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देहरी पर खड़ा है अर्ध-मशीनी मानव..!!

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:20 Aug 2017 3:22 PM GMT

देहरी पर खड़ा है  अर्ध-मशीनी मानव..!!

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संजय श्रीवास्तव

अगर कोई समझता है कि मशीनी मानव का युग अभी बहुत दूर है तो यह एक बड़ी गलतफहमी है र् अर्धमशीनी मानव का युग तो बहुत ही करीब है र् एक तरह से वह देहरी तक पहुँच गया है र् अब बहुत समय नहीं बचा जब लोग चिकित्सकों के पास जाकर कहेंगे कि उनकी कमजोर सी दिखने वाली बाहें हटा कर शानदार,कारगर और नयी चमचमाती रोबोटिक बाहें जोड़ दी जायें या फिर साधारण पैर कभी गठिया से ग्रस्त हो जाते हैं कभी वात से,इन्हें अधुनिक तरह के पैरों से बदल दिया जाये. यह भी संभव होगा कि लोग कई गुना चुस्त दुरुस्त और फुर्तीले बनने के लिये अपना न्यूरल इम्प्लांट करायें र् दिमागी परेशानी से बचने के लिए मनचाही क्षमता वाला दिमाग लगवाने के लिये कोशिशें करते दिखें र् आसपास नजर दौड़ाएं तमाम लोगों में कुछ न कुछ हिस्सा मशीनी है र् कोई मशीनी पांव के साथ है तो किसी के हाथ मशीनी है,किसी के दिल को धड़काने के लिये पेसमेकर या फिर धड़कनों को काबू में रखने के लिये डिफ्रेबेलेटर लगा है र्
सुनने की मशीन जो शरीर के भीतर ही फिट हो या फिर ऐसे ही कृत्रिम अंगों सहारे जीने वाले बहुतेरे मिल जाएंगे जिन नकली अंगों में बहुधा मशीनी भी होंगे और अगर नहीं तो निकट भविष्य में वे अंग आधुनिक और मशीनी होंगे र् प्रोस्थेटिक या नकली अथवा नकली अंगों का बढता बाजार बताता है कि यह चलन बेहद तेजी से बढता जा रहा है र्Dिाभी वैज्ञानिकों ने ऐसा हाथ विकसित किया है जो अपनी उंगलियों से सामान्य हाथ की तरह काम ले सकेगा और उसमें हर हरकत उसे धारण करने वाले के दिमाग से मिले संकेतों के अनुसार होगी र् भविष्य में ऐसे हाथ स्पर्श के मामले में और बेहतर अनुभव कर सकेंगे और इन हाथों से कपड़ों पर प्रेस करना हो या थोड़ा बहुत बोझ उठाना हो तो वह आसानी से संभव होगा र् इससे पहले भी मायोइलेक्ट्रिक अंगों का विकास हो चुका है जो मांसपेशियों से मिली विद्युत तरंगों के हिसाब से हरकत कर सकते हैं र्
पैराओलंपिक में जो ब्लेड रनर दौड़ रहे हैं उनके पैर जैविक अंग से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं. पहनने वाले तमाम किस्म के मेकेनिकल गजेट्स हों या मेडिकल रोबोट अथवा टाइटेनियम कार्बन के संयोग से बनी हड्डी का प्रतिस्थापन्न सब इसी ओर इशारा कर रहे हैं कि चार पांच दशक में मनुष्य के भीतर बहुत सा हिस्सा मशीनी होगा और वह अर्ध मशीनी मानव के तौरपर जीयेगा र् गौर करें तो स्मार्ट फोन आपके संचार संवाद और याददाश्त के लिये एक अलग मशीनी अंग ही तो है र् हो सकता है यह भविष्य में मनुष्य के भीतर ही फिट किया जा सके,सोचते ही नंबर मिल जाये बातचीत हो जो कुछ याद करना हो वह इसके भीतर से निकल कर दिमाग में आ जाये र् जिन लोगों को लकवा मार गया है और वे शरीर के हाथ पांवों से लाचार है उन लोगों के लिये मेडिकल और मिलेट्री एक्सोस्केलटेन पहले ही विकसित हो चुका है जो ऐसे व्यक्ति को न सिर्फ चलने फिरने की क्षमता देता है बल्कि किसी सामान्य मनुष्य के कई गुना वजन उठाने की भी क्षमता बख्शता है र्
