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आत्मा हत्या करें आलू किसान?

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:4 March 2018 4:15 PM GMT

आत्मा हत्या करें आलू किसान?

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के पी मलिक

राहुल गाँधी का गुजरात की एक चुनावी सभा में आलू पर दिये बयान का एक वीडियो सोशल मीडिया पर क़ाफी वायरल हुआ। उन्होंने एकत्रित भीड़ को संबोधित करते हुए कहा कि- "...ऐसी मशीन लगाऊंगा, इस साइड से आलू डालो, उस साइड से सोना निकालो..." लेकिन सुनने वालों को यह केवल एक चुनावी जुमला ही लगा होगा। लेकिन इस वीडियो में उन्होंने आगे जो कहा था वह काट दिया गया था- "...यह मेरे शब्द नहीं हैं, नरेन्द्र मोदी जी के शब्द हैं..." अब ये पूरा विडियो भी खूब वायरल हुआ। अब इसका किस पार्टी को क्या लाभ हुआ यह तो अलग बात है परंतु देश के आलू किसान के ज़ख्मों पर नरेन्द्र मोदी के इस तथाकथित बयान ने जले पर नमक छिड़कने का काम ज़रूर किया।
नोटबंदी के बाद से मैं कई बार आलू किसानों की समस्या समझने और उठाने के लिए दक्षिण पश्चिम उत्तर प्रदेश की आलू बेल्ट- अलीगढ़, हाथरस, मथुरा, आगरा, ]िफरोज़ाबाद, एटा, ईटावा, मैनपुरी, कन्नौज, फरुखाबाद- का दौरा करता रहा हूँ। यहाँ देश के आलू उत्पादन का लगभग 20 प्रतिशत पैदा किया जाता है। इन जिलों में आलू ही लगभग 80 प्रतिशत किसानों की मुख्य फ़सल है। आलू किसान तेज़ी मंदी से तो गुज़रता रहता है परंतु यहाँ के आलू किसान बताते हैं कि आलू की इतनी बुरी हालत कभी नहीं हुई जितनी नोटबंदी के बाद हुई है। अक्टूबर 2016 में नोटबंदी से ठीक पहले तक किसान का जो आलू 8-10 रुपये प्रति किलो बिक रहा था वह नोटबंदी होते ही धड़ाम से गिरकर 5-6 रुपये प्रति किलो पर आ गया। फरवरी 2017 में जब नई फ़सल आई तो दाम गिरकर 3-4 रुपये प्रति किलो ही रह गया। किसान इस बार लगभग 30 फ़ीसदी फ़सल को कोल्ड स्टोरों से उठाने ही नहीं गया क्योंकि उसकी कीमत कोल्ड स्टोर के भाड़े से भी कम है। नवम्बर 2017 में सबसे बढ़िया किस्म के आलू का 50 किलोग्राम का कट्टा 100 रुपये का बिका जबकि कोल्ड स्टोर का भाड़ा ही लगभग 120 रुपये प्रति कट्टा है। नवम्बर अंत तक जो कोल्ड स्टोर हर हाल में खाली हो जाते थे, उन्हें दिसम्बर में अपने यहाँ बचे हुए आलू के बोरों को बाहर फेंकना पड़ा क्योंकि फरवरी में फिर नई फसल आ जायेगी और उससे पहले कोल्ड स्टोर को खाली करना और उसका रख रखाव तथा मरम्मत करना भी ज़रूरी है।
आलू की ऐसी बुरी हालत केवल यहीं नहीं है, देश भर में नोटबंदी ने आलू किसानों की कमर तोड़ कर रख दी है। इस क्षेत्र में आलू की बुवाई मध्य अक्टूबर से लेकर नवंबर के पहले सप्ताह तक होती है। आलू के उत्पादन में ही लगभग 5 रुपये प्रति किलो का खर्चा आता है। अक्टूबर में बोई गई फ़सल लगभग चार महीने बाद अगले वर्ष फ़रवरी में खुदाई कर निकालने के लिये तैयार हो जाती है। इस क्षेत्र में खुदाई के बाद लगभग 10 फ़ीसदी फ़सल किसान बेच देता है और बाकी बची लगभग 90 फ़ीसदी फ़सल खुदाई और पैकिंग के बाद कोल्ड स्टोर में