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एक्टिंग कराने से ज्यादा मुश्किल होता है कैमरे के सामने एक्टिंग करना

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:14 Jan 2018 1:36 PM GMT

एक्टिंग कराने से ज्यादा मुश्किल होता है  कैमरे के सामने एक्टिंग करना

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अंतरा पटेल

पर उपदेश कुशल बहुतेरे....यह बात तमाम दूसरे क्षेत्रों की तरह अभिनय के क्षेत्र में भी लागू होती है। यही कारण है जो तमाम निर्देशक हैट लगाए ..कैमरा एक्शन और कट बोलते हुए एक्टरों को इफरात में एक हजार सीखें देते रहते हैं उनमें से दर्जनों ऐसे हैं जो कभी खुद एक्टिंग करने आये थे, लेकिन वह उनसे नहीं हुई। कहने का मतलब जो निर्देशक अभिनेताओं को बात बात पर अभिनय के गुर सिखाने की कोशिश करते हैं, खुद उनके लिए भी कैमरे के सामने एक्टिंग करना इतना आसान नहीं होता। अगर हुई होती तो आज हम सुभाष घई से लेकर आशुतोष गोवारीकर जैसे निर्देशकों को बतौर अभिनेता याद कर रहे होते।
फिल्म इंडस्ट्री में इन्होने कदम इन्ही सपनों के साथ रखा था। लेकिन एक्टिंग में न चल पाने के कारण मजबूरन कैमरे के पीछे का मोर्चा संभालना पड़ा। ये अलग बात है कि इन्होने कैमरे के पीछे का मोर्चा बहुत उम्दा ढंग से संभाला और आज अपना शुमार इंडस्ट्री के सफल निर्देशकों में करवा रहे हैं। अब रॉक आन, काई पोचे और फितूर जैसी फिल्म के निर्देशक अभिषेक कपूर को ही लें। उन्होंने बॉलीवुड में इंट्री बतौर एक्टर के की थी। `उफ ये मोहब्बत' उनकी एक अभिनेता के रूप में पहली फिल्म थी जिसमें वे ट्विंकल खन्ना के अपोजिट थे। लेकिन यह फिल्म इतनी फ्लॉप साबित हुई कि उनकी यह पहली फिल्म ही उनकी अंतिम फिल्म बन गयी। साल 1974 में पैदा हुए और हैंडसम पर्सनैलिटी के मालिक होने के कारण मोडलिंग में भी किस्मत आजमा चुके अभिषेक ने जल्द ही समझ लिया था कि एक्टिंग के लिए वह नहीं बने। इसलिए उन्होंने जल्द ही निर्देशन को अपना क्षेत्र चुन लिया और उनकी दूसरी ही फिल्म जो कि रॉक ऑन थी, सुपरहिट साबित हुई।
हालांकि रॉक ऑन के पहले उनकी बतौर निर्देशक पहली फिल्म आर्यन अनब्रेकेबल थी। यह भी हिट नहीं रही थी लेकिन उस तरह फ्लॉप भी नहीं रही जैसे कि उनकी बतौर एक्टर पहली फिल्म हुई थी। अभिषेक के जैसा ही किस्सा लगान जैसी सुपरहिट फिल्म का निर्देशन करने वाले आशुतोष गोवारिकर की है। आशुतोष गोवारिकर ने भी इंडस्ट्री में अपना करियर बतौर अभिनेता ही शुरू किया था। उनके पास भी अपनी जबर्दस्त पर्सनैलिटी थी। आशुतोष की बतौर एक्टर पहली फिल्म थी `होली'। लेकिन होली के सभी रंग फीके रहे। बतौर अभिनेता आशुतोष दर्शकों को जरा भी नहीं भाये। अभिषेक की तरह आशुतोष भी बहुत जल्द ही समझ गए थे कि उन्होंने गलत दिशा पकड़ ली है इस दिशा में उनकी मंजिल नहीं है। इसलिए उन्होंने तुरंत अपने ट्रैक को बदला और निर्देशन के रास्ते में आ गए। इसी राह ही राही पूजा