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खादीः केवल वस्त्र नहीं, विचार व रोजगार का माध्यम

👤 mukesh | Updated on:24 Feb 2020 5:33 AM GMT

खादीः केवल वस्त्र नहीं, विचार व रोजगार का माध्यम

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- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

खादी केवल वस्त्र नहीं अपितु यह विचार, स्वाभिमान और बड़े वर्ग के लिए रोेजगार का माध्यम है। आज खादी से जुड़े उद्यमियों और विशेषज्ञों को तकनीक में बदलाव, बाजार की मांग के अनुसार उत्पाद तैयार करने और नित नए प्रयोगों की ओर ध्यान देना जरूरी हो गया है। पिछले दिनों जयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पहल पर दो दिनी ग्लोबल कॉन्फ्रेंस का आयोजन इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाता है कि इस आयोजन से इंग्लैंण्ड, जापान सहित दुनिया के आठ देशों के प्रतिनिधियों, देशभर के जाने-माने गांधीवादी विचारकों और खादी से जुड़े विशेषज्ञों ने खादी के भविष्य को लेकर चिंतन मनन किया।

आजादी के आंदोलन में स्वदेशी और स्वाभिमान का प्रतीक बनी खादी आज अधिक प्रासंगिक हो गई है तो खादी की ताकत को पहचान कर आज भी ग्राम स्वराज का सपना साकार हो सकता है। इको फ्रैण्डली होने से आज दुनिया के देशों में खादी की मांग बढ़ी है। खादी-मार्केटिंग, एक्सपोर्ट पोंटेंशिएल, लो कॉस्ट और प्रोडक्शन कैपेसिटी पर माना गया कि खादी को फैशन से जोड़ना आज की आवश्यकता है तो खादी में इनोवेशन, डायवर्सिफिकेशन, मार्केट इंटेलिजेेंस पर ध्यान रखना होगा। पर्यावरण प्रदूषण और पानी की कमी से जूझ रही देश-दुनिया के सामने खादी एक सशक्त विकल्प है। इकोफ्रैण्डली होने के साथ ही अधिक लोगों को रोजगार, सभी मौसम में प्रकृति अनुकूल है खादी। खादी क्या और क्यों को चंद शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। खादी मतलब ऑनेस्टी, सिंसिएरिटी, स्वदेशी, जीरो कार्बन फूट प्रिन्ट, जल संरक्षण, इकोफैण्डली सहित न जाने कितने ही प्रेरणास्पद बहुआयामी मायने रखती है।

आज खादी जन-जन की पहचान बनती जा रही है। विदेशों में इकोफ्रैण्डली परिधानों की मांग हो रही है। यह अच्छी बात है कि खादी में नवाचार किए जा रहे हैं। आईटीईएन्स के सहयोग से उन्नत चरखे तैयार किए जा रहे हैं, वहीं डिजाइनरों को इससे जोड़ा जा रहा है क्योंकि आज यह उभरकर आ गया है कि पर्यावरण को बचाना है तो खादी को अपनाना ही होगा। लंदन की जो सोल्टर ने गुणवत्ता के साथ ही पारदर्शी सस्टेनेबल सप्लाई चेन विकसित करने की आवश्यकता प्रतिपादित की तो जापान की फुमी कोबायशी ने भारत-खादी और जापान के बीच पिछली दो-तीन सदियों के समन्वय को रेखांकित किया। जापान में एनजीओ व अन्य संस्थाओं के सहयोग से खादी को नया मुकाम दिलाया जा रहा है। खास बात यह कि स्वयं फुमी कोबायशी खादी से बने वस्त्र ही पहने थीं। कम्फरटेबल, इकोलॉजीकली, डिजाइन आदि के अनुसार तैयार होने से खादी वस्त्रों की अच्छी मांग विदेशों में होने लगी है। गुजरात के कच्छ में हस्तकरघा और हस्तकला ने गरीबों को रोजगार के नए अवसर उपलब्ध कराए है। आज खादी वस्त्रों के निर्यात की विपुल संभावनाएं हैं।

