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न कल बेजा बात थी, न आज है

👤 manish kumar | Updated on:13 Feb 2020 2:01 PM GMT

न कल बेजा बात थी, न आज है

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म निस्संदेह दुनिया में सबसे ज्यादा पजाने वाला विषय है। यही वजह है कि शायद ही कोई ऐसा लेखक होगा,जिसने फ्रेम कहानियां न लिखी हों। हिन्दी ही नहीं, दुनिया भर में लिखी गई फ्रेम कहानियां आज भी पा"कों को न केवल गुदगुदाती हैं बल्कि फ्रेम की विभिन्न छवियां भी दिखाती हैं। फ्रेम के रूप में यही कहानियां उनके भीतर दर्ज हो जाती हैं। पा"क इन्हीं कहानियों की तरह फ्रेम करना चाहने लगता है। दुनिया के महानतम लेखक भी खुद को फ्रेम कहानियां लिखने से नहीं रोक पाए। दिलचस्प बात है कि इनकी मृत्यु के सालों बाद भी ये कहानियां पा"कों के दिलों में आज भी जीवित हैं। चेखव, ओ हेनरी, मोपासां, आस्कर वाइल्ड, अनातोले फ्रांस, हारुकी मुराकामी, दोस्तोयेव्स्की, डी एच लॉरेन्स और अन्य बहुत से लेखक अपनी लिखी फ्रेम कहानियों से ही जीवित हैं। हिन्दी में भी असंख्य फ्रेम कहानियां लिखी गईं हैं। मात्र तीन कहानियां लिखकर साहित्य में अमिट छाप छोड़ने वाले चंद्रधर शर्मा गुलेरी की `उसने कहा था' कहानी को भला कौन भूल सकता है?

गुलेरी जी का समय 1883-1922 का है। तब से अब तक पूरी दुनिया बदल गई है, लेकिन यह कहानी अब तक अपनी जगह बनाए हुए है। बेहद सामान्य सी दीखने वाली इस कहानी में ऐसा क्या है कि पा"क इसे भूलने को तैयार नहीं होते। इस कहानी में क्या ऐसा है जो इसे कालजयी बनाता है। कहानी में नायक-नायिका अमृतसर के बाजार में कहीं मिलते हैं। नायक, नायिका से रोज पूछता है, तेरी कुड़माई हो गई? लड़की रोज शर्माती थी लेकिन एक दिन लड़की कह देती है, हां हो गई। फ्रथम विश्व युद्ध के तुरंत बाद लिखी गई इस कहानी में चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने फ्रेम को इतनी महीनता से चित्रित किया है जो जहन से नहीं उतरता। यही बात इस कहानी को कालजयी बना देती है।

इसी तरह मन्नू भंडारी की एक कहानी है `यही सच है'। इस कहानी पर रजनीगंधा नाम से फिल्म भी बनी जिसे दर्शकों ने बहुत पसंद किया था। इस कहानी में दीपा नाम की एक युवती अपने पूर्व फ्रेमी और वर्तमान फ्रेमी के बीच चयन नहीं कर पाती। संयोग से उसे कोलकाता जाना पड़ता है, जहां उसका पूर्व फ्रेमी निशीथ उसे फिर मिलता है और लगता है कि भीतर सोया हुआ फ्रेम दोबारा जागृत हो रहा है। लेकिन निशीथ उसे कुछ नहीं कहता। दोनों मिलते हैं, साथ घूमते हैं लेकिन प्यार पर कोई बात नहीं होती। दीपा वहां से लौट आती है। कोलकाता से लौटने के बाद भी निशीथ उसके अवचेतन में बसा रहता है। इसी मौके पर वर्तमान फ्रेमी संजय आता है। वह दीपा को अपने बाहुपाश में ले लेता है। दीपा को लगता, यह सुख, यह क्षण ही सत्य है, वह सब झू" था, मिथ्या था, भ्रम था और वे दोनों एक दूसरे के आलिंगन में बंधे रहते हैं-चुंबित-फ्रति चुंबित।

शायद यहां भी फ्रेम की महीनता को चित्रित करना ही उसे कालजयी बनाता है। बिना किसी शोर शराबे के यदि लेखक फ्रेम की अनदीखती भावनाओं को चित्रित कर रहा है तो कहानी निश्चित रूप से कालजयी होने की दिशा में जाती है। अमेरिकी कथाकार ओ हेनरी ने अनेक छोटी-छोटी कहानियां लिखी हैं जिनका फ्रभाव भारतीय समाज ही नहीं पूरी दुनिया में बना हुआ है। उनकी एक कहानी है `अनू"ा उपहार'। बिल्कुल सीधी और सरल सी इस कहानी में नायक नायिका के लिए क्रिसमस का उपहार खरीदना चाहता है और ऐसा ही नायिका भी चाहती है। नायिका के बाल बहुत लंबे हैं और नायक के पास एक घड़ी है जिसमें चेन नहीं है। विसंगति देखिए नायक अपनी घड़ी बेचकर नायिका के लिए कंघियों का सैट खरीद कर लाता है और नायिका अपने बाल बेचकर नायक की घड़ी के लिए चेन खरीद कर लाती है। अंत में नायक कहता है कि हम क्रिसमस उपहार एक तरफ पड़े रहने देते हैं और तुम ऐसा करो कि चाय चदो तो कैसा रहेगा। कहानी में उपहार से भी ज्यादा अहम है एक दूसरे के फ्रति फ्रेम और उपहार देने की इच्छा। चेखव को तो कहानियों का मास्टर कहा जाता है। लेकिन लेखन में मास्टरी, जो हो रहा है, जो "ाsस रूप में दिखाई पड़ रह है, उसे चित्रित करने के बजाय उन संभावनाओं को चित्रित करने में है जो हो सकता है या जो आपके भीतर घटित हो रहा है।

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