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हॉकी के नये कोच हरेंद्र सिंह का कहना है - आलसियों के लिए टीम में अब कोई जगह नहीं है

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:24 Jun 2018 3:10 PM GMT

हॉकी के नये कोच हरेंद्र सिंह का कहना है -  आलसियों के लिए टीम में अब कोई जगह नहीं है

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सारिम अन्ना

भारत की पुरुष हॉकी को जितनी बारीकी व गहराई से हरेन्द्र सिंह जानते हैं, शायद इतना कोई दूसरा नहीं जानता है। यह अलग बात है कि वह अभी तक हाशिये पर ही रहे। हरेन्द्र अपने खिलाड़ियों को खूब जानते, समझते व पहचानते हैं; क्योंकि हॉलैंड में जल्द होने जा रही चैंपियंस ट्राफी के लिए जो 48 सदस्यों का दल बंग्लुरु में फिलहाल ट्रेनिंग ले रहा है, उनमें से फ्रत्येक खिलाड़ी, पी आर श्रीजेश व सरदार सिंह जैसे सीनियर्स सहित, किसी न किसी समय पर उनका छात्र रहा है। इस साल चैंपियंस ट्राफी के अलावा दो अन्य बड़ी परीक्षाएं हैं- एशियन गेम्स और वर्ल्ड कप। हरेन्द्र हॉलैंड में फ्रयोग करना चाहते हैं।

नवनियुक्त कोच हरेन्द्र यह समझाते हुए कि वह क्या करना चाहते हैं, बताते हैं, "पूर्व भारतीय टीमों की तुलना में इस बार दो चीजें बहुत अलग होंगी। आाढमक पैटर्न बहुत अलग होगा और जिन खिलाड़ियों के पास गेंद नहीं होगी उनकी पोजीशन और उनका गेम-प्लान निश्चित रूप से इतना अलग होगा कि अन्य टीमों ने पहले कभी देखा नहीं होगा। छोटे-छोटे अन्य बदलाव भी होंगे, लेकिन ये दो महत्वपूर्ण रहेंगे।' हरेन्द्र के लिए नतीजों की अहमियत है और उन्हें विश्वास है कि वह उन्हें हासिल करने की फ्रािढया में हैं। उनकी कोशिश टर्फ पर शुरू व खत्म नहीं होती है, वह यह सुनिश्चित करते हैं कि लड़के निरंतर खेल से जुड़े रहें, उसके बारे में सोचें, अगले मूव की तैयारी करें। वह बताते हैं, "मैंने पहला काम यह किया कि एक छोटी फ्रश्नावली हर खिलाड़ी को भेजी। मैंने उन्हें बताया कि मैं क्या सोच रहा हूं और उन्हें कामयाबी की राह पर लाने के लिए उनके लिए क्या योजना बना रहा हूं? लेकिन इसके लिए मुझे पहले उनके मन की बात जानना जरूरी है। मैंने उनसे कुछ फ्रश्न मालूम किये- व्यक्तिगत तौरपर, एक टीम के रूप में और देश की मांग के लिए उनका 2018 के लिए विजन क्या है? मैंने उनसे मालूम किया कि वह अपने आप से, कोचिंग स्टाफ से क्या उम्मीद रखते हैं और वह किन क्षेत्रों में योगदान देने की सोचते हैं?'

यह सिर्फ टीम बनाने का फ्रयास नहीं था बल्कि हरेन्द्र यह देखना चाहते थे कि कितने खिलाड़ी समान वेवलेंथ पर हैं। वह कहते हैं, "मैं उस खिलाड़ी के बारे में ज्यादा अच्छा नहीं सोचता जो सिर्फ देश के लिए खेलना चाहता है, भले ही यह बात कितनी ही अच्छी व सम्मानित फ्रतीत हो। मेरा मानना है कि आप हमेशा अपने लिए पदक जीतें क्योंकि सिर्फ इसी की ही गिनती होती है और केवल तभी आप विकास करने व जीतने के बारे में सोच सकते हैं।' दरअसल मानसिकता में बदलाव ही सबसे बड़ा परिवर्तन है जो हरेन्द्र लाने का फ्रयास कर रहे हैं। यह काम उन्होंने जूनियर टीम के साथ किया, लेकिन तब उनके पास तीन वर्ष थे, फ्री हैंड था और उनके ऊपर स्पॉटलाइट भी नहीं थी। सीनियर टीम के साथ उन्हें अभी सिर्फ एक माह ही हुआ है, उन पर निरंतर स्पॉटलाइट है और चुनौतियां अधिक क"िन हैं। वह कहते हैं, "लड़कों ने ट्रेनिंग सत्र की फ्रतीक्षा नहीं की, जिस दिन मेरी नियुक्ति हुई हर कोई मुस्कुराता हुआ मुझसे मिलने के लिए नाश्ते की मेज पर आया। यह किसी भी कोच के लिए बड़ा फ्रोत्साहन है।'

