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बेरोजगारी की स्थिति चिंताजनक है

👤 manish kumar | Updated on:17 Nov 2019 4:23 PM GMT

बेरोजगारी की स्थिति चिंताजनक है

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वधिक श्रम बल सर्वे ने अनुमान लगाया है कि जुलाई 2017 व जून 2018 के बीच बेरोजगारी दर 6.1 फ्रतिशत थी, जो पिछले 45 वर्ष के दौरान सबसे खराब थी। इसी बात की लगभग पुष्टि करते हुए सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) ने एक नवंबर को कहा कि अक्टूबर 2019 में बेरोजगारी दर बढ़कर 8.5 फ्रतिशत हो गई है, शहरी बेरोजगारी दर 8.9 फ्रतिशत है और ग्रामीण बेरोजगारी दर 8.3 फ्रतिशत है। राज्यों में त्रिपुरा व हरियाणा में 20 फ्रतिशत से अधिक पर बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा है, जबकि तमिलनाडु में सबसे कम (1.1 फ्रतिशत) है। राजस्थान में बेरोजगारी दर सितंबर व अक्टूबर 2019 के बीच दोगुनी हो गई।

यह डाटा ऐसे समय आया है जब अर्थव्यवस्था में मंदी के अन्य संकेत भी मिल रहे हैं। सितंबर में कोर सेक्टर आउटपुट ने पिछले 14 वर्ष के दौरान अपनी सबसे खराब सिकुड़न देखी। इससे पहले अगस्त में औद्योगिक आउटपुट पिछले छह वर्ष में सबसे तेज दर से सिकुड़ी। संतोष मेहरोत्रा व जाति के परिदा के नये अकादमिक पेपर में यह औपचारिक निष्कर्ष निकाला है कि 2011-12 व 2017-18 के बीच कुल रोजगार में कमी आयी है। आजाद भारत के इतिहास में यह पहला अवसर है, जब रोजगार पतन को रिकॉर्ड किया गया था। हालांकि इस प्वॉइंट को इन लेखकों सहित कुछ अन्य लेखकों द्वारा जैसे जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के हिमांशु ने भी व्यक्त किया है, लेकिन इस संदर्भ में यह पहला औपचारिक पेपर है।

अजीम फ्रेमजी के सेंटर ऑफ सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट द्वारा फ्रकाशित `इंडियाज एम्प्लॉयमेंट ाढाइसिस ः राइजिंग एजुकेशन लेवल्स एंड फालिंग नॉन-एग्रीकल्चरल जॉब ग्रोथ' पेपर में कहा गया है कि 2011-12 व 2017-18 के बीच रोजगार में अफ्रत्याशित 9 मिलियन जॉब्स (2 फ्रतिशत) की कमी आयी और कृषि रोजगार में पतन 11.5 फ्रतिशत आया। इसी अवधि में सर्विस सेक्टर में रोजगार में 13.4 फ्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि मैन्यूफैक्चरिंग रोजगार में 5.7 फ्रतिशत का पतन आया। पेपर में फ्रस्तुत डाटा से यह भी मालूम होता है कि जहां रोजगार में कमी आ रही है, वहीं वर्किंग आयु वाले व्यक्तियों (जो श्रम बल, शिक्षा व ट्रेनिंग में नहीं हैं) की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है- जो 2011-12 में 84 मिलियन थी वह अब 100 मिलियन को पार कर गयी है।

मेहरोत्रा व परिदा ने अपने पेपर में लिखा है कि गिरता मैन्यूफैक्चरिंग रोजगार और मंद पड़ता निर्माण रोजगार विकास `अर्थव्यवस्था के लिए बुरी खबर है'। इन शोधकर्ताओं के अनुसार, "आय विकास को बनाये रखने, जीवन स्तर को बेहतर करने और गरीबी को कम करने के लिए जरूरी है कि मैन्यूफैक्चरिंग व निर्माण (बावजूद अस्थाई सेक्टर होने के) में रोजगार अवसरों को बढ़ाया जाये।' मेहरोत्रा जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के फ्रोफेसर हैं, जबकि परिदा सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब से संबंधित हैं। लेकिन उनका अध्ययन लवीश भंडारी व अमरेश दुबे के हाल के अध्ययन के पूर्णतः विपरीत है। भंडारी व दुबे के अध्ययन को फ्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने कमीशन किया था और इसमें दावा किया गया था कि 2011-12 व 2017-18 के बीच कुल रोजगार 433 मिलियन से बढ़कर 457 मिलियन हुआ। मेहरोत्रा व परिदा का दावा है कि रोजगार 2011-12 में 474 मिलियन से गिरकर 2017-18 में 465 मिलियन हुआ यानी 9 मिलियन की कमी आयी, जो भारत के इतिहास में पहली बार हुआ है।

