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हमारे दिग्गजों की सीख है किसी को कॉपी न करिये

👤 Admin 1 | Updated on:17 Jun 2017 5:56 PM GMT

हमारे दिग्गजों की सीख है किसी को कॉपी न करिये

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?अंजन श्रीवास्तव

इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसियेशन (इप्टा, के राष्ट्रीय और मुंबई के वाइस फ्रेसिडेंट अंजन श्रीवास्तव रंगमंच) टीवी और सिनेमा की दुनिया का एक जाना पहचाना नाम हैं। टीवी धारावाहिकों की दुनिया के बिलकुल शुरुआती सुपरहिट धारावाहिकों- ये जो है जिंदगी, बुनियाद में वह लोकफ्रिय हुए, तमस, भारत एक खोज में उन्होंने अपने अभिनय का सिक्का जमाया तथा आर के लक्ष्मण के कामन मैन यानी वागले की दुनिया से वह करीब-करीब आम आदमी का पर्याय हो गये। लेकिन टीवी और फिल्मों में अच्छी खासी शोहरत पाने के बावजूद वह न केवल मुंबई में कदम रखने के दिन से लेकर आज तक इप्टा से जुड़े हैं बल्कि दशकों से उसका महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। रंगमंच उनके रग-रग में किसी नशे की माफिक समाया हुआ है। आगामी 2 जून को अंजन सर जिंदगी के 70 वें बसंत में फ्रवेश करने जा रहे हैं और पिछली 25 मई को इप्टा 75 वें साल में फ्रवेश कर चुका है। लेकिन मजाल है जो दोनों में उम्र का बाल बराबर भी कहीं असर दीखता हो ? रंगमंच की दुनिया में 50 साल पूरा करने के बावजूद अंजन सर में थिएटर को लेकर आज भी वही युवा जूनून है जो सन 1967 में हुआ करता था।

इप्टा भारतीय कला और रंगमंच का ही नहीं बल्कि समूची संस्कृति के हर पहलू का एक जीवंत दस्तावेज है। इप्टा की स्थापना 74 साल पहले 24 मई 1943 को मुंबई में ही फ्रो. हीरेन मुखर्जी, डॉ होमी जहांगीर भाभा, बिमल रॉय और अनिल डिसिल्वा जैसे सिनेमा, संस्कृति और सोचने समझने वाली दुनिया के दिग्गजों के जरिये हुई थी। इसके स्वर्ण जयंती वर्ष में भारत सरकार ने इप्टा पर एक डाक टिकट जारी किया था। इप्टा का यह 75 वां साल इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि देश में कला-संस्कृति और संवेदना पर आज वैसे ही तलवार लटक रही है जैसे साम्राज्यवाद के उन दिनों में लटक रही थी। बस फर्क है तो इतना कि तब देश गुलाम था आज आजाद है। इप्टा को इस बात का और अपनी जिम्मेदारी का एहसास है। इसीलिए इसके 75 वें वर्ष के समारोहों की शुरुआत इप्टा के मशहूर नाटक एक मामूली आदमी से हो रही है जिसका निर्देशन रमन कुमार कर रहे हैं और लीड रोल अंजन श्रीवास्तव निभा रहे हैं।

आम आदमी की व्यथा और उसकी ताकत को जोरदार ढंग से अभिव्यक्त करने वाला नाटक एक 'एक मामूली आदमी' मशहूर रंगमंच निर्देशक रमन कुमार द्वारा किया गया अकीरा कुरुसोवा की फ्रसिद्ध फिल्म अकीरू का नाट्य रूपांतरण है। इस नाटक के मुख्य चरित्र आम आदमी की भूमिका भी सालों से इप्टा के आल इंडिया और मुंबई के वर्षों से मौजूद वाइस फ्रेसीडेंट अंजन श्रीवास्तव ही कर रहे हैं। पिछले दिनों मुंबई के सांपूज में इस नाटक के रिहर्सल के दौरान बीच-बीच में अंजन श्रीवास्तव से उनके इप्टा से जुड़ने और इप्टा के तमाम दूसरे सरोकारों पर लोकमित्र की विस्तार से बातचीत हुई। पेश है उस बातचीत के फ्रमुख अंश।

लोकमित्र- इप्टा से जुड़ाव कब और कैसे हुआ ?

अंजन श्रीवास्तव- मैं इस समय उम्र का 69 साल पूरा करके 70 वें साल में फ्रवेश करने जा रहा हूं। जब मुंबई आया था उस समय करीब 30-31 साल का था। इसके पहले मैं कलकत्ता (अब कोलकाता) में था। वहां मैंने 10 साल थियेटर किया।वहां पर संगीत कला मंदिर, अनामिका, अदाकार जैसे थियेटर समूहों के साथ काम किया। उन्हीं दिनों इप्टा के बारे में बलराज साहनी के कुछ आर्टिकल, फिल्म फेयर पत्रिका में पढ़े। कुछ संजीव कुमार साब के पढ़े। जो बहुत अच्छे लगे।

लोकमित्र- इसके पहले तक इप्टा के बारे में नहीं जानते थे ?

