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इसलिए नहीं कम हो सकतीं पेट्रोल-डीजल की कीमतें?

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:17 Sep 2018 3:12 PM GMT
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पेट्रोल-डीजल के दाम रोजाना बढ़ने से आम लोग परेशान हैं पर लगता नहीं कि केंद्र सरकार या राज्य सरकारें इसमें किसी प्रकार की राहत देना चाहती हैं। इसका कारण है बढ़ी हुई आमदनी। एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक बढ़े दामों से 19 प्रमुख राज्यों को 2018-19 में 22,702 करोड़ रुपए की अतिरिक्त कमाई होगी। यह आंकलन साल में कच्चे तेल की औसत कीमत 75 डॉलर प्रति बैरल और डॉलर का मूल्य 72 रुपए मानकर किया गया है। कीमत बढ़ने के साथ वैट के रूप में वसूली बढ़ने से सरकारों की कमाई भी बढ़ जाती है। केंद्र की एक्साइज ड्यूटी फिक्सड होने के बावजूद कमाई 2014-15 में 99 हजार करोड़ से बढ़कर 2017-2018 में 2.29 लाख करोड़ हो गई है। गत मंगलवार को दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 80.87 रुपए और डीजल की 72.97 रुपए लीटर हो गई। दोनों के दाम 14 पैसे बढ़े। अब तो इसमें भी इजाफा हो गया है। अप्रैल से गत मंगलवार तक पेट्रोल 9.95 प्रतिशत और डीजल 13.3 प्रतिशत महंगा हुआ है। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने बुधवार को कहा कि सरकार पेट्रोल-डीजल के दाम को काबू में रखने को लेकर जो रुख अपना रही है वह उचित है, क्योंकि इन ईंधनों पर उत्पाद शुल्क में कटौती से राजकीय घाटा बढ़ेगा और समस्या कम होने की बजाय जटिल हो जाएगी। उन्होंने यह बात ऐसे समय कही है जबकि तमाम विपक्ष और जनता ईंधन के भाव में तेजी को लेकर उत्पाद शुल्क की कटौती की मांग कर रही है। जाहिर है कि न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकारें ईंधन की कीमतों पर नियंत्रण लगाने व घटाने का कोई इरादा रखतीं। बेशक राजस्थान और आंध्रप्रदेश ने वैट में कटौती कर कुछ राहत दी है। चार राज्यों में विधानसभा चुनावों में ईंधन की बढ़ती कीमतों का मुद्दा जरूर उछलेगा। इसलिए संभव है कि वोटों की खातिर शायद राज्य सरकारें मामूली राहतें दें। गत वित्त वर्ष में पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क, लाभांश अन्य मुद्दों में तीन लाख 43 हजार करोड़ रुपए की धनराशि मिली थी। इसी तरह राज्य सरकारों को वैट के रूप में दो लाख 10 हजार करोड़ रुपए मिले थे। कुल मिलाकर केंद्र का राज्य सरकारों पर दबाव है कि वे वैट में कमी करें। केंद्र सरकार और राज्य सरकारें कीमतें घटा सकती हैं तावक्ते ऐसा करने का उनका कोई इरादा हो। उनकी नजरों में पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतें कोई चुनावी मद्दा नहीं है। वह सोचती हैं कि आखिर भारत की जनता के पास चुप रहने के अलावा विकल्प ही क्या है? रुपया और कमजोर हो रहा है, कच्चे तेल की कीमतें बढ़ेंगी और इसमें पेट्रोल-डीजल की कीमतों में और बढ़ोत्तरी होगी। इसके लिए तैयार रहना होगा।

-अनिल नरेन्द्र

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