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सिनेमा के शहंशाह का आधी सदी का सफर

👤 manish kumar | Updated on:24 Nov 2019 5:08 PM GMT

सिनेमा के शहंशाह का आधी सदी का सफर

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ल्म `सात हिन्दुस्तानी' पुर्तगाली शासन से गोवा को आजाद कराने की कहानी पृष्"भूमि में लिए हुए है, जिसका निर्देशन महान ख्वाजा अहमद अब्बास ने किया था। यह फिल्म 7 नवम्बर 1969 को रिलीज हुई थी और इसके सात हिन्दुस्तानियों में एक हिन्दुस्तानी `छोरा गंगा किनारे वाला' भी था। इलाहाबाद के इस लम्बे युवा व्यक्ति ने एक मुस्लिम शायर की भूमिका अदा की थी और अब पचास वर्ष बाद भी वह `एंग्री यंग मैन' के नाम से मशहूर है। अपनी फ्रभावी लम्बी पारी, जबरदस्त हिट्स, यादगार अदाकारी और ख्याति के कारण अमिताभ बच्चन को हिंदी सिनेमा का महानतम सितारा स्वीकार किया गया है- सदी का महानायक।

अमिताभ की सफलता 1973 से आरंभ हुई जब उन्होंने `जंजीर' में न मुस्कुराने वाले गुस्सैल इंस्पेक्टर विजय की भूमिका अदा की। फिर उन्होंने साबित किया कि उनकी रेंज मात्र `एंग्री यंग मैन' तक सीमित नहीं है। वह रोमांस व कॉमेडी में भी इतने ही दक्ष हैं और अमिताभ ऐसे एक्टर बन गये जो पर्दे पर सब कुछ महारत के साथ कर सकते थे। उम्र बढ़ने के साथ वह शालीनता से सीनियर सिटीजन की भूमिकाओं में भी समा गये, उनकी स्टार पॉवर सुनिश्चित करती है कि फिल्में उनके किरदार के इर्दगिर्द लिखी जाएं।

इन पचास वर्षों में सितारों की अनेक खेपें आयीं और चली गईं, लेकिन अमिताभ का सफर मजबूती से जारी है। इस दौरान वह क"िन दौर से भी गुजरे, लेकिन हर बार सुबह के सूरज की तरह उभर आये। 1980 के दशक में अमिताभ का मिथ इतना शक्तिशाली था कि एक कॉमिक बुक सुपर हीरो को उन्हीं के अंदाज में डिजाइन किया गया। वैसे तीन बार (तूफान, अजूबा व शहंशाह) वह स्वयं बड़े पर्दे पर सुपर हीरो की भूमिका में दिखायी दे चुके हैं।

अब तक लगभग 198 फिल्मों में अभिनय कर चुके अमिताभ की टॉप पांच फिल्मों की सूची बनाना क"िन है क्योंकि हर किसी की पसंद अपनी अपनी व ख्याल अपना अपना होता है। इसलिए यहां यह उल्लेख ही पर्याप्त होगा कि स्वयं अमिताभ अपने किस कार्य को सर्वश्रेष्" मानते हैं। पचासवें इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया में इस वर्ष के दादासाहब फाल्के पुरस्कार के विजेता अमिताभ को उनकी चुनिंदा फिल्मों की पीनिंग करके ट्रिब्यूट दी जायेगी। इसके लिए स्वयं अमिताभ ने अपनी छह फिल्मों का चयन किया है- `ब्लैक' (2005), `दीवार' (1975), `पीकू' (2015), `शोले' (1975), `बदला' (2019) और `पा' (2009)- इसलिए इन्हें ही उनकी टॉप फिल्में माना जा सकता है। इनके चयन के पीछे कुछ विशेष कारण रहे होंगे, लेकिन इनमें आपकी अपनी फेवरेट का न होना सिर्फ इस बात का संकेत है कि शोर्ट लिस्ट हर एक की दृष्टि में सर्वश्रेष्" नहीं होती है, `कभी कभी' `चीनी कम' रह ही जाती है।

बहरहाल, एक व्यक्ति पांच दशक तक रुपहले पर्दे पर छाया रहा हो, तो उसके संदर्भ में हर एक के पास अपनी कहानी व यादें होंगीं। अमिताभ ऐसे मकाम पर हैं, जहां वह अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग फ्रतीक बन गये हैं। जो लोग 1980 व 1990 के दशकों में जवान हो रहे थे, उनके लिए अमिताभ `वन मैन इंडस्ट्री' थे। हीरोइन, कॉमेडियन, हद तो यह है कि संगीतकार भी `अमिताभ के राज' में `बौने' हो गये थे; क्योंकि जब फिल्म में अमिताभ हों तो किसी अन्य चीज की जरूरत ही नहीं थी।