अंजन श्रीवास्तव-नहीं। थोड़ा बहुत बस इधर-उधर से सुना भर था।एक बार अपने डायरेक्टर फ्रदीप शाह से पूछा भी था तो उन्होंने बताया दिल्ली में एक शो था मृच्छकटिकम, वहां मुंबई से एम एस सैथ्यू जी आये थे। मैं भी अपना शो ले गया था।उनका प्ले भी काफी उम्दा था। मैंने पूछा इप्टा वाले सैथ्यू ? बोले हां। लेकिन मैंने पूछा इप्टा का पूरा नाम क्या हुआ तो उन्होंने इधर उधर कर दिया बताया नहीं। दरअसल उस समय माहौल कुछ और था फिर वो ग्रुप बिरला जी का था। इसलिए मैंने भी ज्यादा कोशिश नहीं की और कुछ पता भी नहीं चला।

लोकमित्र- फिर इप्टा के बारे में आपको बुनियादी जानकारी कैसे हुई ?

अंजन श्रीवास्तव- इत्तफाक से उस समय हमारे साथ उषा गांगुली जी जुड़ी थीं। वो थियेटर करती थीं।उन दिनों वह काफी बड़ा नाम थीं। उन्होंने अपना एक ग्रुप खोला रीतेश बैनर्जी और रुद्रसेन फ्रसाद गुप्ता को लेकर। जो शम्भू मित्रा के अलावा मॉडर्न थिएटर में बंगाल के वेटरन आर्टिस्ट थे। दरअसल यहीं पहली बार हम इन सवालों से दो-चार हुए कि हम थिएटर क्यों करते हैं ? हम गाना क्यों गाते हैं ? ब्रेख्तियन थिएटर क्या है ? इससे यहीं परिचय हुआ जो एक किस्म से इप्टा तक पंहुचने की नींव बना।

लोकमित्र- फिर इप्टा तक कैसे पंहुचे ?

अंजन श्रीवास्तव- जीवन में पहली बार जिस एक्टर को रूबरू देखा वो बलराज साहनी थे। उनकी फिल्में देखकर तो बहुत फ्रभावित था ही जब पता चला कि वह इप्टा के भी फ्रमुख नाम हैं तो इप्टा के बारे में जानने की जिज्ञासा और बढ़ गयी। बहरहाल 1976 में इप्टा की खोज में कोलकाता से मुंबई पंहुचा। सबसे पहले सत्यदेव दुबे मिले।श्यामानंद जी ने उनके नाम से मेरे लिए लेटर लिखा था। उन्होंने कहा अभी तो मैं कुछ नहीं कर रहा जब करूंगा मिलना। इप्टा के बारे में पूछा तो बताया, हां है कहीं। बहरहाल लोगों से मिलते-मिलते रामेश्वरी के घर चला गया। वहां जावेद खान साब से मुलाकात हुई।

लोकमित्र- ये इप्टा मिल क्यों नहीं रहा था ?

अंजन श्रीवास्तव- हम भी इप्टा को ढूंढते-ढूंढते परेशान हो गए थे। इसलिए जावेद खान साब से पूछा ये इप्टा कहां है भाई ? हमने तो बहुत नाम सुना था लेकिन एक आल इण्डिया संस्था का मुंबई में कोई पता ही नहीं बता पा रहा। इप्टा है। आखिर ये कैसे चलती है ? उन्होंने कहा ऐसे ही चलती है। देखिये विडम्बना कि जो संस्था आजादी के आन्दोलन से जुड़ी थी, उसका मुंबई में कोई ऑफिस तक नहीं था। बहरहाल उन्होंने मुझसे कहा सांपूज आ जाना तुम्हे इप्टा से मिलवायेंगे। मैं उनके द्वारा बतायी जगह पर पंहुचा यहां आर एम सिंह से मुलाकात हुई।

लोकमित्र- यानी आपको मुंबई में अंततः इप्टा जैसी नाट्य संस्था मिल गई ?

अंजन श्रीवास्तव- हां, आर एम सिंह ने मुझसे गाना गाने के लिए कहा। तो हमने गाया, 'जाने वो सब लोग थे कैसे...' हमने गाना गाया तो उन्होंने हमसे सवाल किया आपने गाने के लिए ये गाना क्यों सेलेक्ट किया ? हमने कहा हमें अच्छा लगता है। उन्होंने कहा "rक है। उन दिनों एक प्ले पर काम हो रहा था, मुझे भी उसमें डाल दिया गया। धीरे-धीरे यहीं पर मुझे इप्टा का भरपूर परिचय आर एम सिंह से मिला। तभी हमें पता चला इप्टा कोई नौटंकी या भांड की जगह नहीं है। इसमें लेखक हैं। गीतकार हैं। इप्टा की हिस्ट्री जानिये। लेकिन उससे भी पहले ये सवाल अपने आप से पूछिए क्यों करते हैं प्ले ? किसके लिए करते हैं प्ले ? पता चला यहां मास यानी आम जनता के लिए करते हैं। नॉट ओनली फॉर एंटरटेनमेंट। नॉट ओनली फॉर मनी।

यहां हुई हमारी ट्रेनिंग। आर एम सिंह ने हमें सिखाया।हमें खाना खिलाते हुए वो बताते थे कि बैक ग्राउंड कहां से होगा ? वो कहते थे किसी को कॉपी मत करिए। जिन्दगी को देखिये। आम लोगों के साथ उ"िए बै"िये। उसको जीवन में उतारिये। हमें वो बताते थे कि आपको पोलिटिक्स के बारे में भी जानना जरुरी है। चीजों को खुली नजर से देखिये और अपना डिसीजन लीजिये। यहां हमारी ग्रूमिंग हुई।कैफी साब का साथ हमें मिला। हंगल साब का सानिध्य हमें मिला।एम एस सैथ्यू जैसे महान दिग्गज का हमें साथ मिला (यह कहते कहते उनका गला रुंध जाता है और अंततःरोने लगते हैं) मैं आज जो हूं इन्ही लोगों की वजह से हूं।

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