Home » रविवारीय » बुन्देली यथा कथा : मजबूर बुन्देली मजूर ...!

बुन्देली यथा कथा : मजबूर बुन्देली मजूर ...!

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:14 Jan 2018 1:29 PM GMT

बुन्देली यथा कथा : मजबूर बुन्देली मजूर ...!

Share Post

नईम कुरेशी

कबीर व रहीम ने पानी के बिना सब सून कहा है। बुन्देलखण्ड के लगभग 15 जिलों उत्तर प्रदेश के 8 व मध्य प्रदेश के करीब 7 जिलों व भिण्ड तथा शिवपुरी की 2 तहसीलें व 4 ब्लॉक बुन्देलखण्ड इलाके में आते हैं। यहां सब ओर तालाब, कुओं का काफी भण्डार है पर ज्यादातर कागजों में है। मिट्टी कीचड़ से पटे भरे हैं, उनका संधारण वर्षों से नहीं किया गया है। 'जल ही जीवन है" सिर्फ दीवारों पर लिखा हुआ है। जन प्रतिनिधिगण व यहां पदस्थ रहे नौकरशाहों ने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया।

ग्रीक दार्शनिक थैलोंज की मान्यता है कि हर वस्तु जल से बनी है, इसलिये उसके बिना सब शून्य ही है। हमारी सरकारों की भी पहली प्राथमिकता है उति पानी प्रबंधन। पर ऐसा बुन्देलखण्ड के सभी जिलों में उचित ढंग से नहीं है। यहां के तालाबों की अनेक प्रजातियों की मछलियां कोलकाता में आवाज लगाकर बेची जाती रही हैं। यहां के हीरे पन्नों के दोहन के लिये विदेशी कम्पनियां लाईन लगाये खड़ी हैं। सीसे व लोहे की बजरियों के पहाड़ों से अनेक उद्योग धन्धे चलाये जा सकते हैं। बुन्देलखण्ड में यहां के जिलों के लाखों पेड़ आँवलों से भरे पड़े हैं पर उन पर आधारित उद्योगों की कमी है।
डॉ. काशीप्रसाद त्रिपा"ाr के अनुसार बुन्देलखण्ड ने लगभग सभी जनपदों में पानी के लिये सैकड़ों तालाब, बांध व कुंए प्राचीनकाल से बनाये गये पूर्व शासकों ने इस पर काफी ध्यान दिया पर आजादी के बाद के राजाओं कथा कथित जनप्रतिनिधिगण इस तरफ कोई कदम नहीं उ"ाते आये हैं। नतीजे में पूरे बुन्देलखण्ड में पानी के लिये हाहाकार है। चन्देलों बुन्देलों के शासन में जल संग्रहण की व्यवस्था अति उत्तम थी, व्यवस्थित थी। काफी दूरदृष्टि के आधार पर बनी थी। आम लोगों की उदासी व राजनैतिक नेतृत्व की नाकामी इसके लिये जिम्मेवार रही है। नतीजे में यहां के छतरपुर, पन्ना, जालौन, टीकमगढ़ के लाखों मजूर अपनी रोटी कमाने को बाहर जाते हुये देखे जा रहे हैं। यहां का मजूर मेहनती है उसे कोलकाता से लेकर मुम्बई, दिल्ली तक के मकानों के "sकेदार पसन्द करते हैं।
जालौन जिले में 5 नदियों का संगम
भारत में उत्तर प्रदेश का जालौन जिला बुन्देलखण्ड में सर्वाधिक प्रसिद्ध है। एक तो यहां दो महान विभूतियां हुईं, 'वेदव्यास" जी जो कालपी के थे उनका जन्म यहीं हुआ था, कलप्रियनाथ उन्हें लिखा गया। वे पारस ऋषि के पुत्र थे। उन्होंने महाभारत ग्रंथ की रचना की थी। उनका प्राचीन व आज के दौर का 20 साल पूर्व दक्षिण भारत शैली में बना मंदिर काफी भव्य व प्रसिद्ध है।
सम्राट अकबर के नवरत्नों में सर्वाधिक प्रसिद्ध राजा बीरबल को भी कालपी का ही माना जाता है। उनकी याद में अकबर के दौर में उनका महल और टकसाल का भी निर्माण कराया गया था।
राजा बीरबल के बारे में इतिहास व साहित्य में इतना लिखा गया है कि अब ज्यादा लिखने का कोई मायने नहीं रहा है। उनकी याद में 2-2 स्मारक जालौन के सांस्कृतिक नगर कालपी में बने हैं जो अपने आप में प्रमाण है कि बीरबल जालौन के कालपी के रहे थे।
जालौन जिले के जगम्मनपुर में यमुना, सिन्ध, बेतवा, पहूज, कुंआरी आदि नदियों का संगम मौजूद है जो इस क्षेत्र को पवित्र व तीर्थ स्थल बना देता है। इसी क्षेत्र में रानी कुंती द्वारा कर्ण की उत्पत्ति के बाद उनकी मंजूशा को इस क्षेत्र में बढ़ा देने का वर्णन तमाम प्राचीन पुस्तकों में लिखा जा चुका है।
जालौन के कोंच इलाके का भी इतिहास काफी प्रसिद्ध रहा है। पृथ्वीराज चौहान के सेनापति चन्द्रवरदाई ने कोंच में तालाब व काफी बड़े जल स्त्राsत बनवाये थे। कोंच का वर्णन व इस इलाके को स्वतत्रता संग्राम का गढ़ माना जाता है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने कालपी में तमाम राजा महाराजाओं की बै"क जालौन के कालपी में ही रखी थी। यहां के एक प्रसिद्ध बैरिस्टर निगम साहब ने 19वीं सदी में एक लंकामीनार यहां निर्माण कराई थी जो काफी प्रसिद्ध है। जालौन के उरई में मामा माहिल का प्रसिद्ध तालाब भी है।
बुन्देलखण्ड के मजूर काफी मेहनती व लगनशील माने जाते हैं। उनकी मांग उत्तर भारत में सर्वाधिक आज भी बनी हुई है। पानी की कमी व उचित प्रबन्ध न होने के चलते बुन्देलखण्ड के 50 फीसद तक लोगों का जीवन दिन पर दिन अंधेरे में डूबता जा रहा है। उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश सरकारें इस तरफ उदासीन बनी हुई हैं। केन्द्र सरकार ने 6-7 साल पहले राजीव गांधी की पहल पर दिये गये हजारों करोड़ रुपये भी कुप्रबन्ध व भ्रष्टाचार की भेंट चले गये। सागर संभाग के टीकमगढ़, छतरपुर, दमोह आदि में कुछ काम भी हुआ वो भी ज्यादातर कागजों पर उसकी सालों से जांचें और जांचें चल रही हैं। यहां की सांस्कृतिक धरोहरें खजुराहो से लेकर झांसी का किला, ओरछा के मंदिर महल, बानपुर आदि देश दुनिया में पर्यटन महत्व के जरूर बने हुये हैं। अकेले ओरछा जो झांसी से 20 किलोमीटर की दूरी पर है उसमें 120 स्मारक ऐतिहासिक हैं जिसमें रामराजा मंदिर, लक्ष्मी मंदिर, जहांगीर महल आदि काफी प्रसिद्ध हैं। बुन्देलखण्ड में पर्यटन को बढ़ाने की काफी संभावनायें हैं पर उत्तर प्रदेश सरकार इस मामले में पीछे है।


Share it
Top