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पुलिस आयुक्त व्यवस्था सार्थक या निरर्थक

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:3 Jan 2019 3:18 PM GMT
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राजनाथ सिंह `सूर्य'

उत्तर पदेश के राज्यपाल राम नाईक ने शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस के और पभावशाली योगदान हेतु उत्तर पदेश में पुलिस कमिश्नर व्यवस्था लागू करने का सुझाव दिया है। अड़तीस साल पहले राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ पताप सिंह ने इस व्यवस्था को लागू करने के लिए कानपुर नगर का चयन किया था और डीआईजी स्तर के एक अधिकारी की नियुक्ति भी कर दी थी लेकिन वह अधिकारी लखनऊ छोड़कर कानपुर जाए इसके पहले ही उस योजना को रद्द कर दिया। 1980 के बाद 2018 के अंतिम सप्ताह में राम नाईक ने जो पस्ताव किया है वह आगे बढ़ सकेगा या नहीं यह कहना क"िन है लेकिन जिस आईएएस लाबी ने विश्वनाथ पताप सिंह के द्वारा लिए गए निर्णय को वापस कराने में सफलता पाप्त की थी वह एक बार फिर सक्रिय हो गई है और पुलिस आयुक्त व्यवस्था की भ्रूण हत्या की दिशा में कदम उ"ा चुका है। आईएएस अपने पभुत्व में पुलिस आयुक्त व्यवस्था को बड़े कांटे के रूप में देखते हैं। किन्तु देश के जो पमुख और पगतिशील राज्य हैं यथा गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र, तमिलनाडु, तेलंगाना और केरल में पुलिस आयुक्त की व्यवस्था एक अरसे से कामयाबी के साथ काम कर रही है।

इन राज्यों में आईएएस व आईपीएस के बीच कोई टकराव नहीं है। जिन बड़े राज्यों में यह व्यवस्था लागू नहीं है उनमें उत्तर पदेश बिहार, बंगाल और उड़ीसा शामिल है। पगति और शांति व्यवस्था तथा अधिकार क्षेत्र के टकराव की पशासनिक स्थिति की जिन राज्यों में पुलिस आयुक्त व्यवस्था लागू है अधिक सामंजस्य दिखाई पड़ता है।

देश में इस समय जो माहौल है वह विभिन्न पकार के टकराव को बढ़ावा दे रहा है। जातीय, वर्गीय क्षेत्रीय और सांप्रदायिक टकराव के साथ-साथ राजनीतिक क्षेत्र में कार्यशील लोगों के बीच अनास्था पैदा करने की होड़ में अपनी सफलता का आकलन इस माहौल को और बिगाड़ रहा है। यह माहौल समझदार लोगों को भी भ्रमित कर रहा है लेकिन चुनावी सफलता के लिए बांटो और राज्य करो अब एक राजनीतिक हथियार बन चुका है। ऐसे में पशासन तंत्र की स्थाई व्यवस्था में लगे संवर्गों के बीच क्षेत्राधिकार या अन्य पकार के टकराव जो सीबीआई के डायरेक्टर और स्पेशल डायरेक्टर के बीच टकराव के रूप में उभरकर सामने आई है इस बात का संकेत देती है कि यदि सावधानी नहीं बरती गई तो विभिन्न संवर्गों के बीच अपनी स्थिति को लेकर जो मतभेद कभी-कभी पकट हो जाता है वह भयावह स्थिति तक पहुंच सकता है।

पशासनिक सेवा में आईएएस का वर्चस्व ब्रिटिश काल से पभावशाली है। अनेक पशासनिक सुधार आयोगों और विचारवान लोगों ने इस एकाधिकार को तोड़ने की समय-समय पर संस्तुति की है। कुछ सरकारों ने इस दिशा में एकाध कदम उ"ाने का पयास किया है। वर्तमान केंद्र सरकार ने गैर आईएएस विशेषज्ञों की सेवों पाप्त करने का जो कदम उ"ाया है उसका भी व्यापक विरोध चल रहा है। ऐसे में उत्तर पदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जो कि राज्यपाल के सुझाव के पति अनुकूल बताए जाते हैं पुलिस आयुक्त व्यवस्था लागू करने के बारे में किसी निर्णय पर पहुंच पाएंगे यह कहना क"िन है।

