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चला गया दिल्ली का शेर...

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:29 Oct 2018 4:18 PM GMT
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पूर्व मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना दिल्ली के शेर के नाम से भी जाने जाते थे। वह दिल्ली भाजपा के एकमात्र ऐसे नेता रहे, जिनके कारण दिल्ली में भाजपा को सत्ता नसीब हुई। वर्ष 1993 में खुराना जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद हुए चुनावों में भाजपा सत्ता में वापसी नहीं कर पाई। वर्ष 1993 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने मदन लाल खुराना के नेतृत्व में भारी सफलता प्राप्त की और वह मुख्यमंत्री बनें। मुझे याद है कि एक समय खुराना जी देश के प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव से भी ज्यादा लोकप्रिय थे। जैन हवाला कांड मामले में उनके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल होने के बाद उन्होंने स्वेच्छा से त्यागपत्र दे दिया और उनकी जगह तत्कालीन मंत्री साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि आडवाणी जी के साथ उनका भी नाम हवाला कांड मामले में बरी हो गया, लेकिन उनको फिर से सीएम की गद्दी नसीब नहीं हो पाई। भाजपा नेतृत्व ने उनसे नाइंसाफी की और चाहते हुए भी उन्हें दोबारा इस पद पर नहीं बैठाया गया। भारतीय जनता पार्टी को दिल्ली में स्थापित करने वाले मदन लाल खुराना का मन दिल्ली में ही बसता था। वह केंद्र में मंत्री बनें हों या राजस्थान के राज्यपाल, दिल्ली की सियासत से दूरियां उनमें कभी नहीं आईं। उन्होंने एक बार यहां तक कह दिया था कि दिल्ली उनका मंदिर है और वह इसके पुजारी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पार्टी जब हाशिये पर चली गई तो उन्होंने अपनी मेहनत और लोकप्रियता से उन्हें शून्य से शिखर तक पहुंचाया। खुराना जी ने हमेशा सीधी राजनीतिक लड़ाई लड़ी, उनके सामने कांग्रेस हमेशा रही। मदन लाल खुराना एकमात्र ऐसे नेता थे जिनकी दुकानदारों-व्यापारियों के अलावा हर समुदाय पर गहरी पकड़ थी। खुराना जी के रहते मोती नगर विधानसभा क्षेत्र में कभी भी कोई पार्टी कब्जा नहीं कर पाई। दिल्ली में उनके अलावा भाजपा में से कोई नेता नहीं हुआ, जिसने सभी वर्गों में अपनी पहचान बनाई थी। यही कारण है कि उन्हें दिल्ली का शेर कहा जाता था। उनके विरोधी भी इस बात को मानते थे कि खुराना जैसा नेता दिल्ली में भाजपा को कभी नहीं मिल पाया और वह उन्हें शेर दिल के रूप में मानते थे। वह 82 साल के थे। दिल्ली के कीर्ति नगर स्थित अपने मकान में उन्होंने आखिरी सांस ली। मदन लाल खुराना पिछले लगभग पांच साल से ब्रेन स्ट्रोक की वजह से कोमा में थे। हाल ही में उनके बड़े बेटे विमल खुराना का दिल का दौरा पड़ने से निधन हुआ था। खुराना जी दोस्तों के दोस्त थे और हरेक की मदद करते थे। हमारे लिए तो खुराना जी का जाना एक परिवार के सदस्य के जाने के समान है। वह किस कदर मदद करते थे उसकी आपबीती सुनाता हूं। हमारा (वीर अर्जुन) का एक सरकारी वित्तीय संस्था से बकाया कर्ज पर मतभेद हो गया था। यह बात 90 के दशक की है। हमारी जायज मांग भी वह मानने को तैयार नहीं थे। जब कोई चारा नहीं बचा तो हम (मेरे स्वर्गीय पिता के. नरेन्द्र) खुराना जी से मिलने गए। हमने पहले से ही उन्हें अपनी समस्या बता रखी थी। जब खुराना जी के कार्यालय में मीटिंग हुई तो उस समय उस वित्तीय संस्था के प्रमुख अपने स्टाफ के साथ मौजूद थे। हमने अपनी बात रखी और उस वित्तीय संस्था के प्रमुख ने अपनी दलीलें, कायदे-कानून पेश किए। खुराना जी को हमारी दलीलों में दम नजर आया और उन्होंने उस प्रमुख से कहा कि इनकी दलीलों व इनके तथ्यों के अनुसार आप फैसला कर दें। उस प्रमुख ने ऐसा करने से मना कर दिया और अपनी बात पर अड़ा रहा। जब खुराना जी ने सख्ती से उसे करने को कहा तो उसने कहा कि आप लिखित में आदेश दें तभी करूंगा। खुराना जी ने एक मिनट नहीं लगाया और उसकी फाइल पर लिखित आदेश दे दिए। अगर उस दिन खुराना जी इतना सख्त स्टैंड न लेते और वह भी लिखित में तो वीर अर्जुन आज शायद जिन्दा न होता। इस बात को हम कैसे भूल सकते हैं। और संयोग देखिए कि खुराना जी का देहांत भी 27 अक्तूबर को हुआ जिस दिन मेरे स्वर्गीय पिता जी के. नरेन्द्र का भी देहांत हुआ था। खुराना जी को हम कभी नहीं भूल सकते। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे और परिवार को इस अपूर्णीय क्षति से उभरने का साहस प्रदान करे। ओम शांति।

-अनिल नरेन्द्र

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