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कैसे कह दूं कि थक गया हूं मैं...

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:24 Dec 2018 4:34 PM GMT
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संतोष यादव

चले थे जानिबे मजिंल अकेले मगर,लोग आते गये कारवां बनता गया। मजरूह सुल्तानपुरी की उपरोक्त पंक्तियां उनके जिले के ही प्रख्यात समाजसेवी करतार केशव यादव पर सटीक बैठ रही है। 40 वर्ष पूर्व जनसेवा के चुनौती भरे मार्ग पर चलने का फैसला उनका अकेले का था लेकिन आज करतार के पीछे सेवादारों की एक लम्बी कतार है। जनसेवा में नौकरी दौरान वेतन, सेवानिवृत्त बाद पेंशन ने उनकी राह आसान बनाई।

शहीद स्मारक सेवा समिति के रुप में उनकी टीम द्वारा वर्षो पूर्व जो पौध रोपित किया था, आज वह वटवृक्ष का रुप ले चुका है। जिसकी छाया सैकड़ों नहीं हजारों को मिल रही है। करतार अपनी जिंदगी का यही सबसे बड़ा सुकून मानते है। जनसेवा कार्यो के लिये करतार केशव को सामाजिक संस्था भारत भारती द्वारा सुल्तानपुर रत्न, सुल्तानपुर गौरव व 2001 में तत्कालीन राज्यपाल विष्णुकान्त शास्त्राr भी सम्मानित कर चुके हैं। सेवाकार्यों में मिल रहे जन सहयोग एवं शहरवासियों से मिले प्यार ने उन्हें हौसला दिया है। उम्र के इस ढलान पर भी उनमें सेवा के प्रति जज़्बा कम नही हुआ। 70 वर्ष की इस उम्र में भी उनमें गजब की फुर्ती है। वे दबे,कुचले, लावारिस, बेसहारा, निर्बल, असहाय लोगों के लिये नूर है, तो किसी के लिये मसीहा। करतार के सेवा कार्यो में वे भी आज हमसफर हैं, जिनकी कभी करतार एवं उनकी टीम ने किसी भी रुप में कभी मदद की थी। लावारिस मरीजों की सेवा, निर्बलों को रक्त देना, गरीबों को ठण्ड से निजात दिलाना, जरुरत मन्दों को रोजगार से जोड़ना, प्यासों के लिये जल प्याऊ चलाना, गन्दी नालियां, पार्को, गोमती नदी, शमशान घाट की साफ सफाई करना, जगह-जगह वृक्षारोपड़ करना,शहीदों महापुरुषों की मूर्तियों की साफ- सफाई जैसे बहु आयामी कार्य इनकी सेवा में शुमार हैं। घर से निकलते समय हमेशा अपने साथ कुछ रुपये और झोले में मास्क रखना करतार कभी नहीं भूलते वजह कहां रास्तें में कोई जरुरत मन्द मिल जाये जिसकी मदद कर सके। या कहीं गन्दगी दिख जाये जिसे हटा सकें। मजेदार बात तो ये है कि ये सब कार्य करतार किसी सम्मान व शोहरत के लिये नहीं, किसी प्रचार-प्रसार के लिये नहीं करते है। इनकी सेवा निस्वार्थ होती है। सेवा करने का उनमें ऐसा जुनून है। सुबह घर से निकले और शाम को कब पहुँचेगे तय नहीं होता। जनसेवा के प्रति करतार के इस समपर्ण को किसी ने दीवानापन, किसी ने पागलपन समझा तो किसी ने भिखारी समझ इनके हाथ पर एक रुपया का सिक्का रख दिया। लेकिन वह कभी इसका बुरा नहीं माने। सेवा के शुरुआती दौर में संघर्ष भी बहुत रहा, लेकिन कभी हार नहीं मानी। अपने बनाये रास्ते पर चलने की ठानी। अपनी धुन में मस्त रहे। वे भाषणबाजी नही काम में भरोसा रखते है। शालीनता और सज्जनता की प्रतिमूर्ति करतार की यही सोच उन्हे भीड़ से अलग करती है। करतार नें जहां चाह, वहां राह पर अमल करते हुए बूंद-बूंद से गागर नहीं सागर भरा है। उन्हे चन्दे के रुप में एक रुपया से लेकर हजारों रुपया तक देने वाले नामों की एक लम्बी फेहरिस्त है। इनमें कुछ गुप्त दानी भीं हैं। इस सबका पाई-पाई हिसाब करतार अपने झोले में रखे रजिस्टर में रखते है। उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर जिले के परऊपुर गावं निवासी बनवारी राम यादव एवं मां रामदासी की चार संतानों में सबसे छोटे करतार केशव के मन में सेवा का भाव 14 वर्ष की आयु में उस समय पनपा जब श्रमदान से गांव में 1 किमी कच्ची सड़क बनाई।साथ ही अपने गांव के ही एक अन्धे,लगंड़े दम्पति को भोजन कराते उसके बदलें में दम्पत्ति से मिले प्यार ने करतार के अन्दर सेवा के भाव जगाये। पढ़ाई के दौरान गरीब छात्रों के लिये किताबे जुटाते। उर्त्तीर्ण छात्रों से किताबे लेकर गरीब छात्रों को देते। जो किताबे बचती उसे कालेज की लाईब्रेरी में जमा कर देते। बचपन से सेवा एवं श्रमदान की जो शुरुआत हुई वह आज भी 70 वर्ष की इस उम्र तक जारी है। 1977 में सिविल कोर्ट सुलतानपुर में उन्हें रिकार्ड कीपर के पद पर नौकरी मिल गई। नौकरी मिलने से गरीबों की मदद को उनके हाथ और खुल गये। सरकारी ड्यूटी के बाद जो समय बचता वह गरीबों की सेवा को समर्पित था। ड्यूटी से छुट्टी मिलते ही करतार सीधे अस्पताल की ओर कूच करते वहां जिन्दगी से जंग लड़ रहे मरीजों में जरूरतमन्दों की तलाश कर उनकी मदद करते। जिंदगी एवं मौत के बीच जूझ रहे लोगों को जब उनके सगे सम्बन्धी खून देने से कतराये तो उनके लिये करतार की टीम आगे आई।

