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मुख्य सचिव व पंचमतल कसौटी पर

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:9 Oct 2018 3:41 PM GMT
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श्याम कुमार

हाल में मैंने `पंचम तल सिर्प पोस्ट ऑफिस न हो' शीर्षक आलेख लिखा था, जिसमें लिखा था कि उत्तर पदेश में मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ से बढ़कर कोई दूसरा चेहरा नहीं है, किन्तु उनकी सफलता एवं ख्याति में सबसे बड़ा अवरोध नौकरशाही सिद्ध हो रही है। उसका न तो पुराना चरित्र बदला है और न कार्यपणाली तथा नौकरशाही का अधिकांश हिस्सा पहले की तरह भ्रष्टाचार एवं कामचोरी से बुरी तरह ग्रस्त है। जनता को नौकरशाही के भ्रष्टाचार के समक्ष कदम-कदम पर घुटने पहले की तरह ही टेकने को मजबूर होना पड़ रहा है। मेरे आलेख के इतने हिस्से की तो सभी ने बहुत तारीफ की, किन्तु आलेख में एक दूसरा हिस्सा था, जिसकी पक्ष एवं विपक्ष, दोनों में पतिक्रियाएं मिलीं। उस हिस्से में मैंने शास्त्राr भवन स्थित मुख्यमंत्री कार्यालय `पंचम तल' का उल्लेख करते हुए लिखा था कि उसे मात्र डाकघर की तरह नहीं काम करना चाहिए, बल्कि वहां बै"s अफसरों को, विशेषकर मुख्यमंत्री के पमुख सचिव शशि पकाश गोयल को विभिन्न मसलों पर स्वयं साहसपूर्वक निर्णय लेकर मुख्यमंत्री पर लदा हुआ भार हल्का करना चाहिए। कुछ लोगों ने शशि पकाश गोयल की साफ-सुथरी छवि एवं ईमानदारी की चर्चा करते हुए कहा कि पंचम तल के लिए उनसे अधिक योग्य पमुख सचिव नहीं मिल सकता था। यह बिल्कुल सत्य है, लेकिन यह भी सत्य है कि शशि पकाश गोयल उस साहसपूर्ण क्षमता का पदर्शन नहीं कर पा रहे हैं, जिससे मुख्यमंत्री को अपने काम का बोझ हल्का महसूस करने में मदद मिल सके।

सरकार विरोधी झंझावात को विफल करने तथा सरकार के पक्ष में माहौल बनाने में सबसे बड़ी भूमिका दो अधिकारियों की होती हैöमुख्य सचिव एवं मुख्यमंत्री के पमुख सचिव। सूचना विभाग का तो बहुत बड़ा हाथ होता ही है। मुख्यसचिव में यह गुण है कि वह अनुभवी, विनम्र एवं परिस्थिति के अनुकूल उचित निर्णय लेनेवाले हैं। लेकिन वह भी मुख्यसचिव के कार्यालय की चली आ रही कार्यपणाली को बदलने में सफल नहीं हुए हैं। मुख्यसचिव का काम सिर्प मुख्यमंत्री की आकांक्षाओं को कार्यान्वित करना नहीं, बल्कि जनता की आकांक्षाओं को भी पूरा करना होता है। वर्तमान मुख्यसचिव भी इस दूसरे पहलू पर ध्यान नहीं दे पाए हैं। इस दृष्टि से उनकी पूर्ण सफलता तभी मानी जाएगी, जब वह पूरे पदेश के पशासन को आम जनता के समक्ष नतमस्तक कर देंगे। अभी तो मुख्यसचिव से भी मिल पाना अत्यंत क"िन होता है। जनपदों में तैनात जो बड़े अधिकारी हैं, उन तक जनता की पहुंच वास्तविक न होकर मात्र दिखावा होती है। मुख्यसचिव को अत्यंत कड़ाई से जनपदों में तैनात बड़े से बड़े एवं छोटे से छोटे अफसरों को विवश करना चाहिए कि वे जनता की फरियाद सुनें तथा लोगों की समस्याओं का वास्तव में समाधान भी करें।

