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विधानसभा चुनाव भाजपा के आत्ममंथन का अवसर

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:13 Dec 2018 3:32 PM GMT
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राजनाथ सिंह `सूर्य'

सामाजिक समरसता और आर्थिक सुधार और गरीबोन्मुख नीतियों के अमल में अपने खांटी मतदाताओं को होने वाले तात्कालिक असुविधाओं की अनदेखी करना भारतीय जनता पार्टी के लिए उसी पकार भारी पड़ा है जैसा 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी वाली सरकार पर पड़ा था। आर्थिक सुधार के लिए नोटबंदी और सेवा व व्यापार कर लागू करने से छोटे और मध्यम उद्यमियों और किसानों की क"िनाई का संज्ञान लिए बिना किया गया अमल भारतीय जनता पार्टी के खांटी मतदाताओं में असंतोष का कारण बना। सबसे ज्यादा पभाव सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुसूचित जाति जनजाति उत्पीड़न कानून के पाविधान बिना जांच के गिरफ्तारी को नकारने वाले निर्णय पर उसे पुनः स्थापित करने के लिए किया गया संविधान संशोधन था। यद्यपि संसद में सर्वसम्मति से यह संशोधन पारित किया गया था किन्तु उसका नतीजा सत्ता में रहने के कारण उसी पकार भाजपा को भुगतना पड़ा जैसा 2003 में पोन्नति में आरक्षण को न्यायालय द्वारा अवैध करार देने के बाद उसे पुनः स्थापित करने के लिए सर्वसम्मति से संसद द्वारा किए गए संशोधन का पभाव पड़ा था। भाजपा इस कदम से न तो तब अनुसूचित जाति की अनुकूलता मिली थी और न इस चुनाव में मिली। दोनों ही चुनाव में मध्यम वर्गीय सरकारी कर्मचारी, व्यापारी व अन्य पेशेवर लोग व युवा वर्ग में इससे भाजपा के पति जो अनुकूलता थी उसका क्षरण हुआ।

सबसे ज्यादा पभाव सवर्ण और पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं पर अनुसूचित जाति उत्पीड़न कानून को गैर जमानती बना देने का पभाव पड़ा। भाजपा ने इस बात का भी संज्ञान नहीं लिया कि अनुसूचित जाति की सबसे पभावी नेता मायावती ने जब वह उत्तर पदेश की मुख्यमंत्री थी इसे संशोधित कर बिना जांच के गिरफ्तारी को खत्म कर दिया था। दोनों ही अवसरों पर चाहे 2003 हो या 2018 में जिस एक व्यक्ति के पभाव में आकर भाजपा ने अपने कैडर की मानसिकता का संज्ञान लिए बिना यह संशोधन किए उसका नाम है राम विलास पासवान जो 2004 के चुनाव के पहले वाजपेयी मंत्रिमंडल से अलग हो गया था और इस समय कब तक मोदी मंत्रिमंडल में रहेगा कहना क"िन है। मध्यपदेश में जीतते-जीतते रह जाने और कांग्रेस से अधिक मत पाप्त करने तथा राजस्थान में कांग्रेस के बराबर ही मत पाप्त कर पिछड़ जाने का कारण भाजपा के पति सवर्ण जातियों और पिछड़ों में इस कानून को लेकर जो विरोध था एक बड़ा कारण बना है।

पराजय के बाद खामियों की समीक्षा करने का भाजपा ने ऐलान किया है। परन्तु असली समीक्षा का जो अवसर गंवा दिया उसका संज्ञान लिए बिना अब की जाने वाली समीक्षा परिणामकारी साबित नहीं होगी। गुजरात विधानसभा के चुनाव में नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत गुजराती प्रतिष्ठा बनकर किसी पकार सफलता पाप्त करने का कारण बनी थी। उस समय इस बात का संज्ञान लिया जाना चाहिए था कि क्या उसी प्रतिष्ठा मध्यपदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पभावकारी साबित होगी। इसके बाद गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में जिसे परंपरागत गोरक्षपी" के अधीक्षक की सीट मानी जाती थी पर भारी अंतर से पराजय का संज्ञान लिया जाना चाहिए था। जहां बहुत से मतदान केंद्रों पर पार्टी के पतिनिधि तक उपस्थित नहीं थे। अपनी सरकारों के पति अनमनश्यकता का भाव कार्यकर्ताओं में क्यों पै" कर जाता है और संग"न नेतृत्व की लोकपियता तथा स्वच्छ पशासन के लिए लोक लुभावने कार्यक्रमों को पीछे छोड़कर कैडर की परवाह किए बिना नौकरशाही के तौर तरीके पर आचरण के पभाव नजरंदाज करना बार-बार भाजपा पर भारी पड़ रहा है। जैसा 2003 में पोन्नति में आरक्षण के संशोधन के विरुद्ध होते हुए भी अधिकांश भाजपा सांसद चुप रहे वैसे ही 2018 में बिना जांच के गिरफ्तारी का संशोधन करने के पति भावना थी लेकिन दोनों समयों में नेतृत्व के सामने अपनी मंशा पकट करने का साहस नहीं दिखाया। भाजपा सांसदों विधायकों और पमुख कार्यकर्ताओं ने किसी नीति पर होने वाली सार्वजनिक पतिक्रिया की स्थिति से अवगत कराने के साहस का अभाव और नेतृत्व का वाह-वाह करने वालों को ही जनमानस की पतिक्रिया मानकर चलना भी भाजपा पर भारी पड़ा है। लोकसभा चुनाव के बाद ही भाजपा समर्थक एक पमुख विचारक ने उसे कांग्रेसी संस्कृति से बचने की जो सलाह दी थी वह नेतृत्व पर पभाव डालने में सफल नहीं हो सकी। यह "ाrक है कि भाजपा के सत्ता में आने पर दलालों का पूर्णतया सफाया हुआ लेकिन चाटुकारों का बोलबाला कम नहीं हुआ है। इसीलिए नेतृत्व कैडर की भावनाओं का संज्ञान लेने में असफल रहा।