40 बार खुद रक्तदान किया। प्रेरित कर पंद्रह सौ से अधिक लोगो को तीन हजार बार रक्त दान कराकर जीवन से नाउम्मीद हो चुके लोगों को नई जिन्दगी दी। युवा पीढ़ी को शहीदों के त्याग, बलिदान की गाथा से परिचित कराने के उद्देश्य से 19 दिसम्बर 1985 को शहीद स्मारक सेवा समिति बनाई। चन्द्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, सुभाषचन्द्र बोस, रानी लक्ष्मी बाई, राम प्रसाद बिस्मिल आदि ाढान्ति कारियों की प्रमुख स्थानों पर प्रतिमाएं लगवाई। शहीद अशफाक उल्ला खां की याद में जिला अस्पताल के अन्दर रैन बसेरा व शमशान घाट पर ाढांतिकारी शचीन्द्र नाथ बख्शी की स्मृति में शवयात्री कक्ष का निर्माण कराया। 18 वर्ष पूर्व 1999 में सहयोग पुंज नाम से एक अस्पताल की नीवं रखी, जहां गरीबों का निशुल्क इलाज होता है। जिले के नामी चिकित्सकों की सेवायें भी इस अस्पताल के लिये निशुल्क होती हैं। 15 अगस्त 2008 से 145 अंशदान डिब्बे समिति की तरफ से शहर में जगह-जगह लोगों के घरों पर रखे गये। डोर टू डोर सम्पर्प एवं अंशदान से लाख रुपयें की राशि एकत्रित हुई। लोहरामऊ के निकट पहले से समिति द्वारा खरीदी गई जमीन पर संचय हो रही राशि से इण्डोर हास्पिटल का निर्माण करतार केशव का सपना है। हलाकि चिकित्सकों के अभाव में इंडोर हॉस्पिटल का उनका यह सपना अभी अधूरा है। सुलतानपुर में सेवा के क्षेत्र में कार्यरत दर्जनों संस्थाओं के वे प्रेरक है। करतार को ाढान्तिकारी दादा शचीन्द्रनाथ वक्शी, मनमथनाथगुप्ता व जयदेव कपूर जैसी शख्सियत का भी आर्शीवाद मिला है। पूरा जीवन मानव सेवा में गुजार चुके करतार केशव का अब दूसरो के लिऐ जीना ही अपनी जिंदगी का मकसद बना चुके है। बातचीत के अंत में करतार केशव नें इन्हीं पक्तियों के साथ अपनी बात समाप्त की। 'मेरा जीवन कोरा कागज कोरा ही रह गया, जो लिखा था वह आसुओं के संग बह गया।

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