घायल सैनिकों या ऐसे लोगों का बेकार अंग बदलने की बजाये उन्हें एक्सोस्केलटन पर खड़ा कर देना बेहतर विकल्प हैर् कंप्यूटर विजन और तमाम दूसरी तकनीक मिलकर इस तरह की आंखें विकसित कर चुके हैं जो किसी कैमरे की तरह काम करेंगी और सामान्य आंखों का बेहतरीन विकल्प होंगी र् इलेक्ट्रानिक आई और बायोनिक आई अब महज किताबी बात नहीं रही र् यह बकायदा लगाये जाने के लिये तैयार हैं र् बायोमेकेनिक्स या जैविक अभियांत्रिकी में इस तरह के बदलाव मांसपेशियों को अकूत ताकत बख्शेंगे और उनके मूवमेंट भी बहुत बढिया हो जाएंगे र् शोधार्थी इतना कुछ करने के बाद भी इस फिराक में हैं कि इस क्षेत्र में कैसे सर्वोत्तम उपलब्धि हासिल की जा सके. कंप्यूटर,रोबोटिक्स और चिकित्सा विज्ञान के साथ-साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता,तमाम तरह के सेंसर्स और आभासी वास्तविकता इत्यादि तमाम तकनीक मिलकर एक दिन अर्धमशीनी मानव की बड़ी जमात तैयार कर देने वाले हैं र्
भविष्य में यह अनुभव होगा कि विकलांगों अथवा अंगविहीन लोगों के लिये मशीनी या कृत्रिम अंगों के प्रतिस्थापन वाली सहायक तकनीक भले ही मनुष्य की शारीरिक क्षमता को कई गुना बढा दे पर यह बदलाव या कायांतरण सामाजिक,राजनीतिक तथा आर्थिक क्षेत्र में बेहद अलग तरह के और अबूझ परिवर्तन लायेंगे र् ाढमिक प्राकृतिक विकास के जरिये जिन खासियतों को हासिल करने में हजारों साल लगे उसे दो दिन में ही पा लेना,धीरे धीरे इसका प्रसार बहुतेरे लोगों तक हो जाना स्वास्थ्य लाभ तो देगा पर भविष्य में उसकी कीमत भी वसूलेगा र् प्राकृतिक और अप्राकृतिक या मशीनी बदलावों का मेल कई बार प्रतिकूल परिणाम ला सकता है र् वैसे भी कम ही लोग इस सुविधा का लाभ उठा पायेंगे र् निस्संदेह वे सामान्य से बहुत ज्यादा बेहतर जीवन यापन करेंगे और क्षमतावान होंगे र्
बहुत से लोग अपनी विकलांगता और अक्षमता से निजात पा जायेंगे पर जो इसमें समर्थ न होंगे उनका क्या ? तब दस लोग अगर बैसाखी पर होंगे तो दो ब्लेड रनर र् यह समाज में भारी विभेद और असंतोष की वजह बनेगा र् कुछ लोग न सिर्फ आर्थिक तौर पर बल्कि सामाजिक,आर्थिक और संवेदना के स्तर भी बौने साबित होने लगेंगे र् अभी चिकित्सा विज्ञान या कृत्रिम अंगों का मुख्य उद्देश्य घायल या बेकार हो जाने पर प्रतिस्थापित या प्रत्यारोपित कर उनसे काम लेना है,भविष्य में इस तरह इस्तेमाल किये जाने वाले ये अंग मशीनी होंगे और मशीनें खराब भी होती हैं निस्संदेह उनको अभियंत्रिकी सहायता से मैकेनिकली सुधारा भी जा सकता है र् पर सवाल यह है कि अभी मनवीय अंगों में खराबी या विकृति आ जाने अथवा उनके रोगग्रस्त हो जाने पर चिकित्सा विज्ञान का सहारा लेकर उन्हें ठीक किया जाता है,क्या भविष्य में भी इन मशीनी अंगों के लिये दवाओं और चिकित्सकीय प्रविधियों की आवश्यकता होगी र् क्या मशीनी दिल,गुर्दे,हाथ पांव,आंख नाक,कान के लिये दवाइयों की जरूरत आज जैसी ही बनी रहेगी?फिलहाल ये आशंकाएं उस परिदृश्य के आम होने के बहुत बाद की हैं जब अर्ध मशीनी मानव सड़्कों,गलियों में आम घूमते पाये जायेंगे र्

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