इसमें दो राय नहीं है कि नरेंद्र मोदी के रूप में भाजपा को एक ऐसा नेतृत्व पाप्त हुआ है जिसकी लोकपियता इन पराजयों के बाद क्षीण अवश्य हुई है लेकिन अभी भी किसी अन्य नेता के मुकाबले सर्वाधिक है। चुनाव पचार में पधानमंत्री को निचले स्तर तक ले जाने और उनकी अभिव्यक्तियों में पतिद्वंद्वी पक्ष के नितांत अपभावी नेतृत्व को चर्चा का केंद्रबिन्दु बनाने का जो दुष्परिणाम दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविन्द केजरीवाल को लाभ पहुंचाने का कारण बना था उसकी पुनरावृत्ति विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी को केंद्रित कर पचार का भी असर हुआ है। भाजपा के नेतृत्व द्वारा इन दोनों का ही जिस पकार व्यक्तिगत आचरण और अभिव्यक्ति का संज्ञान लिया गया उससे इनकी सार्वजनिक स्वीकृति ही बढ़ी।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि गरीबोद्धार को केंद्रबिन्दु बनाकर जितनी योजनों भाजपा ने क्रियान्वित किया है उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता। उज्ज्वला योजना के अंतर्गत पत्येक गांव में बिजली पहुंचाना, ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में सड़क, स्वच्छता के लिए शौचालय बनवाने का कार्यक्रम और सबसे अधिक पांच लाख रुपए तक गरीबों को इलाज के लिए अनुदान के साथ ही साथ भ्रष्टाचार रहित और भ्रष्टाचार को दंडित करने की कानूनी पक्रिया की जैसी व्यापकता भाजपा शासन में पकट हुई है वह अटल बनी है। फिर भी उसके पति जो अनुकूलता होनी चाहिए थी उस पर क्षेत्रीय वर्गीय और जातीय हितों के लिए किए गए आंदोलन इसलिए भारी पड़े कि उनके चरम बिन्दु तक पहुंच जाने तक समाधान का पयास नहीं किया गया। एक रैंक एक पेशन की योजना को क्रियान्वित तब किया गया जब पूर्व सैनिकों का आंदोलन अपने चरम पर था। किसानों के हित में जैसी योजना को अंजाम देने का संकल्प भाजपा ने किया है शायद ही कोई कर सके। लेकिन इस योजना को अपनाने की घोषणा पर इतना विलंब हुआ कि किसान आंदोलन संसद पर दस्तक देने लगा है। जीएसटी से छोटे व्यापारियों को होने वाली दिक्कतों का पूरा संज्ञान अभी तक नहीं लिया गया है। इन तथ्यों के अलावा एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि भाजपा ने राष्ट्रीय मसलों पर विपक्ष का संज्ञान उस पकार नहीं लिया जैसा अटल बिहारी वाजपेयी लिया करते थे। भाजपा ने संग"न के नेतृत्व और शासन चलाने वाले मुख्यमंत्रियों में पै" गई नौकरशाही की भावना से अपने को दूर नहीं किया तो भारी सफलता के बाद गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव जैसे परिणाम होते रहेंगे।

यह "ाrक है कि भाजपा विरोधी दलों की एकजुटता अभी तक परवान नहीं चढ़ पाई है और न 2019 के लोकसभा चुनाव तक परवान चढ़ने की संभावना है। लेकिन जो माहौल बन रहा है उससे ऐसा लगता है कि जो दल जहां पभावी है वह वहां भाजपा के लिए गंभीर चुनौती बनेगा। इससे यह संभावना तो है कि भाजपा लोकसभा में सबसे बड़ा दल रहे लेकिन विपक्षी दल मिलकर देवगौड़ा या इंद्र कुमार गुजराल जैसी अल्पजीवी सरकार बना दें और देश जिस स्थायित्व की ओर बढ़ रहा है, दुनिया के प्रतिष्ठित देशों में उसकी साख कायम हुई है तथा भ्रष्टाचार मुक्त पशासन की जो दिशा पशस्त हुई है उस पर विराम लग जाए और फिर जो चुनाव हो उसमें भाजपा पहले से अधिक बहुमत के साथ सत्ता में लौट सके। विधानसभा चुनाव के परिणाम 2019 के चुनाव परिणामों का जो संकेत दे रहे हैं वह अस्थिरता लौटाने का काम करेगी। भारतीय जनता पार्टी कार्यकर्ताओं और उसके समर्थकों के सामने 2019 के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह भारतोत्थान की जिस आकांक्षा से अभिभूत है उसको सफल बनाने के लिए दांत निकलने जैसे दर्द को बर्दाश्त करने की क्षमता दिखाएं और नेतृत्व आम कैडर से जनमानस की पतिक्रिया से अवगत होने की नीति अपनाए। भाजपा में नेतृत्व और कैडर के बीच कभी दूरी नहीं रही है। लेकिन आज यह दूरी होने से इंकार नहीं किया जा सकता। लोकसभा चुनाव के लिए पांच महीने शेष हैं। इन पांच महीनों में संभलने का अवसर कम नहीं है।

(लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं।)

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