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कोरोनाः डब्ल्यूएचओ की चीन को क्‍लीन चिट देने की तैयारी

👤 mukesh | Updated on:12 Jan 2021 10:16 AM GMT

कोरोनाः डब्ल्यूएचओ की चीन को क्‍लीन चिट देने की तैयारी

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- डॉ. मयंक चतुर्वेदी

कोरोना की उत्पत्ति कहां से हुई, यह वायरस आखिर कहां से आया? इस बात की जांच करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक एक्सपर्ट टीम एकबार फिर चीन के दौरे पर जा रही है, किंतु बड़ा प्रश्‍न यह है कि इस टीम के वहां जाने से होगा क्‍या? पहले भी बीते जुलाई माह में जो दल गया वह खाली हाथ लौटा था। हम कह सकते हैं कि उस दल में विशेषज्ञों की कमी थी, इसलिए यह दल बहुत गहरे जाकर सच्‍चाई का पता नहीं लगा पाया। आज जब इस काम के लिए बड़ा दल भेजा जा रहा है, तो उसके हाथ कुछ लगेगा, यह सोचना अपने को भ्रम में रखना होगा। वस्‍तुत: चीन जैसा देश जो अपने हितों के लिए किसी भी मानवीय सीमा को पार करने में गुरेज नहीं करता, कम-से-कम उससे मानवीयता की आशा नहीं रखी जा सकती है।

आज यह किसी से छिपा नहीं है कि डब्ल्यूएचओ प्रमुख टेड्रोस एडहैनम घेब्रयेसिस की नियुक्तिति में चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग का सबसे बड़ा हाथ रहा है। वे चाहकर भी चीन के विरोध में नहीं जा सकते। फिर इस बीच जिस तरह से चीन ने कोरोना काल में अपने आप को ग्रोथ में लाकर इकोनॉमी पॉवर बनने की ओर कदम बढ़ाए हैं, उससे भी साफ अंदेशा पैदा होता है कि कोरोना वायरस को इसलिए लाया जा रहा था कि वह अपनी बिगड़ी अर्थव्‍यवस्‍था को न केवल पटरी पर ला सके बल्‍कि लाभ के स्‍तर पर अन्‍य देशों से आगे निकल जाए।

कोरोना वायरस को लेकर अमेरिका के दो वैज्ञानिकों ने बीते अगस्‍त माह में चौंकाने वाला खुलासा किया था। इन वैज्ञानिकों का कहना है कि यह वायरस करीब आठ साल पहले चीन की खदान में पाया गया था। दुनिया आज जिस कोरोना वायरस से प्रभावित है, वो आठ साल पहले चीन में मिले वायरस का ही घातक रूप है। वुहान लैब में जानबूझकर वायरस तैयार किया गया। इन वैज्ञानिकों का बार-बार यही कहना रहा कि उनको मिले साक्ष्‍य दर्शाते हैं कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति चीन के दक्षिण पश्चिम स्थित युन्नान प्रांत की मोजियांग खदान में हुई थी। उन्होंने बताया कि 2012 में कुछ मजदूरों को चमगादड़ का मल साफ करने के लिए खदान में भेजा गया था। इन मजदूरों ने 14 दिन खदान में बिताए थे, बाद में 6 मजदूर बीमार पड़े। इन मरीजों को तेज बुखार, खांसी, सांस लेने में तकलीफ, हाथ-पैर, सिर में दर्द और गले में खराश की शिकायत थी। ये सभी लक्षण आज कोविड-19 के हैं। कथित तौर पर बीमार मरीजों में से तीन की बाद में मौत भी हो गई थी। यह सारी जानकारी चीनी चिकित्सक ली जू की मास्टर्स थीसिस का हिस्सा है। थीसिस का अनुवाद और अध्ययन डॉ. जोनाथन लाथम और डॉ. एलिसन विल्सन द्वारा किया गया है।

वस्‍तुत: अमेरिकी वैज्ञानिकों का यह दावा इस महामारी के लिए चीन की भूमिका को सीधे तौर पर कठघरे में खड़ा करता है। जबकि चीन कहता आया है कि उसे कोरोना के बारे में पूर्व में कोई जानकारी नहीं थी। जैसे ही उसे वायरस का पता चला, उसने दुनिया के साथ जानकारी साझा की। दूसरी ओर इन्‍हीं वैज्ञानिकों का कहना है कि मजदूरों के सैंपल वुहान लैब भेजे गए थे और वहीं से वायरस लीक हुआ। इससे स्पष्ट होता है कि महामारी बनने से पहले ही कोरोना वायरस चीन के रडार पर आ चुका था।

