कोरोना, लॉकडाउन, अर्थव्यवस्था और शिवराज
- डॉ. मयंक चतुर्वेदी
''कोरोना वायरस'' के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था की हालात कितनी खराब स्थिति में पहुंच गई है, आज यह किसी को बताने की जरूरत नहीं। स्वभाविक है कि इन परिस्थितियों में किसी भी देश और उसके राज्यों की अर्थव्यवस्था के गिरते हालात पर सभी ओर चिंता देखी जा सकती है। बाकी दुनिया के देशों की तरह भारत के हालात भी दिन-प्रतिदिन आर्थिक दृष्टि से खराब हो रहे हैं। किंतु इस सबके बीच सबसे महत्वपूर्ण है, नागरिकों के जीवन का रक्षण। देश में 21 दिनों का लॉकडाउन है, राज्यों से प्राप्त होनवाले अभिमत के आधार पर केंद्र की मोदी सरकार इस पूर्ण अवकाश को और बढ़ा सकती है, ऐसे में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जो कहा है, उसपर हर बार मुंह से यही निकलता है- वाह शिवराज।
वस्तुत: ऐसा कहने के पीछे उनकी वह सोच है जो अर्थव्यवस्था के विकास से कहीं ऊपर मानवीय जीवन के जीवित रहने की आवश्यकता पर सबसे अधिक जोर देती दिखती है। लॉकडाउन खत्म करने को लेकर जब उनसे मीडिया मित्रों द्वारा पूछा जाता है तो वे कुछ ये जवाब देते दिखाई देते हैं "परिस्थितियां देखकर फैसला करेंगे। जनता की जिंदगी ज्यादा जरूरी है। लॉकडाउन सह लेंगे, अर्थव्यवस्था दोबारा खड़ी कर लेंगे। मगर, लोगों की जिंदगी चली गई तो वापस नहीं लाई जा सकती है। इसलिए स्थिति नियंत्रण में नहीं रही तो लॉकडाउन बढ़ाएंगे। कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था से ज्यादा जरूरी लोगों की जिंदगी है। "हालांकि उन्होंने इसके साथ ही यह भी बता दिया कि इंदौर और भोपाल के जो हालात हैं, उसे देखते हुए लॉकडाउन अचानक हटाना मुश्किल है। कोरोना वायरस को अमेरिका की तरह हंसी-खेल में नहीं ले सकते। अमेरिका ने शुरू में इसकी गम्भीरता नहीं समझी, इसलिए आज वह ज्यादा परेशानी में है। हम ऐसा कोई भी दुखद अवसर अपने यहां पैदा नहीं होने देना चाहते। सच पूछिए तो उनका यही वक्तव्य दिल को छू जाता है।
उनकी कही इन बातों ने उनके मुख्यमंत्री काल के पुराने समय की (कांग्रेस काल के बीच के समय से पहले) के दौर को फिर से याद दिला देता है। जब प्रदेश में भाजपा को सत्ता मिली थी, तब शायद ही कोई क्षेत्र पर्यटन, उद्योग, कृषि या अन्य कोई भी क्यों न हो, वह अपनी दुरावस्था में न रहा हो, जैसा कि पूर्व कांग्रेस की दिग्विजय सरकार प्रदेश को छोड़कर गई थी, उससे नहीं लग रहा था कि प्रदेश कभी देश के विकासशील देशों की पंक्ति में साथ आकर खड़ा हो पाएगा। लेकिन सभी ने देखा कि उमा भारती से लेकर स्व. बाबूलाल गौर के बाद कैसे शिवराज के मुख्यमंत्रित्वकाल में राज्य एक के बाद एक क्षेत्र में महारथ हासिल करने लगा था। इस बीच कई कृषि, परिवहन, पर्यटन जैसे सेक्टर तो ऐसे थे, जिसमें विकास से जुड़े तथ्य चौकाने वाले रहे। वस्तुत: इतना ही नहीं सत्ता से जाते-जाते भी विधानसभा में प्रस्तुत हुए 2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण में प्रदेश की विकास गति सात फीसदी की दर से आगे बढ़ रही थी। जो उसके पूर्व वर्ष 2017-18 के 6.19 फीसदी के मुकाबले अधिक रही थी। इस वक्त के आंकड़ों को गंभीरता से देखें तो समझ आता है कि राज्य में प्रति व्यक्ति सालाना आय स्थिर भाव पर 82 हजार 941 रुपए से 9.71 प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ 90 हजार 998 रुपए पहुंच गई थी।
हालांकि चुनौतियां भी कम नहीं थीं, जैसे कि सकल घरेलू उत्पाद में उद्योगों का योगदान का 24.14 प्रतिशत पहुंचना, अच्छे स्वास्थ्य और खुशहाली के सूचकांक में प्रदेश का स्थान 25वां रहना, रकबा 1.66 लाख हेक्टेयर घटना, कृषि क्षेत्र का जीडीपी में योगदान 37.17 प्रतिशत का होना और कुपोषण में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर प्रति हजार में 77 का बना रहना । मध्यप्रदेश का देश में गरीबी के स्तर में 27वें स्थान पर होना। वस्तुत: यह चुनौतियां कोई छोटी नहीं हैं। लेकिन जब भाजपा के शिवराज सरकार के पूर्व की दिग्विजय सिंह के कांग्रेस शासन से यदि तुलना की जाती है तो सीधे तौर पर साफ-साफ दिखाई देता है कि मध्य प्रदेश बहुत आगे तक लाने का श्रेय शिवराज सरकार को जाता है। सड़क परिवहन से लेकर सिंचाई व्यवस्था, प्रदेश का वार्षिक बजट आप किसी भी मामले में इन दो सरकार के विकास के अंतर को साफ तौर पर अनुभव कर सकते हैं। यह जो प्रदेश का विकास तेजी से होता दिखा भी तो वह शिवराज के पूर्व शासनकाल में देखने को मिला था। इसके बाद जो हुआ, कमलनाथजी आए, चले गए वह सब ठीक। किंतु अब फिर एक बार प्रदेश में शिवराज शासन है।
राज्य की जनता को पुन: अपने प्रिय मुख्यमंत्री और बच्चों के मामा शिवराज सिंह से बहुत उम्मीदे हैं। जिस तरह से उनके नेतृत्व में प्रशासन द्वारा इस वक्त ''कोरोना'' को फाइट दी जा रही है, उससे भी लोगों को उनपर बहुत भरोसा है। आज ऐसे नाजुक वक्त में लॉकडाउन के बीच अर्थव्यवस्था की याद इसलिए भी आ गई है क्योंकि उन्होंने जो मानवीय हित में कहा है, वह सभी राज्य सरकारों के लिए भी अनुकरणीय है। उनका संदेश वाकई काबिले तारीफ है।
अब उम्मीद की जाए कि लोग अपने नेता की बातों पर भरोसा करेंगे। जनहित में यदि लॉकडाउन की अवधि बढ़ती है तो वे आगे भी अपने धैर्य को बनाए रखेंगे। अर्थव्यवस्था को लेकर चिंतिन नहीं होंगे और यह मानकर चलेंगे कि जब पूर्व शिवराज सरकार में वे अपनी अथक मेहनत से प्रति व्यक्ति आय प्रदेश की 91 हजार कर सकते हैं तो आनेवाले दिनों में फिर लॉकडाउन हटते ही नए सवेरे में उजाले की उजास चारों ओर अपनी अथक मेहनत से बिखेरने में कामयाब होंगे।
(लेखक फिल्म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्य एवं पत्रकार हैं।)