फ्रेम/2020

👤 manish kumar | Updated on:13 Feb 2020 7:30 PM IST

फ्रेम/2020

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लोग यह कहते हैं कि पुराना फ्रेम, आधुनिक फ्रेम, मध्य युगीन फ्रेम जैसा कुछ नहीं होता, वे कृपया यह बताएं कि इस डिजिटल युग के कनेक्टेड वर्ल्ड में जिस तरह फ्रेम पनप रहा है, फ्रश्रय पा रहा है, परवान चढ रहा है, वैसा भारतीय भू-भाग पर 100 साल पहले तक कब देखा गया था ? सच तो यह है कि फ्रेम हर दौर में अपना परिधान ही नहीं बदलता खुद भी परिवर्तित होता है। शीरी फरहाद वाले फ्रेम की परिकल्पना आज के डिजिटल युग में नहीं कर सकते।,

डिजीटल दौर ने फ्रेम पर बहुत फ्रभाव डाला है। फ्रेम अब आसान और बहुत बदला-बदला सा है। आधुनिकों का कहना है कि अब असली आनंद आया है तो पुरातनों का मानना है कि चीजें आसान होकर बेमजा हो जाती हैं। सवाल यह है कि असलियत क्या है? जो लोग देवी, फ्राणेश्वरी, फ्रियतमे, फ्रिये, जान, जानू, प्यारी स्वीटू से बेबी, शोना, छोना और बाबू तक पर नजर रखते हैं वे जानते हैं कि फ्रेम, प्यार, रोमांस कैसे, कितना और कब बदलता है ? आज स्थिति यह है कि बनन में बागन में बगरो बसंत है कि तर्ज पर फ्रेम चहुंओर फैला हुआ है। फ्रेम फ्रवाह का पारावार नहीं है। कुछ लोग इस बासंती बयार में भी फ्रेमातुर नहीं है,उनको छोड़िये ये उनकी अपनी अंदरूनी समस्या है पर जिन्हें फ्रेम चाहिये उन्हें यह इस डिजिटल युग में उतने ही आसानी से हासिल है जितना दुफ्राप्य कभी बीसी या बिफोर कंप्यूटर युग में होता था।

अब दे दे फ्रेम दे...फ्रेमे दे ..फ्रेम दे... रे की गुहार लगाने की आवश्यकता नहीं है, फ्रेम तो आपकी मुठ्ठी में उसी तरह मौजूद है जैसे घट घट में राम निवास करते हैं। मुठ्ठी के मोबाइल को जरा ढीला करिये। फ्रेम की तमाम परतें खुलने लगेंगी। कभी इश्क आग का दरिया था,अभी हाल तक फ्रेम पथ पर चलना सिर हथेली पर रखकर चलने जैसा बेहद क"िन था पर अब फ्रेम का श्रीगणेश करना बस एक क्लिक भर दूर बताया जाता है। कभी सारा जमाना फ्रेमियों का दुश्मन होता था। आज जमाने को उतनी ज्यादा फा नहीं रह गयी है, वह अपना डाटा कंज्यूम करने में बिजी है। जमाने को तो जाने ही दें फ्रेमियों के फ्रतिद्वंदी या रकीब जो अनिवार्यतः हुआ करते थे, अब जब सभी को विकल्प तथा साथी सुविधा सहज ही उपलब्ध है तो वो भी नहीं हैं। सभी आत्मनिर्भर हैं।

इस डिजिटल दौर में जिन फ्रेम फ्रत्याशी को कोई फ्रियतमा या फ्रेमी सुलभ नहीं है,उनके बारे में तो बस यही कहा जा सकता है कि सकल पदारथ हैं जग माहीं, नेट हीन नर पावत नाहीं अर्थात संसार में तमाम फ्रिय और फ्रियतमायें उपलब्ध हैं, कृपया इंटरनेट की शरण गहें। तब जबकि डाटा आटा से कई गुना सस्ता है, फ्रेम की क्या कमी हो सकती है, बल्कि बहुतायत है। किसी सुमुखी का डाटा रिचार्ज करवा के भी आप इसका शुभारंभ कर सकते हैं। तब कोई ऐसा घनिष्" अंतरंग मित्र मिलना मुश्किल होता था,जिसकी सहायता के बिना फ्रेम फ्रसंग को आगे बढाएं। आज किसी भी फ्रेम प्यासे की हर कदम पर सहायता को तमाम ऐसे फ्रेम सहायक उपलब्ध हैं। वह भी निस्वार्थ भाव से तकरीबन मुफ्त।

