बढ़ती जनसंख्या के लाभ
1979 में डेंग जाओपिंग के नेतृत्व में चीन ने एक संतान की नीति लागू की थी। एक से अधिक संतान उत्पन्न करने पर दम्पति को भारी फाइन अदा करना पड़ता था। फाइन न चुका पाने की स्थिति में जबरन गर्भपात करा दिया जाता था। इस क"ाsर पॉलिसी के कारण चीन की जनसंख्या वृद्धि नियंत्रण में आ गई। वर्तमान में चीन में दम्पतियों के औसत 1.8 संतान हो रही है। दो व्यक्तियों-मां एवं पिता द्वारा 2 से कम संतान उत्पन्न करने के कारण जनसंख्या का पुनर्नवीनीकरण नहीं हो रहा है और जनसंख्या कम हो रही है।
एक संतान पॉलिसी का चीन को लाभ मिला है। 1950 से 1980 के बीच चीन के लोगों ने अधिक संख्या में संतान उत्पन्न की थी। माओ जेडांग ने लोगों को अधिक संख्या में संतान पैदा करने को पेरित किया था। 1990 के लगभग ये संतान कार्य करने लायक हो गई। परन्तु ये लोग कम संख्या में संतान उत्पन्न कर रहे थे चूंकि एक संतान की पॉलिसी लागू कर दी गई थी। इनकी ऊर्जा संतानोत्पत्ति के स्थान पर धनोपार्जन करने में लग गई। इस कारण 1990 से 2010 के बीच चीन को आर्थिक विकास दर 10 फ्रतिशत की अफ्रत्याशित दर पर रही।
2010 के बाद परिस्तिथि ने पलटा खाया। 1950 से 1980 के बीच भारी संख्या में जो संतान उत्पन्न हुई थी वे अब वृद्धि होने लगीं। परन्तु 1980 के बाद संतान कम उत्पन्न होने के कारण 2010 के बाद कार्यक्षेत्र में प्रवेश करने वाले वयस्कों की संख्या घटने लगी। उत्पादन में पूर्व में हो रही वृद्धि में "हराव आ गया चूंकि उत्पादन करने वाले लोगों की संख्या घटने लगी। साथ-साथ वृद्धों की संभाल का बोझ बढ़ता गया जबकि उस बोझ को वहन करने वाले लोगों की संख्या घटने लगी। वर्तमान में चीन में वृद्धों की संख्या की तुलना में पांच गुणा कार्यरत वयस्क है। अनुमान है कि इस दशक के अंत तक कार्यरत वयस्कों की संख्या केवल दो गुणा रह जाएगी। कई ऐसे परिवार होंगे जिसमें एक कार्यरत व्यक्ति को दो पेरेंट्स और चार ग्रेंडपेरेंट्स की संभाल करनी होगी। देश के नागरिकों की ऊर्जा उत्पादन के स्थान पर वृद्धों की देखभाल में लगने लगी। कई विश्लेषकों का आकलन है कि 2010 के बाद चीन की विकास दर में आ रही गिरावट का कारण कार्यरत वयस्कों की यह घटती जनसंख्या है।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि जनसंख्या नियंत्रण का लाभ अल्पकालिक होता है। संतान कम उत्पन्न होने पर कुछ दशक तक संतानोत्पत्ति का बोझ घटता है और विकास दर बढ़ती है। परन्तु कुछ समय बाद कार्यरत श्रमिकों की संक्ष्या में गिरावट आती है और उत्पादन घटता है। साथ-साथ वृद्धों का बोझ बढ़ता है और आर्थिक विकास दर घटती है। बहरहाल स्पष्ट होता है कि आर्थिक विकास की कुंजी कार्यरत वयस्कों की संख्या है। इनकी संख्या अधिक होने से आर्थिक विकास में गति आती है।