यह सब इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि देश में 20 लाख गांठ कपास उत्पादन में से बड़ी मात्रा में कपास का निर्यात बांग्लादेश को होता है, वहां से अपेरल तैयार होकर दुनिया के देशों को निर्यात हो रहे हैं। हमारे पास कच्चा माल होते हुए भी हम सही मायने में वेल्यू एडिशन नहीं कर पा रहे। सम्मेलन में जाने-माने फैशन डिजायनरों रीतू बेरी, हिम्मत सिंह, पूजा जैन, परेश लांबा, पूजा गुप्ता, अदिति जैन, रूमा देवी के साथ ही भारतीय शिल्प कला संस्थान की निदेशक डॉ. तूलिका गुप्ता ने फैशन की दुनिया में हो रहे प्रयोगों पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि खादी परिधानों को ग्लोबल फैशन शो में प्रमुखता से प्रस्तुत किया जा रहा है। खादी में रंग संयोजन, नित नए प्रयोग होने से अब खादी आमजन की पसंद बनती जा रही है।

सर्दी हो या गर्मी या बरसात खादी ऐसा वस्त्र है, जिसे सभी मौसम में पहना जा सकता है। एक समय था जब गांवों में घर-घर में चरखा होता था तो बच्चों को स्कूलों में तकली से कताई सिखाई जाती थी। हालांकि आज वस्त्र की दुनिया में तेजी से बदलाव आया है पर इको फ्रैण्डली होने के कारण देश-विदेश में खादी की तेजी से मांग बढ़ती जा रही है। कातिनों और बुनकरों को मेहनत का पूरा पैसा नहीं मिलने से धीरे-धीरे घरों से चरखे गायब हो गए तो आज की पीढ़ी ने इस काम से मुंह मोड़ लिया। खादी की प्रासंगिकता आज और अधिक होने से तकनीक में सुधार की, बाजार की मांग के अनुसार खादी वस्त्रों को आकार देने की आवश्यकता हो गई है। आजादी के समय खादी केवल वस्त्र न होकर विचार के साथ ही स्वाभिमान का प्रतीक रही है। ऐसे में खादी के वैश्वीकरण के लिए इस क्षेत्र में कार्य कर रहे सभी लोगों के साथ ही फैशन डिजाइनरों को नई तकनीक और एग्रेसिव मार्केटिंग के साथ आगे आना होगा।

विज्ञापन की चकाचौंध में खादी कहीं पिछड़ती जा रही है। सरकार द्वारा हर साल खादी को बढ़ावा देने के लिए खादी मेलों का आयोजन किया जाता रहा है। सामान्यतः गांधीजी के जन्मदिन 2 अक्टूबर से खादी मेलों का सिलसिला चलता है जो सामान्यतः जनवरी के बाद तक चलता रहता है। राजस्थान सरकार ने खादी उत्पादों पर 50 प्रतिशत तक छूट दी। परिणाम सामने हैं, जहां अन्य सालों के डेढ़-दो करोड़ की सालाना छूट खादी संस्थाओं को मिल पाती थी, वहीं इस साल 17 करोड़ की बड़ी राशि छूट के रूप में खादी संस्थाओं को प्राप्त हो चुकी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खादी की ब्राण्डिंग का संदेश दे चुके हैं। देश में खादी की ब्राण्डिंग का ही परिणाम है कि समूचे देश में 2018-19 में 3215 करोड़ का टर्नओवर रहा जो इस साल 5 हजार करोड़ तक पहुंचने की संभावना है। इससे पहले आठ सौ-सवा आठ सौ करोड़ का ही टर्नओवर रहता था। इस दौरान खादी उत्पादों पर अच्छी-खासी छूट भी दी जाती है।

खादी पर मंथन इसलिए सामयिक हो जाता है कि देश में बुनकरों की माली हालत दिन-प्रतिदिन गिरती जा रही है। जबकि केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा बुनकरों के कल्याण की अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं। खादी में नवाचार और बाजार मिलने से इन ग्रामोद्योगों से जुड़े लोगों की आय में इजाफा होगा। एक ओर हमें प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए खादी उत्पादों को जनता की मांग के अनुकूल बनाना होगा, फैशनेबल व आकर्षक बनाने का शोध कार्य जारी रखना होगा, वहीं विपणन कला का उपयोग भी करना होगा। उत्पाद की गुणवत्ता तो पहली शर्त है ही। यदि ऐसा होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब खादी की अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान बन जाएगी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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