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आखिर है क्या संघ का एजेंडा?

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:28 Nov 2018 4:00 PM GMT
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डॉ. बलराम मिश्र

आजकल केवल पूरे देश में ही नहीं, पूरे विश्व में, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की चर्चा हो रही है। 25 फरवरी 2018 को मेरठ में तीन लाख से भी अधिक गणवेश धारी स्वयंसेवकों की अनुशासित उपस्थिति में, संघ द्वारा आयोजित तथा पूज्य स्वामी अवधेशानंद जी महाराज की अध्यक्षता में सम्पन्न `राष्ट्रोदय' नामक कार्यक्रम में, तथा उसके पश्चात अनेक अन्य अवसरों पर संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत के उद्बोधन, भगवान बुद्ध के `धम्म-चक्क-पवत्तन' (धर्म-चक्र-प्रवर्तन) का स्मरण कराते हैं। स्पष्ट शब्दों में यह स्मरण कराया गया कि भारत के अस्तित्व का प्रयोजन ही है मानव जाति का कल्याण।

निष्काम भाव से देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि संघ का कोई मजहबी या राजनीतिक एजेंडा कभी रहा ही नहीं। उसका एजेंडा रहा है भारत को परमवैभव के शिखर पर ले जाना अर्थात भारत की सुरक्षा, भारत का सर्वांगीण विकास एवं उन्नति और इस लिए विशाल हिन्दू समाज को संगठित और सशक्त करने की प्रतिबद्धता, वह समाज जो अनादि काल से हिमालय और इंदु सागर के मध्य में रहता रहा हैöहिमालयं समारभ्य यावदिंदु सरोवरम, तं देव निर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते' अर्थात हिमालय से ले कर हिंदु महासागर तक फैला जो देव निर्मित देश है उसे हिन्दुस्थान कहा जाता है।

संघ हिन्दुस्थान को इसी प्रकार परिभाषित करता है। इस देश में रहने वाले सभी लोग हिन्दू है, उनके मजहब, पंथ, भाषा या क्षेत्र चाहे जो भी हों। हिन्दू जीवन पद्धति में इंसानियत एवं उन जीवन मूल्यों का सदैव महत्त्व रहा है जिन की उपज हैं `सत्यमेव जयते, वसुधैव कुटुम्बकम, अहिंसा परमो धर्मः, सर्वे भवन्तु सुखिन, आनोभद्राः क्रतवो यन्तु विश्वत, जन सेवा ही नारायण सेवा है' जैसे अनेकानेक अमृत वचन, जिनके माध्यम से ही मानव जाति का कल्याण संभव है। इन पर आचरण करने की दिशा में अग्रसर होने से जो प्रगतिशील उद्घाटन (प्रोग्रेसिव अंफोल्दमेंट) विकसित होता है वह विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है।

पूरी वसुधा के कल्याण के लिए ही भारत के अस्तित्व का प्रयोजन होने के कारण भारत का सशक्त होना और सम्पन्न होना आवश्यक है। हिन्दू जीवन दर्शन, अर्थात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, का यही एजेंडा है, जिसमें व्यक्ति, परिवार एवं समाज ही नहीं, पूरी सृष्टि के कल्याण का भाव निहित है। इसमें गुण एवं कर्म की प्रांजलता, न कि किसी व्यक्ति, समूह या राष्ट्र का आधिपत्य, का ही वर्चस्व रहने की धारणा निहित है। इसीलिए आज धरती, जल, वायु, अंतरिक्ष एवं आकाश से संबंधी हर समस्या के समाधान के लिए विश्व हिन्दू जीवन दर्शन से अनंत अपेक्षाएं रखता है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इस एजेंडा का मूल मंत्र है उसकी प्रार्थना, जिसे संघ के करोड़ों स्वयंसेवक नित्य, विभिन्न समयों पर, सामूहिक रूप से बोलते हैं। `परंवैभवं नेतुमेतत्स्वराष्ट्रम' उसी प्रार्थना की अंतिम पंक्ति के पूर्व की पंक्ति का भाग है। प्रार्थना की प्रथम पंक्ति हैö `नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे'। इस प्रार्थना के हर शब्द से संघ का एजेंडा परिलक्षित होता है। संस्कृत भाषा में रची यह प्रार्थना 1940 से प्रचलन में है। उससे पहले जो प्रार्थना बोली जाती थी उसका पूर्वार्ध मराठी में और उत्तरार्ध हिंदी में था। उस प्रार्थना की प्रथम पंक्ति थी, `नमोमातृभूमी, जिथे जन्म लोमी।' उसकी अंतिम पंक्ति थी, `ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें'। 1939 में महाराष्ट्र के जिला वर्धा के सिंदी नामक स्थान पर हुई संघ की एक बैठक में वर्तमान प्रार्थना का प्रारूप तैयार किया गया था, जिसका संस्कृतीकरण किया था संस्कृत के विद्वान स्वयंसेवक श्री नरहरि नारायण भिड़े ने। उस बैठक में आद्य सरसंघचालक (संघ के रचयिता) डॉ. हेडगेवार तथा द्वितीय सरसंघचालक श्री माधव राव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य श्री गुरु जी स्वयं उपस्थित थे। वर्तमान प्रार्थना रेशिम बाग (नागपुर) में 1940 में सम्पन्न संघ शिक्षा वर्ग में सर्वप्रथम कर्नाटक प्रांत प्रचारक श्री यादव राव जोशी के द्वारा बोली गई थी। श्री गुरुजी उस वर्ग के वर्गाधिकारी थे। सिंदी का एक अति विशिष्ट स्थान है। सिंदी में ही 1954 में 9 से 16 मार्च तक लगभग 300 कार्यकर्ताओं की एक सप्त दिवसीय बैठक में मुक्त चिंतन एवं विचार विनिमय हुआ।

