Home » खुला पन्ना » जनसंख्या विस्फोट की वाजिब चिंता

जनसंख्या विस्फोट की वाजिब चिंता

👤 mukesh | Updated on:21 Jan 2020 7:28 AM GMT

जनसंख्या विस्फोट की वाजिब चिंता

Share Post

- डॉ. रमेश ठाकुर

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जिस सामाजिक समस्या पर अपनी चिंता व्यक्त की, उसे सियासी चश्मे से देखने की बजाय उसपर मंथन की आवश्यकता है। गज भर जमीने के लिए एक-दूसरे के कत्ल होंगे, रोटी पर झपटमारी होगी, लोग अपने हकों के लिए एक-दूसरे के खून के प्यासे होंगे? ऐसी स्थिति सामने खड़ी है। सड़कें खचाखच भरी हैं, पार्किंग फुल हैं, घरों के आंगन सिमट गए हैं, आवासीय जगहों के कम होने से फ्लैट सिस्टम वर्षों से शुरू है, बावजूद इसके जनसंख्या की विकराल होती समस्या पर ज्यादा चिंतन नहीं हो रहा। उपरोक्त सभी समस्याओं को कायदे से देखें तो हर समस्या की जड़ बढ़ती जनसंख्या ही है। इसलिए इस विस्फोट को रोकना निहायत जरूरी है। इसमें भला किसी एक वर्ग या एक समुदाय का नहीं, बल्कि सामूहिक रूप से सभी का है। इस मुद्दे को जबरन सियासी मसला बनाया जा रहा है।

जनसंख्या विस्फोट ने हर किसी को बुरी तरह से प्रभावित किया है। पढ़ा-लिखा हिंदू-मुसलमान, सिख-ईसाई सभी समर्थन में हैं कि इसपर मुकम्मल प्रयास होने चाहिए। इसी दिशा में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी अपनी चिंता जताई। लेकिन उनके बयान पर बेवजह की बहस छिड़ी हुई है। समूचा हिंदुस्तान जनसंख्या विस्फोट का भुगतभोगी होता जा रहा है। रेल, सड़क, बाजार, सार्वजनिक स्थान लोगों से खचाखच भरे हैं। नौकरियां, मौके, संसाधन सिमटते जा रहे हैं। नौबत ऐसी आ गई है कि चपरासी की वैकेंसी के लिए पीएचडी जैसे उच्च शिक्षा प्राप्त युवा भी एप्लाई कर रहे हैं। ऐसी स्थिति को देखते हुए जनसंख्या नियंत्रण निहायत जरूरी है। चिंता की बात है कि आज ऐसी स्थिति है तो आने वाले वक्त में क्या होगा? दो बच्चे पैदा करने की नीति का हमें अनुपालन करना ही होगा, अगर सरकार इस दिशा में कोई कदम उठाती है तो उसका सामूहिक रूप से सभी भारतीयों को समर्थन करना चाहिए।

इस समय देश की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है। बेरोजगारी के कारण युवा शक्ति लगातार तनाव की तरफ बढ़ रही है। कुछ गलत रास्तों पर भी चलते हैं। एनसीआरबी के ताजा आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं। हर तरह के अपराधों में युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है जिसमें ब्लैकमेलिंग, लूट-चोरी, रंगबाजी आदि कृत्य शामिल हैं। केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें जब भी किसी बड़े मसले पर लगाम लगाने की सुगबुगाहट होती है तो उससे लागू होने से पहले ही विरोध शुरू हो जाता है। कोई कानून या नीति बनने से पहले ही दुष्प्रचार शुरू हो जाता है। जनसंस्खा नियंत्रण काननू को लेकर भी हवा बननी शुरू हो गई है। दरअसल, बढ़ती जनसंख्या के नियंत्रण की मांग पर किसी एक वर्ग विशेष की नहीं, बल्कि हर वर्ग की सहमति है। लेकिन इसकी सुगबुगाहट से पहले ही उसे सियासी भट्टी में झोंका जा रहा है। देश का हर वर्ग सहूलियतें, सामान अधिकार, घरों की छत और रोजगार चाहता है। पर इनके स्थान पर उनके हिस्से सिर्फ परेशानियां ही आती हैं।

देश में विगत कुछ दशकों से तेजी से बढ़ी जनसंख्या ने रोजगार, शिक्षा व जरूरतों को सीमित कर दिया है। दूसरे देशों के मुकाबले हम जनसंख्या वृद्धि में अभी दसवें पायदान पर हैं। भारत के अलावा इथियोपिया-तंजानिया, संयुक्त राष्ट्र, चीन, नाइजीरिया, कांगो, पाकिस्तान, युगांडा, इंडोनेशिया व मिस्र ऐसे मुल्क हैं जहां स्थिति कमोबेश हमारे जैसी ही है। लेकिन इन कई देशों में जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए कानून अमल में आ चुके हैं। कई देशों में दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने पर सरकारी सुविधाओं से वंचित करने का फरमान है।

भारत की आबादी अगले एक दशक में 1.5 बिलियन हो जाने का अनुमान है। आजादी के समय देश की जनसंख्या मात्र 34 करोड़ थी लेकिन बीते सत्तर सालों में बढ़कर डेढ़ सौ करोड़ के आसपास पहुंच गई। जनगणना 2011 के मुताबिक भारत की आबादी 121.5 करोड़ थी जिनमें 62.31 करोड़ पुरुष और 58.47 करोड़ महिलाएं शामिल थीं। अगले वर्ष नया आकंड़ा आएगा, उससे पता चलेगा हम कहां पहुंच चुके हैं। सर्वाधिक जनसंख्या उत्तर प्रदेश में है जहां कुल आबादी 19.98 करोड़ है। सबसे कम जनसंख्या वाला राज्य सिक्किम है जहां की आबादी मात्र 6 लाख है। बढ़ती जनसंख्या पर कायदे से गौर करें तो रोंगटे खड़े हो जाएंगे।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के जनसंख्या नियंत्रण पर दिए बयान को अगर सियासी चश्मे से न देखकर सामाजिक लिहाज से देखें तो कई बातें साफ हो जाती हैं। इस मसले पर जितने दूसरे वर्ग चिंतित हैंं, उतने ही अल्पसंख्यक भी। यह दुष्प्रचार मात्र है कि अल्पसंख्यक जनसंख्या नियंत्रण कानून के खिलाफ हैं। वे भी भविष्य के खतरों से वाकिफ हैं। अभी हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट आई थी जिसमें बताया गया था कि हिंदुस्तान में जिस तेज गति से जनसंख्या बढ़ रही है उससे 2024 तक चीन को भी पीछे छोड़ देगा। इस लिहाज से अगले पचास वर्ष बाद हिंदुस्तान समूची दुनिया में जनसंख्या में सबसे बड़ा मुल्क हो जाएगा। इसलिए इस विकराल होती समस्या पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

Share it
Top