भट्ट भी रहीं। हालांकि उन्होंने `सड़क' और `दिल है कि मानता नहीं' जैसी सुपरहिट फिल्मों में एक्टिंग की। साथ ही उनकी शुरुआत `डैडी' जैसी फिल्म से हुई थी जो सफल तो रही ही साथ ही उसमें पूजा को न्यू फेस ऑफ द इयर का फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला था। कहने का मतलब यह कि आशुतोष और अभिषेक से पूजा की कहानी बिलकुल उलट शुरू हुई थी। एक तरह से इन दोनों से अलग पूजा का करियर शुरुआत में ही जम गया था।
लेकिन पता नहीं क्यों पूजा खुद को बतौर एक्ट्रेस बहुत कन्वेंसिंग नहीं महसूस कर रही थीं। उन्हें लगातार यह एहसास हो रहा था कि उनकी एक्टिंग लोगों के दिलों तक नहीं पहुंच रही। दो दर्जन से ज्यादा फिल्मों में काम करने के और असफलता से ज्यादा सफलता हासिल करने के बाद भी आखिर पूजा ने अपने दिल की बात सुनी और एक्टिंग छोड़ दिया। एक्टिंग छोड़ने के बाद कुछ लोग उन्हें बतौर लेखक हाथ आजमाने की सलाह दे रहे थे लेकिन उन्होंने भी अपने आपके लिए निर्देशन की राह चुनी। बतौर निर्देशक वर्ष 2004 में उनकी पहली फिल्म `पाप' आयी। यह फिल्म न केवल सफल रही बल्कि पूजा की स्टाइल को भी स्थापित किया। इसके बाद पूजा ने कई फिल्मों में ाढt मेंबर के तौरपर भी काम किया। लेकिन उनकी पहचान बाद की निर्देशित फिल्मों `धोखा' और `जिस्म' से बनी। वैसे पूजा ने सफल निर्देशन के बाद निर्देशन से अपने आपको कुछ दिनों के लिए विद ड्रा किया और फ्रोडूसर के तौरपर भी अच्छी सफलता हासिल की है।
इन्हीं तमाम एक्टरों और एक्ट्रेस की तरह की कहानी अरबाज खान की भी है। वह भी कई फिल्मों में एक्टिंग कर चुके थे, लेकिन इनकी एक्टिंग शायद लोगों को सलमान जितनी पसंद नहीं आ रही थी या यह भी हो सकता है कि वह सलमान की छाया में दब से रहे थे नतीजतन अरबाज ने भी निर्देशक बनने का फैसला किया और कहना होगा कि बतौर निर्देशक वह बतौर एक्टर के बहुत सफल रहे। अरबाज ने बतौर डायरेक्टर `दबंग-2' जैसी शानदार फिल्म का निर्देशन किया है। राकेश रोशन जिन्होंने बतौर निर्देशक `खुदगर्ज', `खून भरी मांग', `करण अर्जुन', `कहो ना प्यार है' और `ािढश' जैसी उम्दा फिल्में बनाई, वे राकेश रोशन भी शुरू में हीरो बनना चाहते थे लेकिन सफल हीरो नहीं बन सके। इसके बाद उन्होंने निर्देशन के क्षेत्र में हाथ आजमाया और पूरी तरह से सफल रहे जैसे सुभाष घई के साथ हुआ था।
सुभाष घई को बॉलीवुड का राजकपूर के बाद दूसरा शो मैन कहा जाता है। लेकिन सुभाष घई भी अगर बतौर हीरो या विलेन सफल हो गए होते तो शायद निर्देशन के क्षेत्र में कभी भी हाथ न आजमाते और हम `खलनायक', `राम लखन', `हीरो', `कर्मा', `सौदागर' और `ताल' जैसी बेहद शानदार फिल्मों से वंचित हो जाते जो उन्होंने बतौर निर्माता या निर्देशक बनाईं। सुभाष घई ने `तकदीर' और `आराधना' जैसी फिल्मों में एक्टिंग की है। लेकिन वह बतौर एक्टर अपने योगदान को याद नहीं रखना चाहते।

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