ये आपके फ्रेम को जिस स्थान से कहेंगे, तलाश देंगे। संपर्क सूत्र भी दे देंगे और वह "ाrहे भी बता देंगे जहां पर इनसे वर्चुअल या आभासी मुलाकात हो सकती है। इस कुट्ट्नी कार्य के लिये कार्पोरेटी "सक वाली कई सारी कंपनियां है,जिनकी वेब साइट्स और एप हैं। अब आप पर है कि आप अगर फ्रेम फ्रवीन हैं तो इस उंगली को पकड़कर पहुंचा तक पहुंच जायेंगे और फ्रेम तट के इस पार से उस पार उतर जायेंगे। तमाम कंपनियों ने इंटरनेट पर अपने "ाrहे खोल रखे हैं। मित्रता कीजिये, सोशल प्लेटफॉर्म पर या निजी चैट बॉक्स अथवा मैसेंजर और व्हाट्सएप पे फ्राइवेट में मिलिये जुलिये, यहां बजरंगियों का भी भय नहीं। अब अगर फ्रेम के इस गेम में आप कहीं से कमजोर पड़ रहे हैं तो उसके लिये बहुत से लोग लव डॉक्टर, रिलेशनशिप एक्सपर्ट मुफ्त में मौजूद हैं। फ्रेम अगर एक रोग है तो अब उसके चिकित्सक पत्र पत्रिका से होते हुये साइट दर साइट आपके मोबाइल तक में उपस्थित हैं। इनके इनके सूत्रों से फ्रेम पहेली हल कीजिये, सफल होइये।

फ्रेम में गर गच्चा खा गये तो निराश होने की कोई बात नहीं आजकल ब्रेकअप के बहुतेरे मामलों का गारंटीशुदा इलाज की व्यवस्था करने वाले भी कम नहीं हैं। निदान और उपचार तत्काल संभव है। अधिक देर तक फ्रेमदंश का फ्रेमदाह नहीं भुगतना पड़ेगा। वैसे भी यह संसार नश्वर है, आपका क्या गया, इसमें उसका घाटा। आपने थोड़े से समय और धन के निवेश से बड़ा अनुभव पाया जो आगे काम आयेगा। तजिये सब कुछ। नई उम्मीदों के साथ आगे बढिये एक फ्रेश फ्रोफाइल बनाइये। तू तो नहीं और सही और नहीं तो और सही.....। डिजिटल एज में यही फ्रेम नाम सत्य है। आप अभी नौसिखिये हैं, पकी उम्र के हैं, फुल टाइम फ्रेमी नहीं हो सकते। पार्ट टाइम फ्रेम फ्रदर्शन के लिये ही अपने को फ्रिपेयर कर पाये हैं, घर का फ्रेम पुराना पड़ गया, अब पसंद नहीं आ रहा, नया फ्रेम आजमाना चाहते हैं।

गंभीर फ्रेमी हैं, फ्रेम से लेकर शादी और जीवन साथी बना तक के लिये गंभीर हैं पर काम, कैरियर, ऑफिस से समय नहीं कि कि कोई पार्टनर तलाश कर सकें या फिर आप फ्रेम को बस तफरीह और टाइम पास के नजरिये से देखते हैं या फिर फ्रेम के साथ मेरे फ्रयोग जैसा कोई तजुर्बा हासिल करना चाह रहे हैं तो यह कनेक्टेड काल खंड सबके लिये बहुत मुफीद है। फ्रेम फ्रसाद के रूप में चाहिये या पानीपुरी जैसा अथवा पनीर सरीखा। इस डिजिटल दौर में हर किस्म के फ्रेम फ्रदान करवाने के लिये फ्रेम फ्रदाता मौजूद हैं। क्या इतने फ्रेम फ्रतिष्"ान डिजिटल दौर से पहले भी कभी हुआ करते थे। फ्रलय पूर्व पृथ्वी पर फ्रेम फ्रोत्साहन का ऐसा परिदृश्य शायद न मिले। फ्रेम करना इतना आसां पहले तो कभी न था जितना तकनीक युग के इस डिजिटल दौर ने बना दिया है।

