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महाराष्ट्र के शिरडी में करें साईं बाबा के दर्शन

👤 Admin 1 | Updated on:16 May 2017 6:36 PM GMT

महाराष्ट्र के शिरडी में करें साईं बाबा के दर्शन

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शिरडी के साईं की प्रसिद्धि दूर दूर तक है और यह पवित्र धार्मिक स्थल महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित है. यह साईं की धरती है जहां साईं ने अपने चमत्कारों से लोगों को विस्मृत किया. साईं का जीवन शिरडी में बीता जहां उन्होंने लोक कल्याणकारी कार्य किए.

उन्होंने अपने अनुयायियों को भक्ति और धर्म की शिक्षा दी. साईं के अनुयायियों में देश के बड़े-बड़े नेता, खिलाड़ी, फिल्म कलाकार, बिजनेसमैन, शिक्षाविद समेत करोड़ों लोग शामिल हैं.

शिरडी में साईं का एक विशाल मंदिर है. मान्यता है कि, चाहे गरीब हो या अमीर साईं के दर्शन करने इनके दरबार पहुंचा कोई भी शख्स खाली हाथ नहीं लौटता है. सभी की मुरादें और मन्नतें पूरी होती हैं.

शिरडी के साईं बाबा

शिरडी के साईं बाबा का वास्तविक नाम, जन्मस्थान और जन्म की तारीख किसी को पता नहीं है. हालांकि साईं का जीवनकाल 1838-1918 तक माना जाता है. कई लेखकों ने साईं पर पुस्तकें लिखीं हैं. साईं पर लगभग 40 किताबें लिखी गई हैं.

शिरडी में साईं कहां से प्रकट हुए यह कोई नहीं जानता. साईं असाधारण थे और उनकी कृपा वहां के सीधे-सादे गांववालों पर सबसे पहले बरसी. आज शिरडी एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है.

साईं के उपदेशों से लगता है कि इस संत का धरती पर प्रकट होना लोगों में धर्म, जाति का भेद मिटाने और शान्ति, समानता की समृद्धि के लिए हुआ था. साईं बाबा को बच्चों से बहुत स्नेह था. साईं ने सदा प्रयास किया कि लोग जीवन की छोटी-छोटी समस्याओं व मुसीबतों में एक दूसरे की सहायता करें और एक दूसरे के मन में श्रद्धा और भक्ति का संचार करें. इस उद्देश्य के लिए उन्हें अपनी दिव्य शक्ति का भी प्रयोग करना पड़ा.

शिरडी का साईं मंदिर

शिरडी में साईं बाबा का पवित्र मंदिर साईं की समाधि के ऊपर बनाया गया है. साईं के कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए इस मंदिर का निर्माण 1922 में किया गया था. साईं 16 साल की उम्र में शिरडी आए और चिरसमाधि में लीन होने तक यहीं रहे. साईं को लोग आध्यात्मिक गुरु और फकीर के रूप में भी जानते हैं. साईं के अनुयायियों में हिंदू के साथ ही मुस्लिम भी हैं. इसका कारण है कि अपने जीवनकाल के दौरान साईं मस्जिद में रहे थे जबकि उनकी समाधि को मंदिर का रूप दिया गया है.

साईं मंदिर में दर्शन

साईं का मंदिर सुबह 4 बजे खुल जाता है. सुबह की आरती 5 बजे होती है. इसके बाद सुबह 5.40 से श्रद्धालु दर्शन करना शुरू कर देते हैं जो दिनभर चलता रहता है. इस दौरान दोपहर के वक्त 12 बजे और शाम को सूर्यास्त के तुरंत बाद भी आरती की जाती है. रात 10.30 बजे दिन की अंतिम आरती के बाद एक शॉल साईं की विशाल मूर्ति के चारो ओर लपेट दी जाती है और साईं को रुद्राक्ष की माला पहनाई जाती है. इसके पश्चात मूर्ति के समीप एक गिलास पानी रख दिया जाता है और फिर मच्छरदानी लगा दिया जाता है. रात 11.15 बजे मंदिर का पट बंद कर दिया जाता है.

