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हर चीज में मिलावट का खतरा बढ़ा

👤 manish kumar | Updated on:24 Nov 2019 5:10 PM GMT

हर चीज में मिलावट का खतरा बढ़ा

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रे व्हाट्सएप्प पर एक वीडियो आया- एक दूधवाला एक एकांत स्थान पर अपनी मोटरसाइकिल रोकता है, इधर-उधर देखता है, यह सुनिश्चित होने पर कि कोई आस पास नहीं है व कोई उसे देख नहीं रहा है, वह अपनी अंटी में से एक केमिकल की शीशी निकालता है और वह केमिकल थोड़ा थोड़ा हर डिब्बे में मिला देता है। अगले सीन में दो हाथ दिखायी देते हैं, वह एक गिलास में संभवतः वही केमिकल डालते हैं और फिर उस गिलास में ऊपर से पानी डाल दिया जाता है जो तुरंत दूध की तरह सफेद हो जाता है। तीसरे सीन में एक महिला अपने किचन में दूध उबाल रही है, फिर वह एक चम्मच से मलाई को हटाती है और मलाई की बहुत लम्बी परत चम्मच पर लिपट जाती है, महिला मलाई को अपनी उंगलियों से मसलने का फ्रयास करती है, लेकिन असफल रहती है और कहती है कि `यह हमें प्लास्टिक कब तक खिलायेंगे, हमारी सेहत से खिलवाड़ कब तक?'

वीडियो का संदेश स्पष्ट है कि दूध के नाम पर आपको घातक केमिकल्स व प्लास्टिक परोसे जा रहे हैं। वायरल हुआ यह वीडियो निश्चित रूपसे आपके पास भी आया होगा, जिससे यह धारणा बन चुकी है कि भारत में बहुत बड़े पैमाने पर मिलावटी दूध का धंधा हो रहा है, जो लोगों की जानें खतरे में डाल रहा है। इस धारणा को इन अपुष्ट आंकड़ों से अधिक बल मिला हुआ है कि भारत में जितना दूध उत्पादन होता है उससे दोगुना ज्यादा सप्लाई किया जाता है, जिससे निष्कर्ष निकाल लिया जाता है कि यह सरप्लस दूध मिलावटी, नकली व केमिकल से तैयार किया जाता है ।

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि दूध में मिलावट होती है व नकली दूध भी बनाया जाता है। लेकिन यह धारणा सही फ्रतीत नहीं होती कि एक लीटर दूध को मिलावट से दो या तीन लीटर कर दिया जाता है, या दूध उत्पादन के बराबर ही केमिकल से नकली दूध भी बनाया जा रहा है। दूध सुरक्षा व गुणवत्ता सर्वे से तो कम से कम यही बात निकलकर सामने आती है। `सबसे विस्तृत व फ्रतिनिधित्व' सर्वे इस धारणा को तो ध्वस्त करता है कि भारत में बड़े पैमाने पर दूध मिलावटी है,लेकिन यह भी संकेत देता है कि उपलब्ध दूध स्वास्थ के लिए पूर्णतः सुरक्षित नहीं है। इस सर्वे के लिए 50,000 की जनसंख्या से अधिक वाले 1100 कस्बों/शहरों से मई व अक्टूबर के बीच 6432 सैंपल एकत्र किये गये।

फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) के आग्रह पर एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा किये गये सर्वे में मालूम हुआ कि 93 फ्रतिशत सैंपल पूर्णतः सुरक्षित हैं । इन सैंपलों को 13 अपमिश्रकों व तीन दूषित करने वाले तत्वों- कीटनाशक, अफलाटोक्सिन एमआई और एंटीबायोटिक्स के लिए टेस्ट किया गया। सेवन के लिए सिर्फ 12 अपमिश्रक सैंपल असुरक्षित पाए गये। ये अपमिश्रक सैंपल- जिनपर पुनः पुष्टि टेस्ट भी किये गये, सिर्फ तीन राज्यों से थे ः तेलंगाना (9), मध्य फ्रदेश (2) और केरल (1)। सर्वे का दावा है कि सभी 12 अपमिश्रक सैंपलों में अपमिश्रकों व दूषित तत्वों का फ्रतिशत इतना नहीं था कि उनसे मानव स्वास्थ्य को कोई `गंभीर खतरा' उत्पन्न हो ।

