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डार्क वेब...जहाँ सब कुछ उपलब्ध है ड्रग्स, कॉल गर्ल और एके 47.....भी
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एन.के.अरोड़ा
नगेन्द्र स्वामी कोलकाता जैसे बड़े शहर में अकेले रहते हैं। उनका कारोबार अच्छा है, पैसे की कोई कमी नहीं है। वीक डेज तो काम की व्यस्तता में कट जाते हैं, लेकिन सप्ताहांत पर उन्हें एक मादा साथी की ज़रुरत पड़ती है। सोना गाछी के शहर में यह काम मुश्किल नहीं है। लेकिन बरसों की स्थानीय एकरूपता से वह ऊब गये तो उन्होंने 'ज़ायका' बदलने का मन बनाया। इसलिए पिछले साल उन्होंने डार्क वेब की शरण ली..और उनके दरवाज़े पर एक यूरोपीय सेक्स वर्कर 'डिलीवर' हो गई। ठीक उसी तरह से जैसे किताबें या डिज़ाइनर घड़ियां, कपड़े आदि एमाजन, फ्लिप्कार्ट या स्नेपडील से डिलीवर होते हैं।
डार्क वेब पर हर अवैध चीज़ उपलब्ध है - मारिजुआना से लेकर 'हार्ड' ड्रग्स, सैन्य ग्रेड के हथियार जैसे एके-47 से सेक्स वर्कर तक। लेकिन साधारण नेट यूजर से ये चीज़ें उसी तरह छुपी रहती हैं, जैसे सिगरेट व पान बेचने वाले दुकानदार अपने आगंतुक सामान को बेखबरों की नज़र से बचा के रखते हैं। दरअसल डार्क वेब पर संसार की किसी भी सरकार का नियंत्रण नहीं है, यही वजह है कि नई दिल्ली से न्यूयॉर्क तक चीज़ें बेधड़क, बे-रोकटोक व आसानी से सीमाओं व कड़ी सुरक्षा व्यवस्थाओं को पार करते हुए भेजी व मंगाई जाती हैं।
गौरतलब है कि कुछ माह पहले संयोग से पुलिस ने हैदराबाद में स्कूली छात्रों में एलएसडी (जिसे एसिड भी कहते हैं) सप्लाई करने के एक बड़े रैकेट का पर्दाफाश किया था, जिसमें मुंबई फिल्मोद्योग से जुड़े कुछ लोग भी शामिल थे। 'संयोग से' इसलिए क्योंकि पुलिस तफ्तीश एक क़त्ल के मामले की कर रही थी और उसके हाथ लग गया ड्रग्स रैकेट। छात्रों व अन्यों को डार्क वेब पर लेन देन करने के आरोप में गिरफ्तार नहीं किया गया ; क्योंकि डार्क वेब पर नियंत्रण का कोई कानूनी प्रावधान ही नहीं है। उन्हें तो इस आरोप के तहत गिरफ्तार किया गया कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साईकोट्रोपिक एक्ट 1985 के तहत एलएसडी की खरीद और/या प्रयोग अवैध है। इसलिए यह प्रश्न स्वाभाविक है कि डार्क वेब क्या है? उत्तर के लिए संलग्न बॉक्स को देखें।
इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि डार्क वेब पर भयावह क्षमता के साथ गोपनीयता की गारंटी है। 2015 के अध्ययन से मालूम होता है कि डार्क वेब पर सबसे ज़्यादा कारोबार लाइट ड्रग्स का होता है और उसका कम से कम 26 प्रतिशत कंटेंट 'बालशोषण' की श्रेणी में रखा जा सकता है। इसी तरह 2016 के एक अन्य अध्ययन से मालूम हुआ कि डार्क वेब की लगभग 57 प्रतिशत लाइव वेबसाइटों पर अवैध माल बेचा जाता है। कारोबार की आसानी और पकड़े न जाने के न्यूनतम खतरे का अर्थ यह है कि डार्क वेब के प्रयोग और उसके संदिग्ध व्यापार में निरंतर वृद्धि हो रही है। यहां यह सवाल भी प्रासंगिक है कि डार्क वेब पर किसी चीज़ की खरीद-फरोख्त व पैसे का लेन देन और माल की डिलीवरी किस तरह से होती है? और अधिकारिक सुरक्षा व निगरानी से यह सब कुछ कैसे बचा रहता है तथा दुनियाभर की सरकारें इस अवैध धंधे पर नियत्रण क्यों नहीं कर पा रही हैं?
