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भारत-जापान दोनों संतुलन की खोज में

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:31 Oct 2018 4:05 PM GMT
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सुशील कुमार सिंह

किसी भी देश की विदेश नीति का मुख्य आधार उस देश को वैश्विक स्तर पर न केवल उपस्थिति दर्ज कराना बल्कि अपनी नीतियों के माध्यम से नई ऊंचाई हासिल करना भी होता है। अक्टूबर के आखिर में पधानमंत्री मोदी की जापान यात्रा को सरसरी तौर पर देखा जाय तो सम्बंधों को नई ऊंचाई और संतुलनवादी सिद्धांत में बढ़त मिली है। जापानी पधानमंत्री शिंजो एबे से मोदी की यह बारहवीं मुलाकात थी जिसमें दोस्ती और भरोसा दोनों का समावेश था। हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच सम्बंधों के लिहाज से गुणात्मक बदलाव फिलहाल देखने को मिल रहा है। गौरतलब है कि जापान के पधानमंत्री एबे की पिछले साल सितम्बर यात्रा वैसे तो बुलट ट्रेन के चलते कहीं अधिक सुर्खियों में रही मगर गुजरात के गांधीनगर में मोदी के साथ द्विपक्षीय बै"क में जो कुछ हुआ था उससे यह स्पष्ट था कि रणनीति और सुरक्षा सम्बंधी मापदण्डों पर भारत और जापान कहीं अधिक स्पीड से आगे बढ़ना चाहते हैं। इसी समय शिंजो एबे ने जय जापान, जय इण्डिया का नारा दिया था। भारत के साथ जापान के बढ़ते रिश्तों को लेकर फिलहाल चीन भी हरकत में है। जापान के सहयोग से भारत चीन से लगी सीमा पर आधारभूत ढांचे का विकास कर रहा है और इसी इलाके पर चीन अपना दावा करता है। भारत और जापान की द्विपक्षीय वार्ता के दौरान पीएम मोदी और जापान के पीएम शिंजो एबे के बीच हाईस्पीड ट्रेन और नेवी कॉरपोरेश समेत कई समझौते हुए इस दौरान दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों और विदेश मंत्रियों के बीच टू प्लस टू वार्ता को लेकर भी सहमति बनी।

इतना ही नहीं दोनों डिजिटल पार्टनर्स से साइबर स्पेस, स्वास्थ, रक्षा, समुद से अंतरिक्ष में सहयोग बढ़ाने को लेकर सहमत हुए। खास यह भी है कि जापान के निवेशकों ने ढ़ाई मिलियन डॉलर निवेश करने का भी एलान किया। बीते कुछ वर्षों से नैसर्गिक मित्रता की ओर बढ़ रहे भारत और जापान आपस में पहले भी दोस्ती के अच्छे संकेत दे चुके हैं। गौरतलब है कि अहमदाबाद से मुम्बई के बीच बुलेट ट्रेन की परियोजना के कुल खर्च 110 हजार करोड़ के निवेश में 88 हजार करोड़ निवेश जापान द्वारा किया जाना तय है साथ ही तकनीक की उपलब्धता भी वह करा रहा है।

भारत का उत्कृष्ट नेता बताते हुए एबे ने मोदी को सबसे भरोसेमंद दोस्त कहा है। भारत और जापान के संबंध दुनिया को बहुत कुछ दे सकने की क्षमता रखता है। सुरक्षा, निवेश, सूचना पौद्योगिकी समेत कृषि, पर्यावरण और पर्यटन जैसे क्षेत्र में सहयोग बढ़ेगा। वैसे मोदी और एबे के चलते दोनों देशों के सम्बंध कहीं अधिक बेहतर तो हुए हैं। हालांकि इसके पीछे विश्व की बदलती परिस्थिति भी जिम्मेदार है। बरसों से जापान उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यकम को लेकर परेशानी महसूस कर रहा था और यह परेशानी तब और बढ़ जाती है जब चीन उत्तर कोरिया के समर्थन में खड़ा दिखता है। हालांकि दक्षिण कोरिया भी जापान की तरह ही मुसीबत महसूस कर रहा है। इतना ही नहीं उत्तर कोरिया के चलते अमेरिका भी काफी जिल्लते झेली। फिलहाल उत्तर कोरियाई तानाशाह किम जोंग और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच सिंगापुर में द्विपक्षीय वार्ता के चलते परेशानी घटी है। उत्तर और दक्षिण कोरिया के आपसी मुलाकात से ही समस्याएं कम होते दिख रही हैं। डोकलाम पर बीते वर्ष चीन का मजबूती से काबिज होने वाला विचार तब थोड़ा दबाव में गया था जब जापान ने भारत का समर्थन किया। हालांकि अमेरिका समेत कई देश चीन के इस रूख के खिलाफ थे। इसमें कोई दुविधा नहीं कि भारत और जापान दोनों एक-दूसरे को समय-समय पर मनोवैज्ञानिक लाभ देते रहे हैं। इतिहास को खंगाला जाय तो दोनों देश सदियों से सम्बंध से अभिभूत रहे हैं। छ"ाr शताब्दी में बौद्ध धर्म के उदय तथा जापान में इसके पचार-पसार के समय से ही यह मधुरता देखी जा सकती है। भारत और जापान के बीच अपैल 1952 से राजनयिक सम्बंधों की स्थापना हुई जो अब नैसर्गिक मित्रता की ओर बढ़ते दिख रही है। अनेक संयुक्त उपामों की स्थापना सम्बंधों की गहराई का एहसास करा रहे हैं। दोनों देश 21वीं सदी में वैश्विक साझेदारी की स्थापना करने हेतु आपसी समझ पहले ही दिखा चुके हैं। तत्कालीन पधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का भी इस दिशा में पयास सराहनीय रहा है। साल 2005 में तब के पधानमंत्री मनमोहन सिंह और जापानी पधानमंत्री ने एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया जिसका शीर्षक नये एशियाई युग में जापान-भारत साझेदारी था। गौरतलब है कि दिसम्बर 2006 में मनमोहन सिंह और यही शिंजो एबे ने सामरिक उन्मुखता को ध्यान में रखते हुए कई मसौदों को आगे बढ़ाया था।

