चंद सिक्कों के लिए देश के शत्रु बनने वाले पुलिसकर्मी
- आर.के. सिन्हा
जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीएसपी देविंदर सिंह की गिरफ्तारी के बाद लगातार जिस तरह के खुलासे हो रहे हैं, वह वाकई दिल दहलाने वाले हैं। यकीन नहीं होता कि कोई पुलिस अफसर चंद सिक्कों के लिए इतना गिर जाएगा कि देश के दुश्मनों से हाथ मिला लेगा। पर अफसोस है कि कश्मीर में यही हुआ। देविंदर सिंह आतंकियों के साथ मिलकर न केवल सिर्फ दिल्ली को दहलाने की साजिश रच रहा था, बल्कि उसके निशाने पर जम्मू, पंजाब और चंडीगढ़ भी थे। बेशक, हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादियों के साथ गिरफ्तार किए गए जम्मू-कश्मीर पुलिस के पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) देविंदर सिंह ने अपने कृत्य से पुलिस महकमे को बुरी तरह शर्मसार कर दिया। देविंदर सिंह केस के बहाने पुलिस महकमे में व्याप्त गड़बड़ी को समझने और उन्हें दूर करने के उपाय खोजने ही होंगे। आखिर यह कोई सामान्य केस नहीं है। देविंदर सिंह से पहले नोएडा के एसएसपी वैभव कृष्ण को भी आपराधिक षड्यंत्र और भ्रष्टाचार के आरोप में सस्पेंड कर दिया गया था। वैभव कृष्ण का एक वीडियो वायरल हुआ था। जांच में यह वीडियो सही पाया गया। इसके बाद सरकारी आचरण नियमावली तोड़ने को लेकर वैभव कृष्ण को निलंबित कर दिया गया है। उस वीडियो में वैभव कृष्ण एक महिला से चैट कर रहे हैं।
हालांकि इस वीडियो को वैभव कृष्ण 'मॉर्फ्ड' बता रहे थे। उत्तर प्रदेश सरकार ने वीडियो और चैट को गुजरात के फोरेंसिक लैब में जांच के लिए भेजा था। फोरेंसिक लैब की रिपोर्ट में यह वीडियो और चैट सही पाई गई। जांच रिपोर्ट आते ही वैभव कृष्ण को सस्पेंड कर दिया गया। इन दोनों मामलों से पुलिस में काम करने वाले छोटे-बड़े सभी कर्मियों को सतर्क हो जाना चाहिए कि अब गड़बड़ करने वाले अफसर नपेंगे। उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा। पर देविंदर सिंह की गिरफ्तारी और आतंकवादियों से उसके गहरे संबंध होने से सुरक्षा एजेंसियों का चिंतित होना लाजिमी है। अब तो लग रहा है कि देवेंद्र सिंह का संबंध खालिस्तानी आतंकी समूहों के अलावा और भी कई आतंकी संगठनों से हो सकते हैं। इसलिए गृह मंत्रालय ने पूरे मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी है। इस केस के सभी पहलुओं की बारीकी से जांच के बाद दोषियों पर कठोरतम एक्शन होना चाहिए।
यह बात सच में बहुत दुखद है कि हाल में पकड़े गए कुछ आतंकी देविंदर सिंह के साथ उसके घर पर भी रुकते थे। यह सीधा देशद्रोह का केस है। हालांकि वह तो काफी समय से देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त था, पर उसे पकड़ने में इतनी देरी क्यों हुई। इस सवाल का भी जांच एजेंसियों को जवाब खोजना होगा। यह पता चलाया जाना चाहिए कि उसे पकड़े जाने में इतना वक्त क्यों लगा। क्या कुछ और पुलिस वाले भी उसके साथ जुड़े थे। तो क्या देवेन्द्र सिंह और वैभव कृष्ण के मामलों के बाद यह मान लिया जाए कि हमारी पुलिस के कुछ अधिकारी सुधरने की लिए तैयार नहीं है। बेशक पुलिस अपराधियों-उपद्रवियों पर कठोरता बरते, पर वह उनका हिस्सा तो ना बने। क्या वह दीन-हीन को ही मारेगी।
