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ओलंपिक पदक का सपना

👤 manish kumar | Updated on:18 Dec 2019 11:46 AM GMT

ओलंपिक पदक का सपना

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ल्ली की डा. करणी सिंह शूटिंग रेंज में 29 नवम्बर को नेशनल शॉटगन चैंपियनशिप्स के स्कीट फाइनल में छह में से सिर्फ दो शूटर- मेराज अहमद खान और अंगद वीर सिंह बजवा- स्वर्ण पदक की दौड़ में रह गये थे। इससे दो सप्ताह पहले भी मेराज व अंगद दोहा में एशियन शूटिंग चैंपियनशिप्स में गोल्ड मैडल के लिए शूट-ऑफ में थे, तब स्थापित खिलाड़ी मेराज से आयु में 20 वर्ष छोटे 24-वर्षीय अंगद ने स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया था।

29 नवम्बर को भी यही हुआ- मेराज से पहले चूक हुई और अंगद 60/60 के परफेक्ट स्कोर के साथ निशाने पर थे और फलस्वरूप राष्ट्रीय खिताब के हकदार बने। क्वालिफिकेशन में मेराज ने 125 का परफेक्ट स्कोर हासिल किया था, लेकिन फाइनल में उनके दो शॉट टारगेट पर नहीं लगे और उन्हें दोहा की तरह दिल्ली में भी रजत पदक से संतोष करना पड़ा।

तुगलकाबाद रेंज में अच्छे खासे दर्शक मौजूद थे और वह हर शॉट पर तालियां बजा रहे थे, खासकर इसलिए कि भारतीय शूटिंग में एक नई फ्रतिद्वंदिता को उभरता हुआ वह देख रहे थे। लेकिन साथ ही इस बात की भी खुशी थी कि दोनों मेराज व अंगद ने 2020 टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर लिया है, जिससे शॉटगन में ओलंपिक पदक की संभावना बढ़ जाती है और यह भारतीय शॉटगन शूटिंग के लिए भी अच्छी खबर है। गौरतलब है कि मेराज ओलंपिक्स में पहले भी भाग ले चुके हैं- रिओ 2016 में। और वह फाइनल के लिए क्वालीफाई करने के लिए बहुत करीब आ गये थे। मेराज ने पहले पा में 121/125 का स्कोर किया था और वह फाइनल में छ"s व अंतिम स्पॉट को पाने के लिए शूट-ऑफ में पांच शूटर्स के साथ दावेदार थे, लेकिन चूक कर गये। मेराज का कहना है, शूटिंग परफेक्शन का स्पोर्ट्स है। निशाना चूका और आप हार गये। आज मैंने मिस किया और अंगद जीत गया, दोहा में भी यही हुआ था।'

मेराज का कहना है कि अंगद जैसे शूटर आपको अवसर नहीं देते हैं। "अगर मैं मिस नहीं करूंगा तो वह दबाव में रहेगा। लेकिन मुझे खुशी है कि स्कीट अब भारत में अच्छे स्तर पर है।'

अमेरिका के लीजेंड्री डबल ट्रैप व स्कीट शूटर किम्बर्ली सुसन रोड, जिन्होंने छह ओलंपिक पदक जीते, ने एक बार मेराज से कहा था कि `मिस मत करना'। मेराज कहते हैं, "मैं रेंज में हर दिन इसी नजरिए से जाता हूं, फोकस अधिकतम 125 स्कोर करने पर रहता है। अगर मैं ट्रेनिंग में टारगेट मिस करता हूं तो अधिक दुःख होता है क्योंकि तब दबाव नहीं होता है।'

एयर राइफल व पिस्टल में भारतीय शूटर्स का अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अनेक वर्षों से दबदबा रहा है, लेकिन शॉटगन शूटिंग काफी लम्बे समय से निशाना लगाने के लिए संघर्ष कर रही थी। अब अंगद जैसे युवा टैलेंट के उभरने से परिवर्तन के कुछ संकेत मिल रहे हैं। मेराज कहते हैं, "पिछली बार मैं अकेला ओलंपिक्स में था, लेकिन इस बार हम दो होंगे। हम दोनों साथ ट्रेनिंग करेंगे और एक दूसरे को आगे बढ़ने के लिए फ्रोत्साहित करेंगे। अब हमें एक दूसरे को पुश करते हुए तीन वर्ष हो गये हैं। मैं उम्मीद करता हूं कि हम दोनों टोक्यो में यही काम (स्वर्ण व रजत) कर डालेंगे।' ध्यान रहे कि 2012 में कुछ समय के लिए मेराज ने किशोर अंगद को ट्रेन भी किया था।

रिओ 2016 से पहले मेराज अच्छे फॉर्म में थे। उस वर्ष रिओ विश्व कप में उन्होंने रजत पदक जीता था। तब ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करते हुए उनका औसत स्कोर 124 प्लस था और दिल्ली में भी टोक्यो के लिए क्वालीफाई करने के बाद उन्होंने अपनी पहली फ्रतियोगिता में 125 शॉट किया। लेकिन हर बार नई शुरुआत करनी पड़ती है।

बहरहाल, मेराज को दुःख इस बात का है कि उन्हें सरकार की फ्लैगशिप टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम में शामिल नहीं किया गया, जो ओलंपिक पदक के संभावितों को आर्थिक सहयोग देती है। मेराज का चांगवन विश्व कप में फ्रदर्शन अच्छा नहीं रहा था और सरकार ने 2018 में उन्हें इस योजना में शामिल नहीं किया। वह कहते हैं, "मुझे सरकार से कुछ नहीं मिला है क्योंकि एक फ्रतियोगिता में मेरा फ्रदर्शन खराब रहा। ऐसा खेल में हो जाता है, लेकिन आप अपने बेस्ट एथलीट को अनदेखा नहीं कर सकते। मैंने शालीनता से निर्णय स्वीकार कर लिया और आगे बढ़ गया।' युवा शूटर्स को ट्रेनिंग देकर मेराज अपने शौक को पूरा करने का फ्रयास कर रहे हैं।

भारतीय स्कीट फ्रदर्शन में जो नया परिवर्तन आया है उसका श्रेय इटली के ओलंपिक चैंपियन एन्नियो फाल्को को दिया जाना चाहिए जो भारतीय स्कीट टीम के कोच हैं। फाल्को 2013 में आये और उन्होंने मेराज से कहा कि अगर तुम कुछ हासिल करना चाहते हो तो अपना गिलास खाली कर दो। मेराज ने जीरो से शुरू किया, संघर्ष करना पड़ा, लेकिन फिर उन्होंने रिओ विश्व कप रजत पदक जीता, एशियन चैंपियनशिप पदक जीते और ओलंपिक्स के लगभग फाइनल में पहुंच गये थे। इसका अर्थ था कि वह सही ट्रैक पर थे और अब भी वह उसी तरह से शूट कर रहे हैं।

अब उनका बस एक ही लक्ष्य है- टोक्यो में गोल्ड। असफल होने का भय हमेशा रहता है। फ्रतियोगिता में दबाव का एहसास भी रहता है। मेराज कहते हैं, "अभिनव बिंद्रा ने एक बार कहा था कि `दर्द का आनंद लो' तो मैं दर्द का मजा ले रहा हूं।'

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