लेकिन सर्वे के 368 सैंपलों (5.7 फ्रतिशत) में अफलाटोक्सिन एमआई के अंश की मात्रा अनुमत सीमा (0.5 माइाढाsग्राम फ्रति लीटर) से अधिक पायी गयी। अफलाटोक्सिन एमआई की तुलना में मध्य फ्रदेश,महाराष्ट्र व उत्तर फ्रदेश के 77 सैंपलों में एंटीबायोटिक्स अनुमानित स्तर से अधिक पाया गया। अफलाटोक्सिन एमआई कच्चे दूध (141) की तुलना में फ्रोसेस्ड दूध (227) में अधिक पाया गया। यह पहला अवसर है जब दूध में दूषित तत्वों की मौजूदगी का मूल्यांकन किया गया है। एफएसएसएआई के अनुसार दूध में अफलाटोक्सिन एमआई फीड व चारे के कारण हैं, जिसे रेगुलेट नहीं किया जाता है। दूध में अफलाटोक्सिन एमआई के अधिक अंश तीन राज्यों के सैंपलों में पाए गये- तमिलनाडु (551 सैंपलों में से 88 में), दिल्ली (262 सैंपलों में से 38 में) और केरल (187 सैंपलों में से 37 में)।

इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर के अनुसार अफलाटोक्सिन एमआई को उन रसायनों की श्रेणी में रखा गया है जिनसे लोगों को कैंसर हो सकता है। अफलाटोक्सिन एमआई की कैंसर करने की क्षमता अफलाटोक्सिन बीआई का लगभग दसवां हिस्सा मापी गई है। चूंकि वर्तमान सर्वे केवल दूध तक सीमित रहा है, इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि दुग्ध उत्पादों जैसे पनीर आदि में अफलाटोक्सिन एमआई कितने फ्रतिशत में है और इसका फैलाव कितना हो गया है। दूध व दुग्ध उत्पादों में अफलाटोक्सिन एमआई का होना जन स्वास्थ्य के लिए खतरा है, खासकर शिशुओं व युवा बच्चों में जिनके लिए दूध पौष्टिक आहार का मुख्य स्रोत है।

विश्व स्वास्थ संग"न के अनुसार दूध व दुग्ध उत्पादों में अफलाटोक्सिन एमआई की मात्रा उन क्षेत्रों में अधिक होती है जिनमें पशु आहार में फ्रयोग होने वाले अनाज की गुणवत्ता निम्नस्तरीय होती है। इसलिए सभी फ्रयास होने चाहिएं दोनों फसल काटने व उसके बाद कि टोक्सिन की मात्रा कम हो सके। फसल को जब गर्म व नमी वाली स्थितियों में स्टोर किया जाता है तो दूषित तत्वों की मात्रा खेत में खड़ी फसल से अधिक हो जाती है। इतना ही महत्वपूर्ण यह है कि अफलाटोक्सिन एमआई नियमित टेस्ट करने की सुविधाएं उपलब्ध हों।

मिलावट व नकली की समस्या केवल खाने पीने की चीजों तक ही सीमित नहीं है। जीवन के हर क्षेत्र को इसने घेर लिया है। मसलन, सीमेंट में मिलावट होती है तो इससे अच्छीखासी बिल्डिंग गिर जाती हैं, पेट्रोल व डीजल में जबरदस्त मिलावट है, जिससे वाहनों के इंजन खराब हो जाते हैं। हाल ही में मेर" जैसे शहर में यह भी देखने में आया कि अधिकारियों ने लाखों लीटर नकली पेट्रोल पकड़ा, लेकिन सभी आरोपी बरी हो गये। यही कुछ नकली दूध, मि"ाई व मावे के संदर्भ में भी देखने में आता है। जब तक इन चिंताजनक स्थितियों पर सख्ती से नियंत्रण नहीं किया जायेगा तब तक स्वास्थ्य चाहे इंसान का हो या मोटर का उस पर खतरा मंडराता ही रहेगा ।

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