बाद में बेचने के लिए रख दी जाती है। खुदाई, पैकिंग और कोल्ड स्टोर तक ले जाने में लगभग 2 रुपये प्रति किलो का खर्चा और लग जाता है। इसके ऊपर कोल्ड स्टोर में रखने का खर्चा भी लगभग 2 रुपये प्रति किलो आता है। इस तरह लगभग 9-10 रुपये प्रति किलो की पुल लागत की फ़सल को कोल्ड स्टोर से मार्च से लेकर अक्टूबर अंत तक धीरे-धीरे बाज़ार में बेचा जाता है। किसान की कोशिश कम से कम 10 रुपये प्रति किलो बेचने की होती है। परंतु पिछली दोनों फ़सल नोटबंदी की भेंट चढ़ चुकी हैं। आलू किसान खून के आंसू रो रहा है। फ़रवरी 2017 में खोदी गई सारी की सारी फ़सल केवल कोल्ड स्टोर के भाड़े में ही चली गयी किसान 10 रुपये की लागत में से 2 रुपये ही बड़ी मुश्किल से निकाल पाया यानी इस साल आलू किसान को लगभग 8 रुपये प्रति किलो का नुकसान झेलना पड़ा। आलू किसान को बेहाल देखकर योगी सरकार ने आलू किसानों को राहत देने के लिये 487 रुपये प्रति कुन्तल आलू खरीदने का वायदा किया था परन्तु यह वायदा कागजों में ही दम तोड़ गया और सरकार की तरफ से आलू की कोई खरीद नहीं की।
कोल्ड स्टोर मालिकों का कहना है कि यहाँ से देश के बड़े बड़े शहरों में आलू की सप्लाई की जाती है। लेकिन जिन व्यापारियों के आर्डर आते थे उन्होंने नोटबंदी, जीएसटी, पिछले सालों में हुए घाटे और ऩकदी पर लगे प्रतिबंधों के चलते अपने हाथ खींच लिए हैं। अब बाहर के व्यापारियों के बहुत कम आर्डर आ रहे हैं। कीमत के अभाव में किसान जो आलू कोल्ड स्टोर में छोड़ गया उसमें से किर्री (छोटा), गुल्ला (मध्यम) और मोटा आलू छांटकर अलग किया गया। किर्री और गुल्ला तो किसी भाव भी नहीं बिका अत उसे फेंका दिया गया, जो जगह-जगह या तो सड़ रहा है या उसे आवारा पशु खा रहे हैं। मोटे आलू को बेचकर कोल्ड स्टोर का किराया या कहिए ख़र्चा निकालने की कोशिश की गई। लेकिन पंजाब से नया आलू आने के बाद उसे भी फेंकना ही पड़ा।
आलू की पिछली दोनों फसलों के भाव ना मिलने के कारण किसान भारी आर्थिक संकट और गले तक कर्ज़े में फंस गया है। इस बार जैसे-तैसे और कर्ज़ लेकर किसानों ने फिर से आलू की बुवाई की है। अच्छी फ़सल खेतों में लहलहा रही है। परन्तु बुरी तरह कर्ज़ में डूबे किसानों को अब यह डर सता रहा है कि कहीं नोटबंदी और जीएसटी का काला साया इस बार की फ़सल पर भी पड़ गया तो खेत बेचने या आत्महत्या करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचेगा। अब आलू किसानों की माँग है कि सरकार अपने लागत के डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के वायदे को पूरा करते हुए इस बार बोई गई आलू की फ़सल का कम से कम 1500 रुपये प्रति क्विन्टल का भाव घोषित कर खरीद सुनिश्चित करे। दूसरा जैसा चुनावी भाषणों में कहा गया था उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार तत्काल किसानों का बिना शर्त सारा कर्ज़ा माफ करे। इससे पहले कि कुछ अनहोनी हो आत्महत्या की कगार पर खड़ा आलू किसान चाहता है कि सरकार कुछ ऐसा करे जिससे उसका आलू भी इस बार सोना बन जाये।

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