ऐसा ही परिणाम दूसरे देशो के अनुभव से सत्यापित होता है। यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के फ्रोफेसर जुलियन साइमन बताते है कि हांगकांग, सिंगापुर, हॉलैंड एवं जापान जैसे जनसंख्या-सघन देशो की आर्थिक विकास दर अधिक है जबकि जनसंख्या न्यून अफ्रीका में विकास दर धीमी है। पापूलेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार 1900 एवं 2000 के बीच अमेरिका की जनसंख्या 7.6 करोड़ से बढ़कर 27 करोड़ हो गई है। इस अवधि में औसत आयु 47 वर्ष से बढ़कर 77 वर्ष हो गई है और शेयर बाजार का स्टैंडर्ड एंड पूर इंडेक्स 6.2 से बढ़कर 1430 हो गया है। सिंगापुर के फ्रधानमंत्री के अनुसार देश की जनता को अधिक संख्या में संतान उत्पन्न करने को फ्रेरित करना देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। इस आशय से उनकी सरकार ने फर्टिलिटी ट्रीटमेंट, हाउसिंग अलाउंस तथा पैटर्निटी लीव में सुविधाएं बढ़ाई है। दक्षिणी कोरिया ने दूसरे देशो से इमिग्रेशन को फ्रोत्साहन दिया है। इमिग्रेंट्स की संख्या वर्तमान में आबादी का 2.8 फ्रतिशत से बढ़कर 2030 तक 6 फ्रतिशत हो जाने का अनुमान है। इंग्लैंड के सांसद केविन रुड ने कहा है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यदि इमिग्रेशन को फ्रोत्साहन दिया होता तो इंग्लैंड की विकास दर न्यून रहती। स्पष्ट होता है कि जनसंख्या का आर्थिक विकास पर सकारात्मक फ्रभाव पड़ता है। बात सीधी सी है। उत्पादन मनुष्य द्वारा किया जाता है। जितने मनुष्य होंगे उतना उत्पादन हो सकेगा और आर्थिक विकास दर बढ़ेगी।
उपरोक्त तर्प के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र पापूलेशन फंड का कहना है कि जनसंख्या अधिक होने से बच्चों को शिक्षा उपलब्ध नहीं हो पाती है और उनकी उत्पादन करने की क्षमता का विकास नहीं होता है। मेरी समझ से यह तर्प सही नहीं है। शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए जनसंख्या घटाने के स्थान पर दूसरी अनावश्यक खपत पर नियंत्रण किया जा सकता है। जैसे राजा साहब के महल में स्कूल चलाया जा सकता है। यह भी याद रखना चाहिए कि अर्थव्यस्था में शिक्षित लोगों की संख्या की जरूरत तकनीकों द्वारा निर्धारित हो जाती है। टैक्टर चलाने के लिए पांच ड्राइवर नहीं चाहिए होते हैं। ड्राइवर का एमए होना जरूरी नहीं होता है। देश में शिक्षित बेरोजगारों की बढ़ती संख्या इस बात का फ्रमाण है कि शिक्षा मात्र से उत्पादन में वृद्धि नहीं होती है। संयुक्त राष्ट्र का दूसरा तर्प है कि बढ़ती जनसंख्या से जीवन स्तर गिरता है। मैं इससे सहमत नहीं हूं। बढ़ती जनसंख्या यदि उत्पादन में रत रहे तो जीवन स्तर में सुधार होता है। अतः समस्या लोगों को रोजगार दिलाने की है न कि जनसंख्या की अधिकता की।
जनसंख्या के आर्थिक विकास पर उपरोक्त सकारात्मक फ्रभाव को देखते हुए चीन की सरकार ने एक संतान पॉलिसी में परिवर्तन किया है। अब तक केवल वे दम्पति दूसरी संतान उत्पन्न कर सकते थे जिनमे पति और पत्नी दोनों ही अपने पेरेंट्स के अकेली संतान थे। अब इसमे छूट दी गई है। वे दम्पति भी दूसरी संतान पैदा कर सकेंगे जिनमे पति अथवा पत्नि में कोई एक अपने पेरेंट्स की अकेली संतान थी। यह सही दिशा में कदम है। लेकिन बहुत आगे जाने की जरूरत है। चीन समेत भारत को समझना चाहिए कि जनसंख्या सीमित करने से आर्थिक विकास मंद पड़ेगा। जरूरत ऐसी आर्थिक नीतियों को लागू करने की है जिससे लोगों को रोजगार मिले और वे उत्पादन कर सकें। पर्यावरण पर बढ़ते बोझ को सादा जीवन अपनाकर मैनेज करना चाहिए न कि जनसंख्या में कटौती करके।
डॉ. भरत झुनझुनवाला