नाजीवादी जख्म का एहसास करना है
म्युनिख की विख्यात कुकु क्लॉक, ग्लोकनस्पिएल के बाहर खड़ा हूं। चारो तरफ गोथिक शैली की बिल्डिंगे हैं, जिनमें सुंदरता से ब्रांडेड यूरोपीय दुकानें `पैक' हैं। इस शहर का यही केन्द्राrय विरोधाभास-एक तरफ बवेरियन विरासत व परम्परा और दूसरी तरफ स्वच्छ कॉस्मोपॉलिटनवाद मुझे बहुत पसंद आया। म्युनिख के बाहर मेरी पहली यात्रा मुझे डचाऊ मेमोरियल साईट ले जाती है। यह नाजी शासन के पहले कंसंट्रेशन कैंप के संरक्षण हेतु समर्पित है। अधिकतर बिल्डिंगे- बैरक,मॉडल गैस चैम्बर, जिसका कभी फ्रयोग नहीं हुआ और गार्ड टावर- अपने मूल रूप में हैं। बस इनके कंटेंट को म्यूजियम में फ्रदर्शित होने वाली चीजों से बदल दिया गया है। इस जगह की संदिग्धता को अनदेखा करना क"िन है जो इसके दमनकारी उद्देश्य को एकदम व्यक्त करती है। म्युनिख पर्याप्त बहादुर शहर है, जो अपने त्रासदीपूर्ण अतीत से शर्माता नहीं है।
इसे देखकर मुझे गुलाम रब्बानी `ताबां' का यह शेर याद आ गया-`दीवारो-दर पर लिखी हैं क्या क्या कहानियां/सदियों का दर्द शहर की पहचान बन गया'। हालांकि ट्रेन से नुरेम्बर्ग पहुंचने के लिए म्युनिख से दो घंटे का समय लगता है, लेकिन इस शहर ने म्युनिख की तुलना में बवेरियन विरासत व परम्परा को अधिक व्यवस्थित अंदाज में सुरक्षित रखा है। मैंने जब कैसरबर्ग कैसल हिल के ऊपर से इस शहर का नजारा लिया तो लाल ईंटों की अनोखी छतें दूर तक नजर आयीं और उनके बीच में कहीं कहीं गोथिक स्पायर दिखाई दिए। इस शहर में लंच मेनू बमुश्किल ही बदलता है- वेइसवुर्स्ट (बछड़े का मांस व शूकर सासेज), आलू सलाद और गेहूं की बियर। नुरेम्बर्ग से निकलकर पैलेस ऑफ जस्टिस में आना ऐसा था मानो कई सदियां कूद गये हों। इस पैलेस में वह अदालत है जिसमें युद्ध के बाद सैन्य ट्रिब्यूनल्स में फ्रमुख नाजी नेताओं पर मुकदमे चलाये गये थे और सजाएं दी गई थीं।
यहां गवाहों के कटघरे सहित कमरे के लेआउट को अपने मूल रूप में बरकरार रखा गया है। छत पर ऊपर के कमरों में अनुभव इससे भी भयावह हुआ, म्यूजियम में अन्य चीजों के अतिरिक्त ट्रायल्स के ऑडियो भी हैं। कमजोर दिल वालों से मेरी गुजारिश है कि वह इसका अनुभव न करें। म्युनिख के बाहर दो दिन गुजारने के बाद मैं ओबेरम्मेर्गौ के लिए निकल पड़ा, जो अब मेरा नया बेस होने जा रहा था। ऑस्ट्रिया की सीमा से यह मात्र एक घंटे के फासले पर स्थित है। इस अजीब शहर के घरों की दीवारों पर क्लासिक परीकथाओं के म्युरल्स हैं, रेड राइडिंग हुड से लेकर हंसल व ग्रेटेल तक। इसकी हर स्ट्रीट पर स्थायी ािढसमस शॉप्स हैं, जिससे पहाड़ों के बीच बसे इस शहर में हमेशा उत्सव का एहसास रहता है।
आपने वाल्ट डिज्नी का सर्वव्यापी लोगो देखा होगा। उसकी फ्रेरणा नयूस्चवांस्टीन कैसल है, जो बहुत सुंदरता के साथ अर्बन म्युनिख और अजीब ओबेरम्मेर्गौ के बीच स्थित है। यह कैसल जितना ऐतिहासिक रहस्य में छुपा हुआ है उतना ही सुबह की गीली धुंध से ढका हुआ है। मुझे बताया गया कि इसके इंटीरियर के जरिये कंपोजर रिचर्ड वाग्नर को ट्रिब्यूट दी गई है, दीवारों को ज्वलंत फ्रेस्को-जैसी पेंटिंग्स से सजाया गया है, जिनमें वाग्नर के सीन फ्रदर्शित किये गये हैं। हद तो यह है कि फानूसों को भी नाजुक शाही अंदाज में मुकुट जैसा बनाया गया है। इसलिए यह आश्चर्य नहीं है कि पहाड़ी से नीचे उतरने के लिए लोग घोड़ा बग्घी को फ्राथमिकता देते हैं।
1633 में ओबेरम्मेर्गौ में बूबोनिक प्लेग के एक घातक स्ट्रेन के कारण भयानक महामारी फैल गई थी। शहर के नागरिकों ने वायदा किया कि अगर खुदावंद उन्हें `सुरक्षित' रखेगा तो वह यीशु मसीह के जीवन व मृत्यु पर एक नाटक तैयार करेंगे। चमत्कारिक रूप से उनकी इच्छा पूरी हो गई। ग्रामीणों ने अपना वायदा पूरा किया और पहले नाटक का मंचन 1634 में हुआ। यह परम्परा बन गई और तब से हर दसवें वर्ष इस नाटक का मंचन होता आ रहा है। अब 2020 में इस नाटक का मंचन 16 मई से 4 अक्टूबर तक किया जायेगा। कहा जाता है कि नयूस्चवांस्टीन कैसल के फ्रायोजक व आर्किटेक्ट राजा लियोपोल्ड-2 ने इसका निर्माण इसलिए कराया था ताकि वह राजनीतिक तनाव से कुछ राहत पाने के लिए इसमें आकर समय बिता सके।
आज भी इन यादों से बचना असंभव है। इस कैसल में आकर सुकून मिलता है। मेरा अगला पड़ाव केहलस्टीनहास (यानी चील का घौंसला) था। पहाड़ी के ऊपर बने इस रिट्रीट में अडोल्फ हिटलर और फ्रमुख नाजी नेता जश्न मनाने के लिए या आराम करने के लिए आते थे।
इस तक पहुंचने के लिए पहले एक गुफा से होकर गुजारना पड़ता है और फिर एक विशाल ब्रास एलीवेटर का सहारा लेना पड़ता है। हिटलर की तथाकथित चक्कर आने की समस्या का अर्थ है कि वह कमी से ही यहां पर आता होगा। आज इस घर को एक रेस्टोरेंट में बदल दिया गया है और जहरीले इतिहास का लगभग न के बराबर ही यहां फ्रभाव दिखाई देता है।