दरअसल, डार्क वेब एक ऐसा बाज़ार है जिसमें दोनों खरीदार व पोता को रेट किया जाता है,उबेर की तरह। इससे विश्वास स्थापित होता है और संभावित लेन देन की सत्यवादिता प्रमाणित होती है। इसका अर्थ यह है कि अगर आप एक एके-47 खरीदना चाहते हैं तो आप उस पोता से खरीदेंगे जिसकी रेटिंग सबसे अधिक है। वह पोता आपको माल तभी भेजेगा जब आपकी रेटिंग यह सुनिश्चित करती हो कि आप अपनी तरफ का वायदा पूरा कर देंगे, यानी पेमेंट कर देंगे। एक बार जब डील को अंतिम रूप दे दिया जाता है तो पेमेंट निलम्बलेख के तहत किया जाता है - जिसका अर्थ यह है कि तीसरी पार्टी मध्यस्ता व्यवस्था है जो यह सुनिश्चित करती है कि खरीदार को माल उस समय डिलीवर हो जब वह अपनी तरफ की बार्गेन को पूरा कर चुका हो। विवाद की स्थिति में तीसरी पार्टी ही मध्यस्ता करती है। जिसकी रेटिंग बेहतर होती है अक्सर उसी के पक्ष में तीसरी पार्टी का निर्णय जाता है और फिर कहीं कोई सुनवाई नहीं होती।
चूंकि यह देखने कि कोई उचित व्यवस्था नहीं है कि वेंडर या पोता ने माल भेज दिया है और खरीदार को माल मिल गया है, इसलिए मध्यस्ता व्यवस्था को ही बेहतर विकल्प के रूप में स्वीकार किया जाता है। उपभोक्ता तक 'माल' पहुंचाने के अलग अलग और गोपनीय तरीके हैं, जो इस बात पर निर्भर करते हैं कि 'माल' क्या है। सेक्स वर्कर को उपभोक्ता का पता दे दिया जाता है और वह स्वयं दरवाज़े पर पहुंच जाता/जाती है। हथियार कोई व्यक्ति लेकर पहुंचता है, जैसे हवाला के ज़रिए पैसा पहुंचाया जाता है। ड्रग्स को इस तरह से चपटा व सील कर दिया जाता है जैसे वह कोई पत्रिका या पोस्टकार्ड हो और फिर कूरियर कर दिया जाता है...इससे अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था के बारे में भी बहुत कुछ बेऩकाब होता है कि वह 'टाइम' पत्रिका व एलएसडी के बीच अंतर नहीं कर पाती।
डार्क वेब पर की गई खरीदारी का पेमेंट पहले राज्य द्वारा जारी की गई वैध करेंसी से ही किया जाता था, लेकिन जब पैसे के ऑनलाइन आदान प्रदान को ट्रैक करना सरकारों ने अपने लिए आसान कर लिया तो ािढप्टो करेंसी का चलन बढ़ गया - यह डिजिटल या वर्चुअल करेंसी है जो सुरक्षा के लिए ािढप्टोग्राफिक तकनीक का प्रयोग करती है जो राज्य के नियत्रण से बाहर है। डार्क वेब दुनिया के लोग, पैसे को निजी मामलों में राज्य का हस्तक्षेप मानते हैं। सबसे अधिक प्रयोग में लाई जाने वाली ािढप्टोकरेंसी बिटकॉइन है। बिटकॉइन क्या है? यह जानने के लिए संलग्न बॉक्स देखिये।
कोलकाता के नगेन्द्र स्वामी ने यूरोपीय सेक्स वर्कर बुलाने के लिए डार्क वेब पर बिटकॉइन से पेमेंट किया था। वह पकड़े नहीं गये, यानी कानून के दायरे में नहीं आए। क्यों? समस्या का एक हिस्सा यह है कि भारतीय कानून डार्क वेब को स्वीकार ही नहीं करता है; वह उसे 'सरफेस' वेब से अलग नहीं मानता है; उसके लिए अलग विशेष कानून नहीं हैं। अगर कानून हों भी अनेक तकनीकी व कानूनी कारणों से राज्य के लिए डार्क वेब पर निगरानी रखना या उसके नियत्रण को ब्लाक करना लगभग असंभव है। दूसरा यह कि डार्क वेब और बिटकॉइन का अवैध गतिविधियों के लिए प्रयोग के संदर्भ में केंद्र सरकार अभी जागी नहीं है, उसकी चिंता तो इस बात में अधिक है कि गाय के मूत्र से डेंगू से लेकर कैंसर तक का इलाज किया जा सकता है, प्लास्टिक सर्जरी प्राचीन भारतीय कला है, उत्तर प्रदेश में बसों का रंग केसरिया होना चाहिए...जबकि लाखों भारतीय डार्क वेब पर सािढय हैं। वह कनाडा से एलएसडी व फ्रांस से सेक्स वर्कर मंगा रहे हैं। लेकिन उन्हें एके-47 व बम खरीदने से भी कोई नहीं रोकता है।
