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बासमती-गैर बासमती का वर्गीकरण बदले तो लोकल फार वोकल को मिले उड़ान

👤 Veer Arjun | Updated on:24 Aug 2023 7:10 AM GMT

बासमती-गैर बासमती का वर्गीकरण बदले तो लोकल फार वोकल को मिले उड़ान

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गोरखपुर। गैर-बासमती चावल पर मौजूदा निर्यात प्रतिबंध से सवाल खड़े होने लगे हैं। हालांकि इसका समाधान अंग्रेजों के राज में किए गए गैर-बासमती चावल एवं बासमती चावल के वर्गीकरण में विशेष चावल जोड़ कर किया जा सकता है। अंग्रेजराज में किए गए वर्गीकरण से आजादी के 76 साल बाद भी ‘विशेष चावल’ उत्पादक क्षति उठा रहे हैं।

उचित मूल्य पर पर्याप्त घरेलू उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए केंद्र ने गैर बासमती सफेद चावल की निर्यात नीति में संशोधन किया है। इसके तहत त्यौहारी सीजन में कम कीमत और उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए गैर बासमती सफेद चावल के निर्यात पर 20 जुलाई से प्रतिबंध है। बासमती चावल पर प्रतिबंध इसलिए नहीं है कि वह भारत के जीआई क्षेत्र में किसानों और व्यापारियों के लिए प्रीमियम मूल्य एवं विदेशी मुद्रा लाता है। बल्कि भारत में बासमती चावल की तरह जीआई टैग वाली कई किस्में मौजूद हैं। इनमें पूर्वी उत्तर प्रदेश के कालानमक चावल भी एक है। कालानमक चावल सुगंधित एवं शुगर फ्री है। पोषण की दृष्टि से बासमती से कहीं अधिक बेहतर है। निर्यात बाजार में यह बासमती चावल से अधिक कीमत पर बिक रहा है।

कालानमक धान की नई प्रजातियों के जनक एवं संरक्षणकर्ता कृषि वैज्ञानिक डॉ रामचेत चौधरी के मुताबिक साल 2019-20 में कुल उत्पादन का सिर्फ 02 प्रतिशत कालानमक चावल निर्यात होता था। वर्तमान में यह आंकड़ा कुल उत्पादन का 07 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। ऐसे चावल के लिए अलग श्रेणी बनाएं तो किसानों एवं व्यापारियों को निर्यात में अच्छी कीमत मिलेगी।

कालानमक धान की तर्ज पर अन्य राज्यों में बेहतर किस्में

वन, वन्यजीव एवं पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कार्यरत संस्था हेरिटेज फाउंडेशन की सरक्षिका डॉ अनिता अग्रवाल कहती हैं कि कालानमक चावल की तरह जियोग्राफिकल इंडीकेशन यानी भगौलिक संकेतक (जीआई टैग) और बेहतर गुणवत्ता वाली अन्य राज्यों की भी कई किस्में हैं। जीआई टैग हासिल चावल की इन सभी किस्मों को ‘विशेष चावल’ के अंतर्गत रखा जा सकता है। ऐसा करने से बासमती के साथ निर्यात कर किसानों की आमदनी में इजाफा होगा।

ज्ञातव्य है कि वर्तमान में बासमती का निर्यात मूल्य 096 रुपये प्रति किलोग्राम है जबकि कालानमक चावल का निर्यात मूल्य 106 रुपये प्रति किलोग्राम है।

जीआई टैग चावल राज्य

नवाराम चावल - केरल

पोक्कली चावल - केरल

वायनाड जीरा कसला चावल - केरल

वायनाड गंध कसला चावल - केरल

कालानमक चावल - उत्तर प्रदेश

आदमचीनी चावल - उत्तर प्रदेश

अजरा घानसल चावल - महाराष्ट्र

अम्बे मोहर चावल - महाराष्ट्र

असम का जोहा चावल - असम

असम का चोकुआ चावल - असम

गोविंद भोग चावल - पश्चिम बंगाल

तुलाईपंजी चावल - पश्चिम बंगाल

कतरनी चावल - बिहार

बासमती इंडिया - पंजाब, हरियाणा, हिमांचल, दिल्ली, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर

निर्यात में गैर बासमती सफेद चावल की हिस्सेदारी सिर्फ 25 प्रतिशत

देश से निर्यात होने वाले कुल चावल में गैर-बासमती सफेद चावल की हिस्सेदारी लगभग सिर्फ 25 फीसदी है। सरकार का मानना था कि गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध से देश में उपभोक्ताओं के लिए कीमतें कम होंगी। हालांकि, गैर बासमती चावल (उबला हुआ चावल) और बासमती चावल की निर्यात नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है, यह चावल निर्यात का बड़ा हिस्सा है। इस कारण इनके उत्पादक किसानों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में लाभकारी कीमतों का लाभ मिल रहा है।

कालानमक धान के लिए यूपी के जीआई जिलों में बढ़ता रकबा

1970 में 40000 हेक्टेयर में कालानमक धान की खेती होती थी। साल 2000 इसका रकबा सिर्फ 2000 हेक्टेयर रह गया। साल 1010 में कालानमक की प्रजाति केएन 3 के अधिसूचित होने के बाद किसानों का रुझान बढ़ा। कालानमक केएन 3, कालानमक 101, कालानमक 102 और कालानमक किरण की प्रजाति अधिसूचित होने और केंद्र एवं प्रदेश सरकार द्वारा कालानमक धान को एक जिला एक उत्पाद में शामिल किए जाने के बाद साल 2021 में रकबा 50 हजार हेक्टेयर, 2022 एवं 2023 में क्रमश: 70 हजार हेक्टेयर और 80 हजार हेक्टेयर पहुंच गया है। वर्तमान में बहराइच, बस्ती, बलरामपुर, देवरिया, गोंडा, गोरखपुर, कुशीनगर, महराजगंज, संतकबीरनगर, श्रावस्ती, सिद्धार्थनगर में 80 हजार हेक्टेयर में 20 हजार किसान कालानमक धान की फसल उगा रहे। इन किसानों में 6731 आर्गेनिक रूप से कालानमक धान की खेती कर रहे हैं।

कृषि वैज्ञानिक ने कहा

कृषि वैज्ञानिक एवं पीआरडीएफ के अध्यक्ष डॉ रामचेत चौधरी का कहना है कि सरकार बासमती को एक अलग वर्ग रखना चाहती है, तो उसे 03 वर्ग बनाने चाहिए। पहला गैर बासमती, दूसरा बासमती एवं तीसरा विशेष चावल। विशेष चावल वर्ग में विभिन्न राज्यों में चावल की जीआई हासिल किस्मों को रखा जाना चाहिए। इससे पीएम के वोकल फॉर लोकल के दृष्टिकोण को भी समर्थन मिलेगा। बासमती और गैर-बासमती के वर्तमान वर्गीकरण को बदलने के लिए मैंने 23 जुलाई को ही संबंधित अधिकारियों को अनुरोध लिखा था।


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