इसमें श्री गुरु जी का वैशिष्ट्य पूर्ण उद्बोधन हुआ था। 1940 की सिंदी बैठक में डॉ. हेडगेवार की उपस्थिति का उल्लेख करते हुए श्री गुरु जी ने घोषणा की थीöइस प्रकार के प्रसार का हम निश्चय करें जिससे इतना सामर्थ्य उत्पन्न हो कि अपने इंगित मात्र से ही देश के भिन्न-भिन्न क्षेत्र चल सकें और देश पर संकट लाने की क्षमता रखने वालों के हृदय पर सदा के लिए आतंक छा जाए और वे उससे निवृत्त हो जाएं, ऐसी स्थिति हमें उत्पन्न करनी है। यही अपने लिए करणीय है, ऐसा मैं सोचता हूं कि संघ की प्रार्थना इस संकल्प से ही अभिप्रेत है। संघ की प्रार्थना में कहीं एक बार भी किसी देवी-देवता का नाम तक नहीं मिलता। प्रार्थना की प्रथम पंक्ति में सबसे पहले सदा वत्सला मातृभूमि हिन्दू भूमि को नमन किया गया है और उसके पश्चात ही परमात्मा के प्रति नमन है। गौर करने वाली बात यह है कि संघ के लिए परमात्मा का स्थान मातृभूमि के पश्चात ही आता है। मातृभूमि से प्रार्थना की गई है कि हमारी काया आपके हित में ही खपे। प्रार्थना के अगले पदों में परमात्मा से सात आशीष मांगे गए हैंö

`हे प्रभु, हमने आपके कार्य को पूर्ण करने के लिए कमर कस रखी है, उसकी पूर्ति हेतु हमें आशीष दें। परमात्मा का कार्य क्या है धर्म पर आचरण करने हेतु धर्म की स्थापना तथा दुष्कृत्य करने वालों का विनाश। परमात्मा के इस संकल्प को किसी भी मजहबी दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। मांगे गए सात आशीष अधोलिखित हैंö

1. विश्व के लिए जो अजेय हो, ऐसी शक्ति दें।

2. सारा जगत जिससे विनम्र हो ऐसा विशुद्ध शील दें, अर्थात श्रेष्ठ स्वभाव एवं उत्तम आचरण प्रदान करें। क्या विश्व में इस प्रकार की कोई मजहबी या सामाजिक व्यस्था है जिसके अंतर्गत परमात्मा से यह प्रार्थना की गई हो कि हम को इतना श्रेष्ठ स्वभाव एवं उत्तम आचरण प्रदान करे जिसके सामने पूरा विश्व विनम्र बने?

ऐसे कई मजहब एवं संप्रदाय हैं जो यह मानते हैं कि विश्व को विनम्र बनाने के लिए केवल दहशतगर्दी या आतंकवाद ही एक रास्ता है,जिसे परमेश्वर की रजामंदी मिली है। इसीलिए आज, इस विकासशील युग में भी, विभिन्न प्रकार की हिंसाओं, लूटपाट, आगजनी, अपहरण, शीलभंग, बलात्कार, अन्याय, अत्याचार जैसे तमाम अमानुषिक कृत्यों को मानो सामाजिक मान्यता मिली है। वे इसे मजहब का हिस्सा मानते हैं। वे शील की भाषा जानते-समझते ही नहीं, इसीलिए संघ की प्रार्थना में सबसे पहले जो आशीष मांगा गया है वह है शक्ति। शक्ति रहित किसी धर्म की कल्पना करना मूर्खता के अतिरिक्त कुछ नहीं।

3. हमारे स्वयंस्वीकृत कंटकमय मार्ग को सुगम करने वाला ज्ञान दें।

4. ऐहिक और पारलौकिक कल्याण की प्राप्ति के लिए वीरव्रत नामकजो एकमेव उग्र साधन है, उसका हमारे अंतकरण में स्फुरण हो।

5. हमारे ह्रदय में अक्षय तथा तीव्र ध्येय निष्ठा सदैव जागृत रहे।

6. हमारी विजयशालिनी संगठित कार्यशक्ति स्वधर्म का रक्षण करे।

7. अपने इस राष्ट्र को परम वैभव की स्थिति में ले जाने में हम भरपूर समर्थ हों।

यही है संघ का एजेंडा। मतिमंद, कुचाली और देशद्रोही इस पर कीचड़ उछालते हैं। यह संघ का ही प्रताप है कि आज भारत के सारे विभाजक वर्ग गौण हो गए हैं, और आज देश में, मुख्य रूप से, केवल दो वर्ग ही हैंö1. देशप्रेमी 2. देशद्रोही। इन दोनों वर्गों में लगभग सभी मजहबों, वर्गों, जातियों, क्षेत्रों तथा विचारधाराओं के लोग मिलते हैं। वर्तमान सूचना क्रांति, अध्यात्म, रूहानियत, एवं ज्ञान-विज्ञान ने सत्यं-शिवम्-सुंदरम के असंख्य मार्ग प्रशस्त कर के संघ का काम सरल कर दिया है। उस मार्ग पर आचरण करना ही वास्तविक धर्म है।

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