लाल सेबों की दुनिया में
म फिलाडेल्फिया से सिर्फ पांच पौधे लाये गये थे, यह पूरा बाग उन्हीं पौधों का वंशज है,' मुस्कराते हुए हमारे मेजबान पी "ाकुर ने कहा, `फिर हाथ से सैंकड़ों बीघा जमीन में फैले हुए बाग की ओर इशारा किया। हम हिमाचल फ्रदेश की राजधानी शिमला से लगभग 70 किमी की दूरी पर थानेदार-कोटगढ़ की सेबों की दुनिया में हैं। शाम हो चुकी है और हम अपने को गर्म रखने के लिए आग के पास बै"s हैं, `सेबगढ़' में- प्यार से इस क्षेत्र को इस नाम से भी पुकारा जाता है। हमारी आंखों के सामने सेबों से लदे पेड़ दूर-दूर तक फैले हुए हैं, जिन्हें देखकर मजा आ रहा है। कुदरत की गोद में जाकर ऐसा ही होता है। अब इस साल की फसल का अंतिम चरण आ चुका है। पारा गिरता जा रहा है, "ंड बढ़ती जा रही है, इसका भी अपना अलग आनंद है।
सिर्फ पांच पौधों से!' यह शब्द आश्चर्य से हमारे मुंह से निकलने ही थे। "ाकुर ने हामी भरते हुए अपना सिर हिलाया और जल्द ही हम स्थानीय लोगों के पसंदीदा विषय की ओर आ गये- रेड डिलीशियस (लाल जायकेदार), जो इस क्षेत्र में सेब की मुख्य किस्म है और जिस पर इन लोगों को गर्व है। आश्चर्य की बात है कि सेब की यह किस्म इस जगह के लिए देशज नहीं है।
बहरहाल, अगली सुबह, रसभरे रेड डिलीशियस को खाते हुए (हकीमों का कहना है कि फल खाने का सही समय सुबह सवेरे ही है) हम पास के एक अन्य बाग की तरफ चल दिए, जहां पेड़ों पर अलग अलग रंगों के सेब लटके हुए थे- सुर्ख लाल से लेकर पीले हरे तक।
बरोबाग पहाड़ी पर हारमनी हॉल नामक ऐतिहासिक कॉटेज है, जिसे सैमुअल इवांस स्टोक्स ने बनवाया था। लेपर कॉलोनी में काम करने के लिए वह 1904 में अमेरिका से आये थे। उन्होंने ही इस क्षेत्र में सेबों की ाढांति लाने का बीड़ा उ"ाया। यहां हर शख्स बस उन्हीं की बात करता है। स्टोक्स को अपने घर के सेबों के स्वाद की याद आ रही थी, इसलिए उनकी मां ने पांच पौधे फिलाडेल्फिया से भेज दिए। स्टोक्स ने इन्हें प्यार से जमीन में लगा दिया और उतने ही प्यार से उनकी देखभाल करने लगे। पौधों ने जड़ पकड़ ली और फिर अपने नये वातावरण में विकसित होने लगे और फिर जैसा कि कहते हैं, इतिहास बन गया।
स्टोक्स की कहानी थानेदार का पर्याय बन गई है, कोई सैलानी नहीं है जिसे इसे सुनाया न जाता हो और इसे सुनाते हुए स्थानीय लोग थकते भी नहीं हैं। लेकिन थानेदार में इतनी ही दिलचस्प व दिलकश वे जगहें हैं, जहां आप लंबी सैर पर जा सकते हैं रिलैक्स होने के लिए। बस आप अपने साथ पैक्ड लंच रखिये और यह मनमोहक रास्ते आपको सरोगा वन तक ले जायेंगे, जहां आप हिमाचल फ्रदेश के किस्म-किस्म के जबरदस्त पेड़ पौधे व फूल देख सकेंगे। यह नजारा आपको मंत्रमुग्ध कर देगा। यही रास्ते ट्रैकिंग के लिए भी हैं, जो आपको हातू पीक, इस क्षेत्र की सबसे ऊंची चोटी, तक भी ले जायेंगे और हां, 1872 में बनी शांत सेंट मैरी चर्च तक भी ले जायेंगे। यह उत्तर भारत का सबसे पुराना गिरजाघर है। यही रास्ते आपको अति सुंदर तानी जुब्बर झील तक भी ले जाते हैं।
एक अन्य सेबों की दुनिया जहां जरूर जाना चाहिए वह है सांगला। किन्नौर घाटी में इसे नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा, इसे अकसर देव भूमि भी कहा जाता है। हम सराहन में रुके। यह छोटा सा सुंदर कस्बा है। यहां 800 वर्ष पुराना भीमकाली मंदिर है, जिसके बारे में बाहर बै"s दुकानदार बताते हैं कि यह इस ढंग से बनाया गया है कि भूकंप का इस पर कोई असर नहीं पड़ सकता। पत्थर व लकड़ी से बने इस मंदिर में बस शांति ही शांति है और इसकी पृष्"भूमि में श्रीखंड महादेव चोटी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह भगवान शिव का गर्मियों का वास है।
हवा में "ंडक बढ़ती जा रही है और हम शानदार चिटकुल गांव की तरफ ड्राइव करते हैं, जिसके बारे में मशहूर है कि भारत में सबसे स्वच्छ हवा यहीं की है। यह गांव समुद्र के स्तर से 11,320 फीट ऊपर है। यह भारत का आखिरी गांव भी है, तिब्बत सीमा से लगभग 50 किमी के फासले पर। हम अपनी कार से बाहर निकलते हैं और सीमा आउटपोस्ट की ओर वाक करते हैं, हर मोड पर शानदार नजारों की तस्वीरें उतारते हुए। जब सेबों की बात चली है तो यह जानकारी भी देते चलें कि रानीखेत से लगभग 10 किमी के फासले पर चौबटिया में देश के सबसे मशहूर सेब बाग हैं। ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क की जड़ में सैंज घाटी में सबसे पुराने सेब के बाग हैं। मनाली भी अपने सेब बागों के लिए जानी जाती है, लेकिन इसके बाग अकसर नियमित पर्यटकों से छुपे रहते हैं।