जनपदों में तैनात जो नौकरशाही इसमें शिथिलता बरते या भ्रष्टाचार करे, उसके पति निर्ममतापूर्वक क"ाsरतम कार्रवाई की जानी चाहिए। केवल निलंबन या तबादला कोई दंड नहीं है। आरामतलबी व मौजमस्ती के लिए फील्ड में तैनाती पाने की मनोवृत्ति वाले लोगों के बजाय वहां उन लोगों की तैनाती की जानी चाहिए, जो दिन-रात पूर्णरूपेण समर्पित होकर जनता की सेवा करने एवं उसकी समस्याओं का निदान करने में रुचि रखते हों।

बिल्कुल यही बात मुख्यमंत्री के कार्यालय पर भी लागू होती है। सोचने का विषय है कि कल्याण सिंह को सफलतम मुख्यमंत्री बनाने का श्रेय क्या उनके मुख्यसचिव, पंचम तल स्थित उनके अधिकारियों एवं सूचना विभाग को नहीं था? योगेंद्र नारायण, सुभाष कुमार, बलविंदर कुमार, आलोक रंजन जैसी क्षमता एवं स्वाभाववाले अधिकारियों से ही मुख्यमंत्री का काम का बोझ हल्का हुआ करता है। यहां मात्र एक उदाहरण से स्थिति समझी जा सकती है। अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में अवकाशपाप्त वरिष्" आईएएस अधिकारी सत्य नारायण शुक्ल ने सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें मांग की गई थी कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी आवास उपलब्ध कराना गलत है तथा उनसे वे आवास वापस ले लिए जाएं। सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी याचिका में की गई मांग को सही "हराते हुए फैसला सुनाया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पूर्व मुख्यमंत्रियों से आवास नहीं खाली कराए, बल्कि उन आवासों पर उनके कब्जे को कायम रखने का कदम उ"ाया। सत्यनारायण शुक्ल की जनहित याचिका में पत्रकारों से सरकारी आवास खाली कराए जाने का कहीं भी उल्लेख नहीं था, लेकिन अखिलेश यादव ने अपनी घटिया मनोवृत्ति का परिचय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में नाजायज रूप से पत्रकारों का नाम घसीट लिया और उन्हें बहुत उत्पीड़ित किया।

जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री पद पर आरूढ़ हुए तो पत्रकारों ने उनके सामने यह पकरण रखा। उनसे पहले पत्रकार अन्य सारे दरवाजे खटखटा चुके थे। शशि पकाश गोयल को अखिलेश यादव के अवैध एवं अनुचित कदम को निरस्त करते हुए स्वयं पत्रकारों के अनुकूल फैसला कर लेना चाहिए था। लेकिन एक पत्रकार ने बताया कि जब उन्होंने योगी आदित्यनाथ से पुनः यह बात कही तो उन्होंने वहां मौजूद अपने पमुख सचिव शशि पकाश गोयल से पूछा कि उन्होंने इस पकरण पर उनके निर्णय को क्यों नहीं कार्यावित किया? शशि पकाश गोयल को तो मुख्यमंत्री से पूछकर यह कदम भी उ"ा लेना चाहिए था कि जिन पत्रकारों के पास अपने मकान हैं, उन्हें सरकारी मकान नहीं दिए जाएं। मेरे `पंचम तल सिर्प पोस्टऑफिस न हो' शीर्षक आलेख में कुछ लोगों द्वारा की गई इस चर्चा का भी उल्लेख किया गया था कि सूचना एवं पर्यटन विभाग के पमुख सचिव अवनीश कुमार अवस्थी ब्राह्मणवाद का पोषण कर रहे हैं, जिसका सरकार की छवि पर बुरा असर पड़ रहा है।

लोगों को शिकायत है कि अवनीश कुमार अवस्थी कुछ खास लोगों को ही महत्व देते हैं तथा अन्य की उपेक्षा करते हैं। इस बिन्दु पर ये पतिक्रियाएं सुनने को मिलीं कि अवनीश कुमार अवस्थी ऐसा करके गलत क्या कर रहे हैं? उन लोगों के अनुसार इस समय ब्राह्मण वर्ग सर्वाधिक उपेक्षित एवं तिरस्कृत है, अतः कोई तो है, जो उसके सिर पर हाथ रख रहा है।

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