हिमांशु ने हालांकि इस विषय पर अभी औपचारिक पेपर नहीं लिखा है, लेकिन एक अगस्त को मिंट में फ्रकाशित उन्होंने अपने लेख में कहा कि 2011-12 व 2017-18 के बीच यानी छह वर्ष की अवधि में कुल रोजगार में 15 मिलियन से अधिक की कमी आयी यानी वह 472.5 मिलियन से गिरकर 457 मिलियन हुई। दूसरे शब्दों में 2011-12 व 2017-18 के बीच रोजगार में हर साल करीब 2.6 मिलियन जॉब्स की कमी हुई। 2011-12 के लिए भंडारी व दुबे (433 मिलियन) ने जो आंकड़ा दिया है और जो मेहरोत्रा व परिदा (474 मिलियन) और हिमांशु (472.5 मिलियन) ने दिया है, उसमें लगभग 40 मिलियन का अंतर है। यह अंतर आश्चर्यजनक है क्योंकि इन सभी अध्ययनों के लिए डाटा का स्रोत समान है- नेशनल सैंपल सर्वे आर्गेनाइजेशन के 2004-05 व 2011-12 रोजगार-बेरोजगार सर्वे और 2017-18 का आवधिक श्रम बल सर्वे। दूसरे शब्दों में रोजगार व बेरोजगार का अनुपात जो इन अर्थशास्त्रियों ने फ्रयोग किया है वह समान है, लेकिन नंबर्स में अंतर है।

हालांकि अर्थशास्त्रियों ने अभी एक दूसरे के पेपर नहीं पढें हैं, लेकिन उनके आंकड़ों में अंतर के दो संभावित कारण हैं। एक यह कि कुल रोजगार संख्या तक पहुंचने के लिए देश की कुल जनसंख्या कितनी अनुमानित की गई। जनसंख्या का जितना अधिक अनुमान लगाया जायेगा, उतना ही अधिक रोजगार अनुमान आयेगा। भंडारी व दुबे ने 2017-18 के लिए भारत की जनसंख्या 1.36 बिलियन मानी। मेहरोत्रा व परिदा ने जनसंख्या 1.35 बिलियन मानी और कहा कि उन्होंने अनावश्यक आलोचना से बचने के लिए ऐसा किया। विश्व बैंक 2017-18 में भारत की जनसंख्या 1.33 बिलियन मानती है। बहरहाल, हिमांशु ने सरकार के अधिकारिक जीडीपी डाटा में दी गई जनसंख्या का फ्रयोग किया है, जो 1.31 बिलियन पर काफी कम है।

भारत की जनसंख्या अनुमान को लेकर यह विरोधाभास इसलिए है कि सरकार ने अभी तक 2011 की जनगणना आंकड़े जारी नहीं किये हैं, जो पिछली परम्परा को मद्देनजर रखते हुए 2016 में जारी कर दिए जाने थे। भंडारी व दुबे के अनुमान व अन्यों के अनुमान में अंतर का दूसरा कारण यह है कि भंडारी व दुबे ने रोजगार का सिर्फ `फ्रिंसिपल स्टेटस' फ्रयोग किया है और `सब्सिडियरी स्टेटस' को छोड़ दिया है। फ्रिंसिपल स्टेटस में यह देखा जाता है कि सर्वे से पहले के 365 दिनों के दौरान व्यक्ति 182 दिनों से अधिक रोजगार में था या नहीं और `सब्सिडियरी स्टेटस' में यह देखा जाता है कि व्यक्ति पिछले साल में कम से कम 30 दिन के लिए रोजगार में था या नहीं। केवल फ्रिंसिपल स्टेटस के फ्रयोग करने का अर्थ है कि दोनों रोजगार व बेरोजगारी का अपर्याप्त अनुमान निकलेगा। चूंकि भारत में अधिकतर रोजगार मौसमी होता है, जैसे ईंट पाथना मानसून में नहीं होता, महिलाएं कम अवधि के लिए खेतों पर काम करती हैं आदि, इसलिए दोनों फ्रिंसिपल स्टेटस व `सब्सिडियरी स्टेटस' को लेने का चलन है।

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