन का पहुंचना कम हो जाता है तो खून में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है।

इंसुलिन एक हार्मोन है जो पाचक ग्रंथि द्वारा बनता है। इसका काम शरीर के अंदर भोजन को एनर्जी में बदलना है। यही वह हार्मोन है जो हमारे शरीर में शुगर की मात्रा कंट्रोल करता है। शुगर की मात्रा बढ़ने से भोजन से एनर्जी नहीं बनता है। इस स्थिति में बढ़ा हुआ ग्लूकोज शरीर के विभिन्न अंगों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है। यह ज्यादातर वंशानुगत और बिगड़ी हुई जीवनशैली के कारण होता है। डॉ. नीरज कुमार ने कहा कि थकान महसूस होने, लगातार पेशाब लगने, अचानक वजन कम होने, अत्यधिक भूख लगने, बराबर तबीयत खराब होने, घाव के जल्दी नहीं भरने, आंखों के कमजोर होने और त्वचा रोगों आदि के लक्षण दिखे तो तुरंत जांच करानी चाहिए। हालांकि 35 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को प्रत्येक साल नियमित स्वास्थ्य जांच करानी चाहिए। डायबिटीज को हमेशा प्राथमिकता सूची में रखते हुए भागमभाग की जीवन शैली के बीच योग और मॉर्निंग वॉक के साथ जागरूकता ही डायबिटीज का सबसे बड़ा इलाज है।

Share it
Top