बॉक्स-1
डार्क वेब की दुनिया
विश्वव्यापी वेब दैत्यरुपी डाटा का समुद्र है, जिसका कुछ हिस्सा 'इंडेक्सड' है जो यूजर्स को गूगल, बिंग आदि सर्च इंजनों के ज़रिए मिल जाता है। वेब का जो विशाल हिस्सा 'इंडेक्सड' नहीं है और सर्च इंजन से साधरण तौरपर नहीं मिलता है, उसे 'डीपवेब' कहते हैं। इसी को ही शुरू में डार्क वेब कहते थे। उस समय तक डार्क का अर्थ नियमित एक्सेस से अलग रहने के संदर्भों तक सीमित था। अब इसका अधिक संबंध संदिग्ध गतिविधियों से है।
2000 के आस पास प्रोग्रामर ऐसी तकनीक विकसित करने लगे जिससे वेब के छुपे हुए हिस्सों को अज्ञात एक्सेस किया जा सके। 2002 में अमेरिका की नौसेना प्रयोगशाला ने 'द अनियन रूटर' (टोर) का शुरुआती वर्जन जारी किया। इस सॉफ्टवेयर के ज़रिए अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंटों और विदेशों में उसके एजेंटों के बीच अज्ञात कम्युनिकेशन किया जाता था। यह योजना के अनुसार कामयाब नहीं हुआ, लेकिन टोर को साइबर शातिरों ने जल्द अपना लिया, उसमें सुधार किया और उसे उन वेबसाइटों तक पहुंचने का ज़रिया बना लिया जो अवैध चीज़ों को रखती, बेचती व शेयर करती हैं। आज डार्क वेब डीप वेब का ही सब-सेक्शन है, जिसे टोर जैसे विशिष्ट सॉफ्टवेयर से एक्सेस किया जाता है,जो पूर्णतः गोपनीयता सुनिश्चित करता है; यानी किसी को मालूम नहीं पड़ सकता कि आप इसे एक्सेस कर रहे हैं। कैसे?
इन्टरनेट पर किसी भी चीज़ को तीन स्तर पर ट्रैक किया जा सकता है - जो आग्रह भेज रहा है उसके स्तर पर, जो इस आग्रह पर प्रतिािढया कर रहा है उसके स्तर पर और इन दोनों सिरों के बीच में। इस संरचना के कारण एक्शन व संसाधनों को इंडेक्स व सर्च की तरह ही ट्रैक करना आसान हो जाता है। यह समस्या हो सकती है, इसलिए इसके तोड़ के रास्ते निकाले जाने लगे। हाइपर टेक्स्ट ट्रान्सफर प्रोटोकॉल सिक्योर या एचटीटीपीएस वह प्रोटोकॉल है जो सुनिश्चित करता है कि सूचना एक कंप्यूटर से निकलने व दूसरे तक पहुंचने तक सुरक्षित व एपिप्टेड रहे। लेकिन यह प्रोटोकॉल उक्त तीन स्तरों में से केवल एक को ही सुरक्षित रखता है। डार्क वेब इस तरह से विकसित किया गया है कि यह बाकी स्तरों को भी सुरक्षित व अज्ञात रखता है। इसलिए इसे अनियन यानी प्याज़ कहा जाता है यानी जानकारी के बिट्स बार बार एपिप्ट होते हैं। इसलिए जब कोई चीज़ एक कंप्यूटर से निकलती है तो उसपर एपिप्ट कि एक परत चढ़ जाती है, यही दूसरे, तीसरे....कंप्यूटर पर होता रहता है,बार बार। जब यह जानकारी लौटती है तो परतें एक एक करके उतरती रहती हैं और आपने जिस जानकारी का आग्रह किया है वह आपको बिना एपिप्शन के मिल जाती है। इस तरह यह जानना लगभग असंभव हो जाता है कि कौन किससे बात कर रहा है और किस संदर्भ में; जब तक कि दोनों तरफ के कंप्यूटर पकड़े न जायें या नकली वेबसाइट बनाकर किसी के लिए जाल बिछाया जाये, जैसा कि बाल पोर्नोग्राफी को ट्रैक करने के लिए एफबीआई करती है।
बॉक्स-2
बिटकॉइन क्या हैं ?