चीन को लेकर अब वैज्ञानिकों की आई इस रिपोर्ट को 5 माह बीत चुके हैं। कहने वाले यह भी कह सकते हैं कि अमेरिका के ये वैज्ञानिक हैं, इनके दावे झूठे हो सकते हैं क्‍योंकि अमेरिका और चीन की आपस में मित्रता नहीं। लेकिन क्‍या इसे लेकर दुनिया के अन्‍य देशों के वैज्ञानिक जिसमें यूरोप के कई देशों के वैज्ञानिक हैं, वे भी आज झूठ बोल रहे हैं? जिनकी समय-समय पर आईं रिपोर्ट सीधे चीन को कटघरे में खड़ा करती हैं। वस्‍तुत: यह सभी रिपोर्ट्स झूठी नहीं, चीन झूठा है। वह नहीं चाहेगा कि किसी भी सूरत में वुहान से जुड़ी कोरोना वायरस के फैलने की सच्‍चाई दुनिया के सामने आए। फिर अब जब ये कोरोना जांच दल चीन भेजा भी जा रहा है, तो उससे निकलकर क्‍या परिणाम आएगा? उत्‍तर है यदि कोई तो यही कि इसमें चीन का कोई हाथ नहीं, चीन से कोरोना नहीं फैला।

यहां यह इसलिए कहा जा रहा है कि देखते ही देखते कोरोना को फैले पूरा एक साल बीत चुका है। क्‍या वहां चीन कोई सबूत छोड़ेगा, जिससे कि उसे यह जांच दल फंसा सके? अबतक पता नहीं कितनी बार वुहान लैब सहित पूरे शहर के अन्‍य प्रमुख स्‍थानों का कयाकल्‍प वह कर चुका होगा। डब्ल्यूएचओ प्रमुख टेड्रोस एडहैनम घेब्रयेसिस की नीयत इतनी साफ होती तो वह अपनी विशेषज्ञों की टीम भेजने में इतना वक्‍त नहीं लगाते। न कोरोना वायरस (कोविड-19) को महामारी घोषित करने एवं तुरंत वैश्‍विक हवाई यात्राओं को बंद कराने के लिए निर्देश जारी करने में इतनी देरी करते कि कोरोना चीन से वैश्‍विक महामारी बन सकता।

कहने का अर्थ है कि इस पूरे मामले में डब्ल्यूएचओ की भूमिका भी संदिग्‍ध है। सच यही है कि यदि कोरोना वैश्‍विक न होता तो चीन का दवाओं एवं इससे जुड़ा कई हजार अरब का बाजार गर्म नहीं होता। आज जिस तरह से खासकर उसकी दवा व चिकित्‍सकीय उपकरण बनानेवाली कंपनियों की ग्रोथ हुई है और इसका लाभ उसे तकनीकी उपकरण की तेज होती कीमतों के साथ तमाम स्‍तरों पर मिला है, वह कोरोना के वैश्‍विक हुए बगैर आज नहीं मिल सकता था।

अब जो साफ दिखाई दे रहा है, वह यही है कि पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की विशेषज्ञ टीम चीन में कोरोना से जुड़े जरूरी आंकड़े और सबूत इकट्ठा करेगी। जिसका कुल निष्‍कर्ष यही निकलेगा कि कोरोना चीन से नहीं फैला है। जबकि आंकड़ों एवं व्‍यवहारिक सच्‍चाई जो बार-बार सामने आती रही है वह यही है कि चीनी शहर वुहान में ही दुनिया का पहला कोरोना वायरस 2019 के अंत में पाया गया था और फिर वह देखते ही देखते विश्‍वव्‍यापी हो गया। वस्‍तुत: इस डब्ल्यूएचओ की विशेषज्ञ टीम से कोई जांच को लेकर उम्‍मीद लगाए कि उसके हाथ कुछ खास लग जाएगा और वह चीन को कोरोना महामारी फैलाने का जिम्‍मेदार मानेगी। यदि कोई ऐसा सोच रहा है तो वास्‍तव में वह अपने से ही छलावा कर रहा है।

(लेखक, हिन्‍दुस्‍थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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