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रमजान: इस देश के मुसलमान रखते हैं 20 घंटे का रोजा

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:20 May 2018 2:18 PM GMT

रमजान: इस देश के मुसलमान रखते हैं 20 घंटे का रोजा

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भारत में रमजान शुरू हो चुका है. इस दौरान मुसलमान एक महीने तक रोजे रखते हैं. रोजे के दौरान रोजेदार ना ही कुछ खाते हैं और ना ही कुछ पीते हैं. रमज़ान में मुसलमान सूरज के निकलने से पहले सुबह-सुबह सहरी करते हैं और सूरज के अस्त होने पर अपना रोजा इफ्तार के साथ खोलते हैं.
दुनिया के अलग-अलग देशों में सहरी और इफ्तार के वक्त हर साल अलग-अलग तो होते ही हैं साथ ही साथ रोजे के घंटे भी अलग-अलग होते हैं. इससे हर देश के लोगों के लिए रोजा रखने की चुनौती अलग-अलग हो जाती है.
लेकिन इन सब में सबसे अहम चुनौती नार्वे की है क्योंकि प्राय: यहां सूरज डूबने के इंतजार में तारीख बदल जाती है और सूरज अपनी जगह से टस से मस नहीं होता. फिलहाल, इस साल यहां दिन के लगभग 20 घंटों तक सूरज आसमान में बना रहता है.
नॉर्व में दो लाख के आसपास मुसलमान हैं. रमजान के पाक महीने की शुरुआत करते हुए नॉर्वे की मस्जिदों पर लटके लाउडस्पीकर सुबह पांच बजे के आसपास अजान देकर ऐलान कर देते हैं कि रोजा रखने का वक्त शुरू हो गया है. फिर इंतजार सूरज ढ़लने पर उस अजान का जो यह बताएगा कि अब रोजा इफ्तार करने का समय हो चुका है. यह इंतजार यहां लंबा है क्योंकि सूरज तो दिन के 20 घंटे यहां चमकता ही रहता है.
अब यहां रह रहे मुसलमानों के बीच बड़ी दुविधा है कि वह सूरज उगने से लेकर सूरज ढ़लने तक रोजा रखने के अपने इस पर्व को यहां कैसे मनाएं? क्या उन्हें दिन के 20 घंटे तक बिना खाए पिए रहना होगा या उनकी इस दुविधा के लिए कोई बीच का रास्ता निकाला जा सकता है? अब इस्लामिक हदिथ के मुताबिक, रमजान के पाक महीने में सच्चे मुसलमान को दिन के वक्त उपवास रखने और रात के वक्त इबादत करने को अल्लाह ने कम्पलसरी कर रखा है. लिहाजा, नॉर्वे और आसपास के कुछ देशों में मुसलमानों को 20 घंटे से अधिक रोजा रखना पड़ रहा है और बचे हुए 2-3 घंटे अगले दिन के रोजे की तैयारी में लगाना पड़ रहा है.
दरअसल रमजान की तारीख लूनर कैलेंडर से निर्धारित होती है इसलिए हर साल यह पर्व 11 दिन आगे बढ़ जाता है. लिहाजा बीते 2 साल के दौरान ही रमजान का महीना गर्मी के उस समय पर पहुंच गया है जब दिन के महज 2-3 घंटे के लिए यहां सूरज अस्त होता है. इससे पहले गर्मी में रमजान 1980 के दशक में पड़ा था लेकिन उस वक्त यहां मुसलमान जनसंख्या न के बराबर थी. अब इस बात पर ज्यादातर मुस्लिम लीडर भी एकमत हैं कि हदिथ के मुताबिक ऐसे इलाकों में रह रहे मुसलमानों को सूरज डूबने तक रोजा जारी रखना होगा. वहीं कुछ मुसलमानों ने कोशिश की कि वे साउदी अरब से फतवा करा लें कि उन्हें मक्का के समय के मुताबिक रोजा रखने की इजाजत मिल जाए. लेकिन ऐसा नहीं हो सका और उनके सामने चुनौती जस की तस है कि किस तरह दिन के 20 घंटे से अधिक समय तक बिना खाए पिए पूरे एक महीने इस पर्व को मनाएं. उम्मीद है इबादत इतनी शक्ति दे कि यह महीना कैसे बीत गया पता न चले.

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