जन्मजात दृष्टिबाधित दो सगे भाइयों को मिली नेत्र ज्योति
कोटा । जन्मजात दृष्टिबाधित दो सगे भाइयों का शुक्रवार को कोटा के एमबीएस अस्पताल के नेत्र विभाग में सफल ऑपरेशन होने के बाद नेत्रों की ज्योति लौट आई। दोनों भाइयों ने जब पहली बार अपने माता-पिता को देखा उसमें तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
नेत्र रोग विभागाध्यक्ष डॉ. जयश्री ने बताया कि बारां जिले के सीसवाली निवासी दिनेश (13) पुत्र नंदकिशोर व (14) वर्षीय बबलू के आंखों के अंदर जन्मजात हीरे का छोटा होना, हीरे का घूमता रहना और आंखों में मोतियाबिंद जैसी कमियां थी। दोनों की आंखों में रोशनी ना के बराबर थी। इनके पिता ने इनका दाखिला कोटा के झालावाड़ रोड़ स्थित मूक बधिर स्कूल में करवाया था। पिछले महीने अस्पताल की तरफ से मूकबधिर स्कूल में कैंप का आयोजन किया गया। कैंप में स्क्रीनिंग के दौरान 05 बच्चे चिन्हित किए गए, जिनको इस तरीके की शिकायत थी।
अस्पताल में जांच के बाद दोनों का ऑपरेशन किया गया। बबलू की दोनो आंखों व दिनेश की बायीं आंख में लैंस डाला गया। ऑपरेशन से दोनों भाइयों की आंखों की रोशनी लौटी ओर उन्होंने पहली बार अपने माता-पिता को देखा। बच्चों के पिता नन्दकिशोर ने बताया कि दोनों बच्चे जन्म से दृष्टिबाधित थे। कई जगह डॉक्टरों को दिखाया। लेकिन इनकी उम्र के कारण किसी ने भी ऑपरेशन के बाद आंखों की रोशनी लोटने की गारंटी नही ली। बच्चों का भविष्य देखते हुए इनको कोटा के मूक बधिर स्कूल में दाखिला करवाया ताकि इनका भविष्य बन सके। एमबीएस अस्पताल के डॉक्टरों ने जटिल ऑपरेशन कर इनकी जिंदगी में नई आशा की किरण पैदा की है।
मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ विजय सरदाना ने बताया कि दोनों बच्चों के जन्मजात जटिल बीमारी थी। ऐसी सर्जरी जितनी जल्दी हो वो अच्छा है। इस तरीके के केस में बच्चों की रोशनी वापस आने की संभावना रहती है। मेडिकल कॉलेज प्राचार्य डॉ. विजय सरदाना ने बताया कि जन्मजात दृष्टिहीन बच्चों का उपचार भी संभव है। इसके लिए समय पर डॉक्टर की सलाह और उपचार की आवश्यकता होती है। नेत्रहीन बच्चों की सर्जरी में जितनी देरी होती है, उतनी ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता है। नेत्र विभाग के सफल प्रयासों से दो बच्चों के नेत्रों की रोशनी लौटी है। अब दोनों भाई भी सामान्य लोगों की तरह पूरी दुनिया को देख सकेंगे और अपने सपने साकार कर सकेंगे।