विश्व नई करवट ले रहा है और अमेरिका जैसे देश समझौतों और मसौदों से बाहर निकलते हुए अपनी ताकत को एकजुट करने की कोशिश में लगे हुए हैं। भारत-ईरान परमाणु समझौता, एशिया पेसिफिक पार्टनरशिप और पेरिस जलवायु समझौता समेत रूस से शीत युद्ध के दौरान 1987 में हुए आईएनएफ समझौते से हटकर अमेरिका ने इसका पुख्ता सबूत दिया है। अमेरिका रूस और चीन को सबक सिखाना चाहता है। चीन तमाम समझौतों के बावजूद सीमा विवाद के मामले में भारत को हमेशा आंख दिखाता रहता है। इतना ही नहीं पाकिस्तान को मनोवैज्ञानिक और आर्थिक ताकत देकर अपनी भड़ास भी यदा-कदा निकालता रहता है। न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप के 48 देशों में चीन भी शामिल है। जिसके चलते भारत की एंट्री क"िन हुई है क्योंकि बिना चीन की रजामंदी के भारत का पवेश सम्भव नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् में पाक आतंकियों को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित कराने को लेकर भारत के पयासों को वह कुंद करता रहा है। पिछले साल जून में उपजे डोकलाम विवाद से यह भी स्पष्ट हो गया था कि मोदी और चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग कितनी बार एक-दूसरे के देश आये-गये हों पर स्वार्थ के मामले में चीन ही अव्वल रहेगा। खास यह भी है कि भारत और चीनियों की दुश्मनी की तुलना में चीनियों और जापानियों की दुश्मनी कहीं आगे है। जापानी मीडिया भी मानता है कि एबे मोदी से करीबी बढ़ाकर जापान बड़ी ताकतों के बीच जापान संतुलनवादी नीति से आगे बढ़ना चाहता है। इतिहास गवाह है कि भारत और जापान की साझेदारी का कोई विकल्प नहीं है। धुंधली तस्वीर यह भी है कि ट्रम्प ने जापान से दूरी बनायी है इसलिए जापान भारत और कुछ हद तक चीन से करीबी बढ़ाना चाहता है। कुछ दिन पहले एबे चीन के दौरे पर गये थे यह किसी भी जापानी पधानमंत्री का 7 साल बाद हुआ दौरा था। हालांकि जापान और भारत दोनों के रिश्ते चीन से करवाहट भरे है लेकिन दोनों इससे शत्रुता नहीं चाहते। जाहिर है कहीं न कहीं चीन से भी हित जुड़ता है।

गौरतलब है कि चीन की महत्वाकांक्षी योजना वन बेल्ट, वन रोड़ का विरोध भारत और जापान कर चुके हैं। भारत का चीन के साथ सीमा विवाद है जबकि जापान का उससे समुदी विवाद है। जापान अमेरिका और भारत दक्षिण चीन सागर में युद्धाभ्यास करके चीन को पहले उथल-पुथल में ला चुके हैं। सवाल यह है कि जिससे दुश्मनी है उसी से दोस्ती भी करनी है। परस्पर हित न टकरायें इसे लेकर सभी अपनी-अपनी चिंता में फंसे हैं पर एक बात तय है कि भारत जापान के जरिये चीन को चुनौती देने में बेहतर महसूस कर सकता है। मोदी अब तक 3 बार जापान जा चुके हैं जबकि शिंजो एबे भी 3 बार भारत आ चुके हैं। 2005 से दोनों देश के पमुख लगभग हर वर्ष एक-दूसरे से मिल रहे हैं। यह अभी के वैश्विक परिपेक्ष्य को ध्यान में रखकर बात कही जा रही है यदि आगे कुछ बदलाव होता है तो भी भारत और जापान एक-दूसरे पर भरोसा कर सकते हैं और फायदा ले सकते हैं अन्ततः मोदी का जापान दौरा भारत को न केवल आर्थिक बल्कि मनोवैज्ञानिक फायदा भी दे रहा है।

(लेखक वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के निदेशक हैं)।

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