जहां तक मेरी बात है तो मेरी पसंदीदा फिल्में आज भी वही हैं, जिन्होंने अमिताभ को `एंग्री यंग मैन' के रूप में स्थापित किया- `जंजीर', `दीवार', `शोले' और बाद में वह जिन्होंने उनकी अविश्वसनीय कॉमिक टाइमिंग स्थापित की। `डॉन', `अमर अकबर एंथोनी', `चुपके चुपके'। मेरे लिए तो अमिताभ हिंदी सिनेमा के पर्याय थे, वह इतने `लार्जर दैन लाइफ' थे कि मुझे उनके अतिरिक्त कुछ दिखायी ही नहीं देता था। मुझे याद है कि जब मैंने फिल्म रिपोर्टिंग शुरू की थी तो उस समय सेल फोन नहीं थे और हम जैसे युवा रिपोर्टरों को स्टोरी, इंटरव्यू आदि के लिए एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो दौड़ना पड़ता था, इस उम्मीद में कि शूटिंग करता हुआ वहां कोई कलाकार मिल जाये।

एक दिन एक स्टूडियो में मैंने लाइटमैन से मालूम किया कि आज कौन आया है? उसने बस इतना कहा, "भगवान।' उस दिन स्टूडियो में अमिताभ थे, वह `भगवान' बन चुके थे। यह सचिन तेंदुलकर के `भगवान' बनने से पहले की बात है। जब सोशल मीडिया का दौर शुरू हुआ तो अपने ब्लॉग के संदर्भ में अमिताभ ने एक इंटरव्यू में बताया कि वह किस तरह से सुबह एक्सरसाइज करते हैं, दिन में शूटिंग करते हैं और आधी रात को अपना ब्लॉग लिखते हैं तो फिर आप सोते किस समय हैं? वह चेहरे पर कोई भाव लाये बिना बोले, "इंटरव्यू के दौरान।' यह शरारती हास्य हमेशा से ही अमिताभ का हिस्सा रहा है, जिसे आप `कौन बनेगा करोड़पति' कार्पाम में उनकी एंकरिंग के दौरान भी देख सकते हैं। मसलन जब मध्य फ्रदेश से एक ज्योतिषी हॉट सीट पर पहुंचे तो अमिताभ ने उनसे मालूम किया, "सितारे क्या कहते हैं कि आज आप यहां से कितनी धनराशि जीतकर जायेंगे? व्रत रखे ज्योतिषी ने किस्मत अच्छी होने का विश्वास दिखाया, लेकिन तीन लाइफलाइन शेष रहते हुए भी गलत उत्तर दे बै"s और मात्र दस हजार रूपये लेकर लौटे। अमिताभ ने चुटकी ली, "सवाल सुनने व जवाब देने के बीच ग्रह बदल गये शायद।'

हालांकि अमिताभ ने अभिनेत्रियों में सबसे ज्यादा फिल्में (16) हेमा मालनी के साथ की हैं, लेकिन उन्हें विशेषरूप से रेखा के साथ पसंद किया गया, जिनके साथ उन्होंने 9 फिल्में कीं, जिनमें वह फिल्में शामिल नहीं हैं, जिनमें रेखा की जोड़ी किसी अन्य हीरो के साथ थी, जैसे `ईमान धर्म' में शशि कपूर के साथ। अमिताभ व रेखा को सबसे पहले फिल्म `एक था चंदर, एक थी सुधा' में साथ आना था, लेकिन इस फिल्म को डिब्बे में बंद कर दिया गया; क्योंकि उस समय अमिताभ बॉक्स ऑफिस पर मजबूत नहीं माने जाते थे। खैर दोनों `दो अनजाने' में साथ आये। 1981 की कॉमेडी `चश्मे बद्दूर' में भी दोनों का एक कैमियो था और फिर चार वर्ष पहले `शमिताभ' में भी दोनों थोड़ी देर के लिए साथ थे, जिसमें रेखा धनुष, जिनकी आवाज अमिताभ जैसी फ्रतीत होती है, से कहती हैं, "बेटा, तुम्हें तो भगवान की आवाज मिली हुई है।'

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