मैदान में हरेन्द्र ने भारत की ताकत व चिंताओं को पहचाना और विशेष ध्यान के लिए उन्हें श्रेणीबद्ध किया। सबसे चिंताजनक स्थिति पेनल्टी कार्नर को गोल में बदलने की दर को लेकर है, जिससे टीम राष्ट्रकुल खेलों में भी संघर्ष करती हुई नजर आयी थी कि 39 में से 10 ही कन्वर्ट हुए। यह तब हुआ जब भारत के पास चार पेनल्टी कार्नर विशेषज्ञ थे। हरेन्द्र ने इस क्षेत्र में अधिक काम किया है। वह कहते हैं, "मैं खिलाड़ियों की तकनीक नहीं बदलना चाहता। जिस कोण से वह अब शॉट ले रहे हैं उससे कभी भी ज्यादा गोल नहीं किये जा सकते। स्टॉपर व इंजेक्टर की पोजीशन को बदला है, विभिन्नता की योजना बनायी है, फ्रत्यक्ष व अफ्रत्यक्ष कन्वर्जन की फ्रैक्टिस की है। आपको पेनल्टी कार्नर के निश्चित रूप से बेहतर नतीजे मिलेंगे।'

चिंता का अन्य क्षेत्र टीम का समन्वय था। इसके लिए हर खिलाड़ी की जिम्मेदारी निर्धारित की गई है दोनों सूरतों में कि जब उसके पास गेंद हो और जब नहीं हो। यह स्पष्ट कर दिया गया है कि खेल के दौरान खिलाड़ी को कितना दौड़ना है। उनसे कहा गया है कि उन्हें पीछा करना है, लड़ना है यानी गेंद वापस हासिल करने के लिए सब कुछ करना है। लड़के अब जानते हैं कि जो भी गेंद के सबसे निकट है उसे कड़ी मेहनत करनी है। हरेन्द्र के अनुसार आलसियों के लिए टीम में कोई स्थान नहीं है।

हरेन्द्र ने जूनियर टीम के साथ छह माह केवल इस बात पर लगाये थे कि साइडलाइन पर गेंद के साथ दौड़ते हुए नीचे न देखा जाये। यही कुछ सीनियर टीम को भी सिखाया गया है। जो जूनियर टीम से सीनियर में आये हैं वह तो इस तकनीक में माहिर हैं, लेकिन जो सीनियर इसे नहीं जानते उनसे कहा गया है कि वह गेंद को ड्रिबल करने की बजाय रोल करें। ऐसी स्थिति में "ाsड़ी अपने आप ऊपर चली जाती है, विजन बढ़ जाता है और आप तेजी से पास कर सकते हैं। इस तकनीक के बिना हमारे खिलाड़ी अपने ही 25 गज में ड्रिबल करते थे, गेंद पर कब्जा खो बै"ते थे और अपने पर ही गोल होने की आशंका बढ़ जाती थी। हरेन्द्र की पहचान है आउटलेटिंग, जिससे वह कुलीन कोचों की श्रेणी में आ गये हैं। वह अपने इस ट्रेडमार्क को छोड़ना नहीं चाहते। आउटलेटिंग का अर्थ है गेंद को रक्षा से अटैक की स्थिति में लाना, इससे स्कोर करने के अवसर बढ़ जाते हैं। इसके लिए इंटेलिजेंस व सुफ्रीम फिटनेस की जरुरत होती है, जो हरेन्द्र टीम में लाने का फ्रयास कर रहे है।

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