साईं को रिकार्ड चढ़ावा

साईं के समाधि पर प्रतिदिन लाखों की तादाद में लोग आते हैं और साईं की झोली में अपनी श्रद्धा और भक्ति के अनुरूप कुछ दे कर चले जाते हैं. शिरडी के साईं बाबा का मंदिर अपने रिकार्ड तोड़ चढ़ावे के लिए हमेशा खबरों में भी रहता है. साल दर साल यह रिकार्ड टूटता ही जा रहा है. कुछ दिनों पहले किए गए आकलन के अनुसार साल 2011 में भक्तों ने यहां अरबों रुपये चढ़ाए हैं.

किसी ने साईं को सोने का मुकुट दिया तो किसी ने सोने का सिंहासन. किसी ने चांदी की बेशकीमती आभूषण दिए तो किसी ने करोड़ों की संपत्ति. कोई करोड़ों का गुप्तदान करके चला गया तो किसी ने अपनी पूरी जायदाद भगवान के हवाले कर दी. इस एक साल के दौरान करीब पांच करोड़ रुपये चढ़ावा आने की अधिकारिक पुष्टि की गई है.

आसपास क्या देखें

साईं म्यूजियम

साईं से जुड़े विभिन्न वस्तुओं का संग्रह है साईं म्यूजियम. यह म्यूजियम साईंबाबा संस्थान की देखरेख में चलाया जाता है और यहां साईं से जुड़ी कई निजी वस्तुएं भक्तों के दर्शन हेतु रखे गए हैं. साईं का पादुका, खानदोबा के पुजारी को साईं के दिए सिक्के, समूह में लोगों को खिलाने के लिए इस्तेमाल किए गए बर्तन, साईं द्वारा इस्तेमाल की गई पीसने की चक्की उन वस्तुओं में शामिल हैं जो लोगों को दर्शन के लिए इस म्यूजिमय में रखी गई हैं.

खानडोबा मंदिर

खानडोबा मंदिर मुख्य मार्ग पर स्थित है. इस मंदिर के मुख्य पुजारी महलसापति ने साईं का शिरडी में स्वागत करते हुए कहा था 'आओ साईं'. इस मंदिर में खनडोबा, बनाई और महलसाईं के प्रतीक रखे गए हैं.

शनि शिंगणापुर

अहमदनगर जिले में ही स्थित है प्रसिद्ध शनि शिंगणापुर मंदिर जो साईं के मंदिर से करीब 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. शनि शिंगणापुर गांव कि खासियत यहां के कई घरों में दरवाजे का ना होना है. यहां के घरों में कहीं भी कुंडी तथा कड़ी लगाकर ताला नहीं लगाया जाता है. मान्यता है कि ऐसा शनिदेव की आज्ञा से किया जाता है.

कैसे पहुंचे शिरडी

ट्रेन

मुंबई से शिरडी पहुंचने के लिए जनशताब्दी स्पेशल (01037), शिरडी फास्ट पैसेंजर (51033) ट्रेन प्रतिदिन चलती है. इसके अलावा अगर मनमाड स्टेशन पहुंचना हो तो मुंबई सीएसटी, लोकमान्य टर्मिनल और दादर से करीब 50 ट्रेनें उपलब्ध हैं. अगर आप पुणे से ट्रेन के जरिए शिरडी पहुंचना चाहते हैं तो प्रतिदिन तीन ट्रेनें उपलब्ध हैं.

दिल्ली से ट्रेन के जरिए मनमाड (Manmad) स्टेशन पहुंचे. दिल्ली से मनमाड पहुंचने के लिए प्रतिदिन ट्रेने चलती हैं. पंजाब मेल (12138), स्वर्ण जयंती (12782), झेलम एक्सप्रेस (11078), गोवा एक्सप्रेस (12780), कर्नाटक एक्सप्रेस (12628) समेत कई ट्रेने नई दिल्ली से प्रतिदिन मनमाड के लिए चलती हैं.