फ्रेम के लिये फ्राथमिक आवश्यकता है एक अदद ऐसा मीत या साथी ढूंढना जो फ्रेम का फ्रतिकार न करे, फ्रेम का फ्रत्युत्तर फ्रेम से दे, ऐसा फ्रेमी तलाशना पहले बहुत क"िन काम था। पहले किस्मत से ही मिलता था अब कंप्यूटर से मिल जाता है। बिग डाटा आपके लिये परफेक्ट मैच ढूंढ देगा उसी तरह जैसे पुराने जमाने में जागा या नापित अथवा चलते पुर्जे रिश्तेदार वर या वधू ढूंढते थे। गर आप वेलेंटाइन डे के दिन अकेले हैं तो डेटिंग साइट पर जल्दी से फ्रोफइल बनायें और बना चुके हैं तो एक्शन में आयें, फ्रेम कमाएं। डिजिटल युग के गुण गाएं। उचित फ्रेम फ्रत्याशी ढूंढना अब बहुत मुश्किल काम नहीं। विज्ञानी इस खोज में पड़े हैं कि बिग डाटा के अनुसार सारे एल्गोरिद्म का हिसाब लगाकर सटीक समीकरण बि"ाकर पार्टनर तलाशा जाये जो एक बार मिल जाए तो उसकी लंबी निभे।

हैवी ड्यूटी, टिकाऊ जोड़े तलाशें। जल्द ही फ्रेम दीवाने सिस्टम हैक करके जानना चहेंगे कि उनका पार्टनर कहां छुपा बै"ा है ? फ्रेम कभी गणित नहीं रहा पर डिजिटल दौर में आंकड़ों,समीकरणों के गुणा गणित में हो जायेगा। बिगडाटा से कंप्यूटर "ाrक उसी तरह पार्टनर तलाशेगा जैसे ज्योतिषी कुंडली मिलाकर और सारे ग्रह नक्षत्र और गुण मिलाकर रिश्ता ढूंढता है। आगे से रिश्ते तलाशने वाली वेब साइट्स इस बात की गारंटी देंगी कि यह रिश्ता इतने साल तक जरूर टिकेगा अथवा यह ब्रेकअप फ्रूफ रिश्ता है। जिसमें ब्रेकअप की आशंका न्यून हो और जब रिश्ता मिलाया जाये तो यह बताया जाये कि इस रिश्ते में ब्रेकअप की आशंका इतने फ्रतिशत है। जाहिर है आप साथी, पार्टनर ढूंढ्ने के सेवा जितनी फ्रीमियम स्तर की लेंगे, पैसे देंगे उतने ही टिकाऊ रिश्ते मिलेंगे।

इस में फ्रेम के पनपने की गुंजाश कितनी होगी पता नहीं पर फ्रयास पूरा रहेगा। एक जमाने में मुहल्ला बदल लेने से फ्रेम फ्रभावित हो जाता था, शहर बदर हुआ तो फ्रेम फ्रकरण का अंत ही समझिये। अब इस डिजिटल युग में स्काइप, व्हाट्सप फोन कॉल और तमाम दूसरे तरीकों से सात समुंदर पार से भी सजीव सचित्र बात होती है। फ्रोषित पतिका वाली नायिका अब इस लॉन्ग डिस्टेंस कॉमुनिकेशन के जमाने में कहां। एक किताब आई है मार्डन रोमांस। लेखक हैं, अजीज अंसारी। निष्कर्ष है कि पारंपरिक नेह, अटूट अनन्य लगाव वाला पारंपरिक फ्रेम पथ अब फ्रेमियों की फ्राथमिकता में नहीं है। न्यूयार्क टाइम्स में एक लेख है, `इज लव लूजिंग इट्स सोल इन डिजिटल एज ?', आधुनिक तकनीक की इस चकाचौंध में मानवीय संवेदनाएं जिस तरह मजाक बनकर रह गई हैं।

तकनीक के आवश्यकता से अधिक फ्रयोग से मनुष्य भावना शून्य होता जा रहा है। क्या फ्रेम सचमुच पहले जैसा नहीं रहा। तकनीक ने संबंधों पर जितना फ्रभाव डाला उससे ज्यादा तकनीक से लोगों के संबंधों का असर इस पर पड़ा है। तकनीक से संबंध जितना गाढा होगा उतना की फ्रेम पतला या तनु होता जायेगा। समाजशास्त्राr कहते हैं कि तकनीक ने संवाद की शास्त्राrयता शैली, कला को खत्म सा कर दिया है। टेक्स्टिंग में खोखलापन, दिखावा ज्यादा है। वह अंतरंग बातें, सुखदायक सरस संवाद लुप्तफ्राय है। कई बार बहुत कम और तकनीकी संवाद पर ही रिश्ते तय हो जाते हैं यहां फ्रेम पनप नहीं पाता और परिणाम घातक हो रहा है। उत्तेजना, उत्कं"ा, जिज्ञासा, भय अनापेक्षितता समय के साथ सतत बढती फ्रगाढता, परिपक्वता अब दूर की बातें हैं। वो दैहिक, भौतिक, आध्यात्मिक, मानसिक। यौनिक भावनात्मक उद्वेग, मी"ाr अगन, तपन डिजिटल युग में कहां जब सब सहज सुगम है।

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