जीव के दु:ख का कारण उसके कर्मों का फल : पंडित रूपेन्द्र कृष्ण जी महाराज
- सती चरित्र जड़ भरत कथा प्रसंग भी पूज्य महाराज ने सुनाया
मुरैना। श्रीमद भागवत कथा का आयोजन गोपी गार्डन में शर्मा परिवार द्वारा किया जा रहा है। आज कथा के तृतीय दिवस में पूज्य महाराज जी ने बताया कि वर्तमान समय में जीव अनेकों प्रकार से दुखी है उनके दुख का कारण उनके पूर्व और वर्तमान में किये अपराध है भगवान की भूक्ति से वह अपराध कट जाते हैं। भगवद नाम का सहारा लेकर व्यक्ति इस लोक और परलोक दोनों में आनंद पाता है कथा में पूज्य महाराज जी द्वारा सती चरित्र का भी वर्णन किया भगवताचार्य पं. रूपेन्द्र कृष्ण जी महाराज ने बताया कि माता सती के पिता दक्ष ने एक विशाल यज्ञ किया था और उसमें अपने सभी संबंधियों को बुलाया। लेकिन बेटी सती के पति भगवान शंकर को नहीं बताया। जब सती को यह पता चला तो उन्हें बड़ा दुख हुआ और उन्होंने भगवान शिव से उस यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी। लेकिन भगवान शिव ने उन्हें यह कहकर मना कर दिया कि बिना बुलाए कहीं जाने से इंसान के सम्मान में कमी आती है। लेकिन माता सती नहीं मानी और राजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में पहुंच गई। वहां पहुंचने पर सती ने अपने पिता सहित सभी को बुरा भला कहा और स्वयं को यज्ञ अग्नि में स्वाहा कर दिया। जब भगवान शिव को ये पता चला तो उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोलकर राजा दक्ष की समस्त नगरी तहस-नहस कर दी और सती का शव लेकर घूमते रहे। भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े किये। जहां शरीर का टुकड़ा गिरा वहां-वहां शक्तिपीठ बनी कथा में जड़ भरत चरित्र का वर्णन किया गया। जड़ भरत चरित्र का वर्णन करते हुये पूज्य महाराज जी ने बताया कि राजर्षि भरत ने जब मृग शरीर का त्याग किया, तो उन्हें ब्राह्मण का शरीर प्राप्त हुआ। ब्राह्मण का शरीर प्राप्त होने पर भी उन्हें अपने पूर्व-जन्म का ज्ञान पहले की ही भांति बना रहा। उन्होंने सोचा। इस जन्म में कोई विघ्न-बाधा उपस्थित न हो, इसलिये उन्हें सजग हो जाना चाहिए। वह अपने कुटुंबियों के साथ पागलों सा व्यवहार करने लगे। अर्थात ऐसा व्यवहार करने लगे कि जिससे उनके कुटुंबी यह समझे कि उसके मस्तिष्क में विकार उत्पन्न हो गया है। जड़ भरत के पिता उन्हें पंडित बनाना चाहते थे, किन्तु बहुत प्रयत्न करने पर भी वे एक भी श्लोक याद न करसके। उनके पिता ने उन्हें जड़ समझ लिया। पिता की मृत्यु के पश्चात मां भी चली बसी। कुटुंब में रह गये भाई और भाभियां, जड़ भरत के साथ बहुत बुरा व्यवहार करती थीं। जड़भरत इधर-उधर मजदूरी करते थे। जो कुछ मिल जाता था, खा लिया करते थे। और जहां जगह मिलती थी, सो जाया करते थे। सुख दुख और मान-सम्मान को एक समान समझते थे। भाईयों ने जब देखा कि उनके छोटे भाई के कारण उनकी अप्रतिष्ठा हो रही है, तो उन्होंने उन्हें खेती के काम में लगा दिया। जड़ भरत रात-दिन खेतों की मेड़ों पर बैठकर खेतों की रखवाली करने लगे। कथा में मथुर भजनों को सुन श्रोता मंत्रमुग्ध हुये।