अगर आप चेन्नई से शिरडी पहुंचना चाहते हैं तो बुधवार और गुरुवार के दिन चेन्नई सेंट्रल से साईं नगर शिरडी सुपरफास्ट ट्रेन (22601) चलती है जबकि शुक्रवार और शनिवार को साईं नगर शिरडी-चेन्नई सेंट्रल सुपरफास्ट (22602) चलती है.

हैदराबाद से मनमाड जंक्शन के लिए दो ट्रेनें (17058 देवगिरी एक्सप्रेस और 17064 अजंता एक्सप्रेस) प्रतिदिन चलती हैं इसके अलावा पांच अन्य ट्रेनें भी उपलब्ध हैं जो अलग-अलग दिन मनमाड के लिए रवाना होती हैं.

सड़क

बई से शिरडी और शिंगणापुर के लिए प्रतिदिन बसें चलती हैं. रात दस बजे के आसपास बोरीवली से बस सेवा शुरू होती है जो अगले दिन सुबह शिरडी पहुंचती है. दिन में साईं के दर्शन और शाम तक शनि शिंगणापुर के दर्शन कर आप राज 10 बजे वापस बस पकड़ लें जो आपको अगले दिन सुबह मुंबई पहुंचा देगी. बस का किराया सुविधाओं के अनुसार 1000 रुपये से लेकर 5000 रुपये तक हो सकता है.

वायु मार्ग

अगर आप देश के दूसरे प्रांत से हवाई मार्ग के जरिए शिरडी पहुंचना चाहते हैं तो मुंबई या पुणे उतर कर यहां से टैक्सी, बस या ट्रेन के जरिए शिरडी (या मनमाड) पहुंच सकते हैं.

महत्वपूर्ण स्थलों से शिरडी की दूरी

शिरडी महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई से 296 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

नासिक से शिरडी की दूरी 122 किलोमीटर है.

अहमदनगर-मनमाड़ नैशनल हाईवे-10 पर अहमदनगर से लगभग 83 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

कोपरगांव से शिरडी की दूरी केवल 15 किलोमीटर है.

साईं की शिक्षा

जाति, धर्म, समुदाय, इत्यादि व्यर्थ बातों में ना पड़कर आपसी मतभेद को दूर कर आपस में प्रेम और सद्भावना से रहना चाहिए क्योंकि सबका मलिक एक है. यह साईं बाबा की सबसे बड़ी शिक्षा और संदेश है. साईं बाबा ने यह संदेश भी दिया कि हमेशा श्रद्धा, विश्‍वास और सबूरी (सब्र) के साथ जीवन व्यतीत करें.

लोगों में मानवता के प्रति सम्मान का भाव पैदा करने के लिए साईं ने संदेश दिया है कि किसी भी धर्म की अवहेलना नहीं करें. उन्होंने कहा है कि सर्वधर्म सम्मान करते हुए मानवता की सेवा करनी चाहिए क्योंकि मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है.

साईं सदैव कहते थे कि जाति, समाज, भेदभाव को भगवान ने नहीं बल्कि इंसान ने बनाया है. ईश्वर की नजर में कोई ऊंचा या नीचा नहीं है अतएव जो कार्य स्वयं ईश्वर को पसंद नहीं है उसे इंसानों को भी नहीं करना चाहिए. अर्थात जाति, धर्म, समाज से जुड़ी मिथ्या बातों में ना पड़कर प्रेमपूर्वक रहें और गरीबों और लाचार की मदद करें क्योंकि यही सबसे बड़ी पूजा है. उनका कहना था कि जो व्यक्ति गरीबों और लाचारों की मदद करता है ईश्वर स्वंय उसकी मदद करते हैं.

साईं ने सदैव माता-पिता, बुजुर्गो, गुरुजनों और बड़ों का सम्मान करने की सीख दी. उनका कहना था कि ऐसा करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है जिससे हमारे जीवन की मुश्किलें आसान हो जाती हैं.

साईं के सिद्धांतों में दया और विश्वास अंतर्निहित है. उनके अनुसार अगर इन दोनों को अपने जीवन में समाहित किया जाए तभी भक्ति का अनुराग मिलता है.

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