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अनुच्छेद 35 ए की संवैधानिकता सवालों के घेरे में

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:17 Sep 2018 3:51 PM GMT
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जम्मू कश्मीर के नागरिकों के लिए विशेष अधिकार और सुविधाओं से जुड़ा अनुच्छेद 35 ए न्यायिक समीक्षा में है। सर्वोच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ इस पर विचार करेगी। मामला चारू बाली खन्ना की याचिका के कारण सुनाई में आया है। यह अनुच्छेद सूबे में संपत्ति रखने के लिए अधिकार से जुड़ा है। पदेश के बाहर शादी करने पर यह अनुच्छेद संपत्ति के अधिकार से वंचित करता है। इनकी संतति को भी संपत्ति अधिकार से वंचित किया जाता है। स्थायी नागरिकता तय करने का अधिकार राज्य को मिला है जो अस्थायी नागरिकों को दोयम दर्जा का नागरिक करार देता है जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। एक एनजीओ ने भी न्यायालय में याचिका देते हुए कहा है कि जम्मू कश्मीर राज्य को स्वायत्तता देने वाली अनुच्छेद 35 ए और अनुच्छेद 370 की शक्पियां संवैधानिक विसंगतियां है। इससे संविधान में पदत्त समानता का अधिकार आहत होता है। अस्थायी निवासी को शासकीय सेवा और संपत्ति के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।

केन्द सरकार जम्मू कश्मीर सरकार के दृष्टिकोण को हरगिज स्वीकार नहीं कर सकती, क्योंकि 35 ए से संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होता है। अनुच्छेद 14 कहता है कि राज्य किसी भी व्यक्पि को उसके समानता के अधिकार से वंचित नहीं कर सकता। इस मामले में संवैधानिकता की दृष्टि से 35 ए को असंगत, अतार्किक घोषित किया जाना जम्मू कश्मीर के कट्टरवादी अलगाववादी तत्वों के हाथ में औजार बन सकता है लेकिन संवैधानिक स्थिति तो स्पष्ट करना न्यायालय का धर्म है। ऐसे में मौजू सवाल यह है कि क्या 35 ए को संविधान से विलोपित किया जाना चाहिए ?

संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि 35 ए संविधान के मुख्य स्वरूप का अंग नहीं है। 35 ए के चुनौती देने वाले मानते है कि इस पावधान को असंवैधानिक तरीके से संविधान में नत्थी किया गया। संविधान में दाखिल करने की शक्पि संसद को है। वही संशोधन करने के लिए अधिकृत है। दूसरे 35 ए के तहत बने नियम कानून संविधान अनुच्छेद भाग तीन में पदत्त नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन करते है। अनुच्छेद 14 नागरिकों को संपत्ति रखने, जानमाल की रक्षा का अधिकार पदत्त करता है।

जम्मू कश्मीर के विलीनीकरण का दस्तावेज 12 अगस्त 1947 को महाराजा हरी सिंह, भारत और पाकिस्तान के बीच तैयार हुआ जिसको पाकिस्तान ने खारिज करके भारत में विलीन इस राज्य पर आत्रढमण कर दिया। इस परिस्थिति में महाराजा हरी सिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को भारत में विलीनीकरण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए।

भारत ने इस राज्य को विलीनीकृत होने पर अनुच्छेद 370 की रचना की। विशेषज्ञों का कहना है कि 35 ए का जन्म संसद में नहीं राष्टपति जी के आदेश से हुआ। संविधान के अनुच्छेद 368 में परिभाषित पत्रिढया इसकी रचना में नहीं अपनायी गयी। राष्टपति का आदेश संविधान के अनुच्छेद 370 डी के तहत ग्रहण हुआ। अब विचारणीय पश्न है कि क्या यह समीक्षा का विषय है। ऐसे में पश्न उठता है कि बराबरी का सिद्धांत कैसे दरगुजार किया जा सकता है। स्थायी निवासी नागरिक और अस्थायी निवासी दोयम दर्जे के नागरिक क्या विधि मान्य कहे जा सकते है। भारत और पाकिस्तान के विभाजन के साथ जम्मू कश्मीर में आए शरणार्थी इतना लंबा वक्प गुजर जाने के बाद भी जम्मू कश्मीर की नागरिका से वंचित रखे जा रहे है। इन परिस्थितियों में 35 ए के मौजूदा स्वरूप और उससे उत्पन्न विसंगतियों पर जम्मू कश्मीर के बांशिदों, राजनेताओं, अलगाववादपरस्त कट्ट तत्वों को समग्रता से विचार करने का वक्प आ गया है। नागरिकता विहीन निवासियों का शरणार्थी बना रहना सूबे की पगति, भावनात्मक एकता, जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत की दृष्टि से भला नहीं कहा जा सकता। इस पर समग्रता से विचार की आवश्यकता है। संपत्ति की इजाजत और पात्रता मिलने के लिए वैकल्पिक पावधान होने से पदेश में विकास के पति नजरिया बदलेगा, निवेश की संभावना बढ़ेगी। अनुच्छेद 35 ए जो छह दशक पहले संविधान में नत्थी किया गया का पुनरावलोकन किया जाना चाहिए। इससे जम्मू कश्मीर का सही वास्तविक लोकतांत्रिक स्वरूप उजागर होगा। दिवंगत पधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जिन्हें जम्मू कश्मीर की वादियों से मोहब्बत थी ने कहा था कि जम्मू कश्मीर को जन्नत बनाने के लिए हमें हौसले के साथ कश्मीरियत जम्हूरियत और इंसानियत का जज्बा अख्तियार करना होगा। इससे जम्मू कश्मीर की समस्या का शांति सद्भाव के साथ समाधान किया जा सकता है। अनुच्छेद 35 ए जम्मू कश्मीर सरकार को शक्पि पदान करता है कि वह स्थाई निवासी का निर्धारण करें। यह अनुच्छेद 35 ए संविधान का अंग नहीं था। बाद में क्षेपक के रूप में शामिल किया गया। इससे उत्पन्न होने वाली दिक्कतों पर मिल बैठकर रचनात्मक सदाशयता और सकारात्मक दृष्टि से विचार किया जा सकता है।

एक बात तय है कि यह पावधान संविधान की कसौटी पर कसा जाना चाहिए और राज्य में निवासियों में समानता का भाव जगाने सभी को बराबरी संपत्ति के अधिकार रोजगार में नौकरी और जान माल की पूरी सुरक्षा का आश्वासन देने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करना समय का तकाजा है। 21 वीं शताब्दी में जहां मानवाधिकार का डंका पीटा जा रहा है। भारतीय गणतंत्र के एक राज्य के निवासी अपने को उपेक्षित मानते रहे। यह किसी भी दृष्टि से उचित माना नहीं जा सकता है। इस मुद्दे पर सियासत नहीं इंसानियत का जज्बा दिखाना होगा। मोदी सरकार ने देश में सामाजिक आर्थिक सुधार के के जरिए नया नजरिया पेश किया है।

जम्मू कश्मीर के मामले में लोकतांत्रिक सुधार और संवैधानिक विसंगति दूर करने का यह उपयुक्प समय है। हमारी सबसे बड़ी चुनौती यही है कि कैसे विकास यात्रा में सब को पूरे राष्ट्र को साथ लेकर कैसे चलें शिक्षित समृद्ध और खुशहाल बनाते हुए आगे बढ़े। देश की सवा अरब आबादी में 65 पतिशत युवा हैं। युवा राष्ट का गौरव पाप्त करने के लिए नजरिया बदलना होगा। इसे हमें अपने आचरण से परिभाषित करना होगा।

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