आईएएस और अन्य पशासनिक सेवा वर्ग में मतभिन्नता और अधिकार क्षेत्र के दावेदारी का विवाद समय-समय पर उभरता रहा है और विभिन्न संवर्गों के लोग आंदोलित होते रहे हैं। अन्य वर्गों को सुविधा पदान करने के मामले में आईएएस वर्ग का एक ही फार्मूला काम करता दिखाई पड़ रहा है जिसे समय-समय पर अमल में लाने का पशिक्षण के दौरान उन्हें संज्ञान कराया जाता है। `हाव नाट टू डू ये वर्प' इस फार्मूले का उपयोग कर वे राजनीतिक नेतृत्व के अमर्यादित आदेशों को पतिबंधित करते रहे हैं अब उसका विस्तार अन्य संवर्गों के औचित्यपूर्ण मांगों को पूरा करने में अड़ंगा लगाने के रूप में पकट हो रहा है। आईएएस सेवा के अन्य संवर्गों के लिए निर्धारित पदों को हड़पने में कोई संकोच नहीं करता लेकिन अपने संवर्ग में प्रवेश करने के लिए निर्धारित अर्हता पाप्त लोगों को उसका हक पाने में पत्रावली को चलाकर अड़ंगा अवश्य लगाता है। एक उदाहरण उत्तर पदेश का ही दिया जा सकता है। वीर बहादुर सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में जिलों में मुख्य विकास अधिकारी का पद सृजित किया गया जिस पर वरिष्ठ पादेशिक सेवा के अधिकारियों की नियुक्ति होनी थी पारंभ में ऐसा ही हुआ लेकिन धीरे-धीरे इस पद पर आईएएस अधिकारी काबिज होते गए। क्योंकि विकास योजनाओं के लिए जनपदों को आवंटित धन के नियंत्रण का अधिकार विकास अधिकारी के पास रहता है।

अधिकार क्षेत्र के मामले में पिछले दिनों गौतमबुद्ध नगर के जिला अधिकारी और पुलिस अधीक्षक के बीच अधीनस्थ अधिकारियों के स्थानांतरण को लेकर जो विवाद सामने आया है वह तो और विचित्र है। जिलाधिकारी ने पुलिस अधीक्षक को नोटिस देकर पूछा कि उसने बिना उनकी अनुमति के थाना पभारियों और अधीनस्थ कर्मियों का स्थानांतरण कैसे कर दिया उसे रद्द करो। उप पुलिस अधीक्षक से लेकर वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति और स्थानांतरण का अधिकार आईएएस के पास पहले से ही है।

राज्यों में जो गृहमंत्री होते हैं उनको भी इसमें दखलंदाजी देने का अधिकार नहीं है क्योंकि इन संवर्गों के अधिकारी पशासन विभाग के अंतर्गत माने जाते हैं पुलिस का महानिदेशक अपने अधीनस्थ इंस्पेक्टर और उसके नीचे के अधिकारियों के बारे में ही निर्णय ले सकता है। यह स्थिति केवल पुलिस विभाग की ही नहीं है बल्कि जितने अन्य सेवा के संवर्ग हैं उनमें अधिकारियों के स्थानांतरण और नियुक्ति का दायित्व विभागाध्यक्ष के पास नहीं है। इस स्थिति के कारण विभागाध्यक्ष का अपने सचिव के साथ असहमति बनी रहती है जो अब नीचे तक पहुंचते जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक के बीच उभरने लगी है।

इस पकार आईएएस संवर्ग की नियुक्ति और स्थानांतरण के संदर्भ में एक अखिल भारतीय व्यवस्था है वैसा ही आईपीएस और अन्य संवर्गों के बारे में क्यों नहीं होनी चाहिए। पुलिस कमिश्नर व्यवस्था यदि गुजरात महाराष्ट्र राज्यों में सफलतापूर्वक चल रही है तो जिन राज्यों में यह व्यवस्था नहीं है वहां क्यों नहीं लागू होनी चाहिए। शांति व्यवस्था की जिम्मेदारी पुलिस पर ही होती है और अशांति होने पर उन्हें ही दंडित किया जाता है शायद ही इस मामले में कोई आईएएस अधिकारी लपेटे में आया हो लेकिन नियंत्रण उसी का रहता है। राज्यपाल राम नाईक ने जो सुझाव दिया है वह इसलिए समीचीन मालूम पड़ता है क्योंकि जिस पकार की विघटन और विखंडन का पभाव बढ़ता जा रहा है उसमें शांति व्यवस्था और सुरक्षा में लगे कर्मियों को अधिक संरक्षण से आत्म विश्वासयुक्त बनाने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में राज्यपाल राम नाईक के सुझाव पर राजनीतिक नेतृत्व को गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए और 38 वर्ष पूर्व आईएएस लाबी के सामने जिस पकार विश्वनाथ पताप सिंह ने घुटने टेके थे उसकी पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए।

(लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं।)

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