कुछ समय पहले ही बिहार के भागलपुर कलेक्ट्रेट परिसर के बाहर शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रही औरतों को भी पत्थर दिल पुलिसकर्मियों ने नहीं छोड़ा। पुलिस ने उनपर ताबड़तोड़ तरीके से लाठीचार्ज किया। पुलिस की मार से कई महिलाएं बेहोश हो गईं, उसके बाद भी उन्हें बुरी तरह घसीटा गया। भागलपुर की घटना के बाद पंजाब के मोहाली शहर में भी अपना वेतन न मिलने के विरोध में प्रदर्शन कर रहे अध्यापकों पर पुलिस ने कसकर डंडे बरसाए। पुलिस ने अध्यापकों पर पहले आंसू गैस के गोले छोड़े और उसके बाद वाटर कैनन से पानी की बौछारें भी मारी। पानी का प्रेशर इतना तेज था कि टीचर्स पानी का प्रेशर झेल न पाए और सड़कों पर गिर गए। जिस इंसान को महीनों से वेतन नहीं मिल रहा है, क्या उसे इस देश में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का अधिकार भी मिलेगा?
एक तरफ देविंदर सिंह और वैभव कृष्ण जैसे अफसर घृणित काम कर रहे हैं, दूसरी तरफ पुलिसिया बर्बरता के रोंगटे खड़े कर देने वाले कृत्य लगातार सामने आते रहते हैं। कभी-कभार तो दोषी पुलिसकर्मियों पर कारवाई की खानापूरी भी हो जाती है। उसके बाद फिर से सबकुछ सामान्य हो जाता है। निलंबित पुलिस वाले फिर से देर-सबेर सेवा में पुनः बहाल भी हो जाते हैं। अब पुलिस महकमे को देखने वालों को कई स्तरों पर नए सिरे से सोचना होगा। पहला, किस तरह से पुलिस का जनता के सेवक के रूप में चेहरा सामने आये? पुलिस किस तरह से मानवीय बने। दूसरा, वे अपराधियों से सदैव दूर रहे। देविंदर सिंह केस के बाद साफ लग रहा है कि कई पुलिसकर्मी अपराधियों से तालमेल करने लगते हैं, कुछ छोटे-मोटे लाभ के लिए। यकीन मानिए कि इस लेख के माध्यम से पुलिस की सिर्फ मीन-मेख निकालने की ही मंशा नहीं है। इसी पुलिस ने खालिस्तानी आतंकियों की कमर भी तोड़ी थी। तब देश पंजाब पुलिस के साथ खड़ा था। तब देश ने पंजाब पुलिस के महानिदेशक के.पी.एस. गिल को अपना नायक बनाया था। अगर पुलिस राष्ट्र विरोधी तत्वों-शक्तियों को कुचलती है तो किसी को क्या आपत्ति होगी। लेकिन पुलिस वाले अगर वैभव कृष्ण और देविंदर सिंह के रास्ते पर चलेंगे तो क्या होगा।
पुलिस को अपने दायित्वों को गंभीरता से समझना होगा। उन्हें समझना होगा कि बिना ईमानदार पुलिस के देश नहीं चल सकता। अगर पुलिस रास्ते से भटकी तो समाज में उसके प्रति सम्मान और खौफ का भाव तो नहीं रहेगा। पुलिस की कार्यशैली में सुधार के लिए अबतक देश में अनेकों आयोग बने हैं। उनकी रिपोर्ट पर मालूम नहीं क्या कारवाई होती है। अब वक्त का तकाजा है कि पुलिस के भीतर पल रहे देविंदर सिंह और वैभव कृष्ण जैसे शातिर किस्म के तत्वों को सख्ती से कसा जाए और ईमानदार पुलिस वालों को पुरस्कृत किया जाए।
(लेखक राज्यसभा सदस्य हैं।)