पहली और अब तक की सबसे मशहूर ािढप्टो करेंसी 2009 में जारी हुई थी - बिटकॉइन। इसका उद्देश्य एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक ऐसी इलेक्ट्रॉनिक कैश व्यवस्था विकसित करना था जो पूर्णतः विकेन्द्रित हो और जिस पर किसी केन्द्राrय सर्वर या राज्य का नियत्रण न हो। इसका अर्थ यह है कि बिटकॉइन का मूल्य व संवृद्धि उसके रचनाकार व यूजर ही निर्धारित करेंगे। बिटकॉइन की रचना एक व्यक्ति या व्यक्तियों के समहू ने की है जो सताशी नकामोटो के छदम नाम से विख्यात है/हैं। वर्चुअल करेंसी का विचार सताशी से पहले भी था, लेकिन समस्या उसे बनाने व सप्लाई में थी, जिसका समाधान बिटकॉइन ने किया। बिटकॉइन एक पहेली का हल है। अगर पहेलियों का एक सेट है जो बिटकॉइन प्रोटोकॉल का हिस्सा है, तो बिटकॉइन उस सेट की हल की गई पहेलियों का हिस्सा है, हल करने वाले व्यक्ति के डिजिटल हस्ताक्षर के साथ। एक पब्लिक लेजर बिटकॉइन के मालिकाना ह़क को ट्रैक करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि एक ही बिटकॉइन को एक ही व्यक्ति ने दोबारा नहीं चलाया है। चूंकि कोई केन्द्राrय प्राधिकरण नहीं है, इसलिए आपका लेन देन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमत लेजर के अनुरूप होना चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए कि बिटकॉइन वैध है, प्रत्येक लेन देन लेजर में प्रकाशित होता है, जिससे लेन देन की एक श्रृंखला बन जाती है जिसे ब्लाकचेन कहते हैं।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान बिटकॉइन का मूल्य आसमान छूने लगा है कि लोग इसमें संपत्ति के तौरपर निवेश करने लगे हैं। जब बिटकॉइन पहली बार 2010 में टेंडर के रूप में प्रयोग हुआ था तो उसका मूल्य 0.003 डॉलर था, लेकिन इस साल अगस्त में इसका मूल्य 4500 डॉलर पहुंचा।
आप बिटकॉइन से रोजाना की सब्जी नहीं खरीद सकते, अनेक राष्ट्र इसे मान्यता नहीं देते हैं और कुछ देशों के नज़दीक यह अवैध है, लेकिन डार्क वेब की दुनिया में यही सिक्का चलता है। ध्यान रहे कि इसका केवल अवैध कामों के लिए ही प्रयोग नहीं है। बिटकॉइन को ट्रैक नहीं किया जा सकता। लेजर व ब्लाकचेन से आप कुछ बिटकॉइन के बारे में यह तो जान सकते हैं कि यह कहां से कहां गया, लेकिन उसके मालिक का पता नहीं लगा सकते। दूसरे शब्दों में डार्क वेब पर इसका लेन देन पूर्णतः अज्ञात रहता है। बिटकॉइन में निजी व प्राइवेट 'चाबी' व्यवस्था प्रयोग होती है, बिना चाबी के बिटकॉइन बेकार है। भारत में बिटकॉइन नियमन के लिए कोई कानून नहीं है, इसलिए रिज़र्व बैंक ऑ़फ इंडिया ने इसे औपचारिक मान्यता प्रदान नहीं की है। बहरहाल, भारत में कुछ बिटकॉइन एक्सचेंज हैं जो ई-केवाईसी (अपने ग्राहक को पहचानो) दिशानिर्देशों का पालन करते हैं, यानी उनके ग्राहकों को पहचाना जा सकता है। डार्क वेब के ग्राहक इन एक्सचेंजों से बचकर चलते हैं।
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