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बच्चों को शुरू से ही पढ़ाएं सब्र का जरूरी पाठ
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" नीलम अरोड़ा
" क्या आपका लाडला बाजार में जिस चीज की माँग करता है, उसे लेने के लिए अड़ जाता है। उस चीज को हासिल करने के लिए वह धरती-आसमान एक कर देता है ? चीज न मिलने पर गुस्से से चीखने चिल्लाने लगता है ?
" क्या आपकी बिटिया घर में मेहमानों के सामने भी अगर किसी बात पर गुस्सा हो जाए तो चिल्लाने लगती है और आप हैरान होकर उसका मुँह देखती रह जाती हैं ?
बच्चों के व्यवहार पर लोग अक्सर बच्चा है या बच्चे तो ऐसा करते ही हैं या समय के साथ वह खुद सीख जाते हैं-कहकर सब्र कर लेते हैं र् इस तरह की सोच बच्चों में सब्र न रखने की गलत आदत को बढ़ावा देती है र् बच्चों को यदि शुरू से ही अपने पर काबू रखना न सिखाया जाये तो उनकी ये आदतें बाद में उनका स्वभाव बन जाती हैं । बाल मनोविदो का मानना है कि बच्चों के साथ हम खुद किस तरह से पेश आते हैं, बच्चे भी धीरे-धीरे उसी हिसाब से अपने को बना लेते हैं। अगर हम बच्चों की हर ख्वाहिश पूरी करते हैं और उन्हें सब्र रखना नहीं सिखाते हैं तो बड़े होकर भी बच्चे बड़े बेसब्रे रहते हैं।
बच्चों का रोल मॉडल बनें-
क्या आप कठिन स्थितियों में अपने पर काबू रख पाते हैं? या घर अथवा ऑफिस में ज्यादा काम होने पर बार-बार झुंझला उठते हैं? क्या ट्रैफिक जाम में फँसने पर आप गुस्सा हो जाते हैं? बैंक में लम्बी लाईन देखकर आप किसी न किसी बहाने से बीच में घुस जाते हैं ? ध्यान रखिये आपकी इस तरह की आदतों का असर आपके बच्चे पर पड़ता है। जिस तरह का व्यवहार आप बच्चों के सामने करते हैं, बच्चे भी उसी तरह का व्यवहार करना सीख जाते हैं।
बच्चों को बताएं कि सब्र न करने का फल कडुवा होता है -
अपने बच्चो को समझाएं कि खुद पर काबू न रख पाना, इस तरह का व्यवहार घर में ही नहीं बाहर भी दूसरों के साथ उसे मुश्किल में डाल सकता है। अगर आपके बच्चे के साथ कोई उसकी गलती के लिए बदला लेने के लिए उतारू हो जाए तो आप उससे कहें कि बदला लेने का उसे क्या फयदा होगा। ऐसे मामले को निपटाने के लिए या उसका गुस्सा शांत करने के लिए वहाँ से चले जाना ही बेहतर होता है। बच्चा जब आपके व्यवहार को देखता है, तो वह भी उसी तरह का व्यवहार करना सीखता हैं।
खेल-खेल में बच्चे को सब्र रखना सिखाएं-
बच्चे को सब्र रखना सिखाने के लिए नये-नये तरीके अपनाएं र् उसके साथ कुछ खेल खेलें जैसे- किसी चीज में सही या गलत का चुनाव करना। इस खेल में बच्चे के साथ प्रैक्टिस करें कि अगर वह किसी मुश्किल हालात में है तो वह खुद पर काबू कैसे रखेगा ? वह जो भी एक्ट करे उसे बताएं कि उसने जो किया वह सही था या गलत । बच्चे के साथ कोई मनोरंजक खेल खेलें और ध्यान से देखें कि अगर वह हार जाता है कैसी प्रतिािढया करता है ? यदि हारने पर वह आपसे झगड़ा करे या गुस्सा हो जाए तो उसे समझाये कि उसे अपने गुस्से पर कैसे काबू रखना है ? उसे बताएं ताकि जीवन में छोटी-छीटी असफलताओं में वह धैर्य रखना सीख सकें।
बच्चे के अच्छे व्यवहार की प्रशंसा करें-
बच्चे के अच्छे व्यवहार पर उसे ईनाम दें । अक्सर बच्चे के रोने पर उसे चुप कराने के लिए हम उसे कुछ न कुछ ऐसी चीज देते हैं, जो उसे बहुत पसंद होती है। सच तो यह है, कि इससे बच्चे का फायदा नही बल्कि नुकसान होता है। ध्यान रहे बच्चे नासमझ और शैतान होते हैं, बच्चों से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह कह भर देने से सब्र रखना सीख जाएंगें र् याद रखें बच्चे को कुछ भी सीखने में समय लगता है, वह बार-बार गलतियाँ करने से सीखता है। जो बच्चे सब्र करना धीरे-धीरे सीखते हाँ, वही बच्चे आगे जीवन में तर्कशील, धैर्यवान बन सकते हैं। लेकिन बच्चों से ऐसे व्यवहार की उम्मीद तभी की जा सकती हैं अगर घर के बड़े स्वयं भी ऐसा व्यवहार करें। धैर्य न रखना, बात-बात पर गुस्सा होना, दूसरों के साथ बेअदबी से पेश आना, दूसरों से लड़ना झगड़ना, गैर जरूरी चीजों पर बहस करना, तर्कशील न होना, बड़े अगर इस तरह का व्यवहार करते हैं तो भला बच्चे इसी तरह का व्यवहार क्यों नहीं करेगें?
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