Home » द्रष्टीकोण » पुनर्मूषिको भव

पुनर्मूषिको भव

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:12 Jan 2019 5:17 PM GMT
Share Post

इन्दर सिंह नामधारी

भारत की अग्रणी जांच एजेंसी सीबीआई के डायरेक्टर श्री आलोक वर्मा को दिनांक 10 जनवरी 2019 को पधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी नीत चयन समिति ने दो-एक के बहुमत से निदेशक पद से मुक्त करके उन्हें दिल्ली के अग्नि शामक विभाग का पभारी बना दिया था। पधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की कृपा से ही श्री आलोक वर्मा दो वर्ष पूर्व सीबीआई के निदेशक बने थे। यह ज्ञातव्य है कि सीबीआई के निदेशक की नियुक्ति के लिए पधानमंत्री नीत एक तीन सदस्यीय समिति निर्णय करती है जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं लोकसभा में विपक्ष के नेता सदस्य होते हैं।

श्री वर्मा की नियुक्ति के समय लोकसभा में विपक्ष के नेता श्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने गुजरात कैडर का पदाधिकारी होने के कारण श्री वर्मा की नियुक्ति का विरोध किया था लेकिन पधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के वरदहस्त के चलते ही श्री वर्मा सीबीआई के निदेशक बन गए थे। दो वर्षों के अंतराल में राजनीतिक परिस्थितियां कुछ इस कदर बदल गई हैं कि नियुक्ति के समय आलोक वर्मा का विरोध करने वाले श्री मल्लिकार्जुन खड़गे दिनांक 10 जनवरी 2019 को उनके पबल समर्थक बन गए जबकि समिति के अध्यक्ष सह पधानमंत्री श्री मोदी की कृपा से निदेशक बनने वाले श्री वर्मा उन्हीं की कलम से ही निदेशक पद से बर्खास्त कर दिए गए। इस घटना के दो दिन पूर्व ही सर्वोच्च न्यायालय से क्लीन चिट पाकर श्री वर्मा ने सीबीआई का पदभार ग्रहण किया था लेकिन मात्र 36 घंटों के अंदर ही उन्हें सीबीआई से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इस तरह का अभूतपूर्व घटनाक्रम स्वतंत्रता के सात दशकों के दौरान कभी देखने को नहीं मिला था। सीबीआई देश की पमुख जांच एजेंसी है लेकिन आज के दिन देश में जो सबसे बड़ा पशासनिक तकरार चल रहा है उसको सीबीआई बनाम सीबीआई की संज्ञा दी जा रही है। इस अद्भुत घटनाक्रम को देखकर मुझे बचपन के दिनों में पढ़ी गई शिक्षापद कहानियों में से एक कहानी की याद हो आई है जिसका शीर्षक था `पुनर्मूषिको भवः'।

उपरोक्त शिक्षापद कहानी में यही लिखा था कि किसी ऋषि के आश्रम में एक चूहा रहा करता था जो बिल्ली के डर से भयभीत रहता था। ऋषि ने भयभीत चूहे की दयनीय दशा देखकर उसे बिल्ली बन जाने का वरदान दे दिया। बिल्ली बन जाने के बाद भी जब वह कुत्ते से डरने लगा तो ऋषि ने उसे कुत्ता बनने का वरदान दे दिया।

कुत्ता बनकर भी जब वह वन में शेर से भयभीत रहने लगा तो ऋषि ने उसे वरदान देकर शेर बना दिया। इस तरह वह ऋषि के आर्शीवाद से चूहे से शेर बन गया। वन का राजा शेर बन कर वह जंगल का सर्वेसर्वा हो गया लेकिन एक बात को लेकर वह दुखित रहने लगा क्योंकि जंगल के अन्य जीव उसको अकसर कटाक्ष कर दिया करते थे कि यह शेर तो चूहे से शेर बना है। जंगल के जानवरों का यह कटाक्ष शेर को नागवार गुजरता था जिसके चलते उसने एक दिन ऋषि पर ही धावा बोल दिया ताकि न बांस रहे न बांसुरी। ऋषि ने चूहे से बने शेर को `पुनर्मूषिको भवः' का शाप देकर उसे पुनः चूहा बना दिया।

इस शिक्षापद कहानी में निहित संदेश यही है कि जब किसी बड़े आदमी को संदेह हो जाता है कि उसकी कृपा से आगे बढ़ा कोई व्यक्ति उसी को आधात पहुंचाने वाला है तो बड़ा आदमी उसको उसी मुकाम पर पहुंचा देता है जहां से उसकी शुरुआत हुई। मोदी जी की कृपा से ही श्री आलोक वर्मा पोन्नति की उत्तरोत्तर सीढ़ियां चढ़ते हुए सीबीआई के निदेशक के पद तक जा पहुंचे थे। सीबीआई के निदेशक के पद का कार्यकाल दो वर्षों का होता है पता नहीं इस दौरान कौन-सी घटना घटी कि दो वर्षों के पूरा होने के तीन महीना पहले ही पधानमंत्री जी को उन्हें वर्ष 2018 के अक्तूबर माह की आधी रात को ही हटाने का फरमान जारी करना पड़ा? इस संभावना में अब आसार भी दिखने लगे हैं। लोग भूले नहीं होंगे कि पधानमंत्री जी की कृपा से ही गुजरात कैडर के आईपीएस श्री राकेश अस्थाना को सीबीआई का विशेष निदेशक बना दिया गया था। दो समकक्ष पदाधिकारी क्रमशः श्री आलोक वर्मा एवं श्री राकेश अस्थाना आपस में इस तरह भिड़े कि दोनों ने एक दूसरे का पर्दाफाश करना शुरू कर दिया जिसके चलते केंद्र सरकार को बाध्य होकर दोनों को ही आधी रात को जबरन छुट्टी पर भेजना पड़ा और गुजरात कैडर के एक अन्य आईपीएस पदाधिकारी श्री नागेश्वर राव को सीबीआई के अंतरिम निदेशक के पद पर बै"ा दिया गया यद्यपि उन्हें कोई नीतिगत फैसला लेने का अधिकार नहीं दिया गया है। इन दोनों पदाधिकारियों के झगड़े का मामला भारत के सर्वोच्च न्यायालय तक जा पहुंचा जहां दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद लगभग 87 दिनों के उपरांत सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय देते हुए श्री आलोक वर्मा को पुनः निदेशक के पद पर बै"ा दिया जहां उन्हें मात्र डेढ़ दिन के अंदर ही पुनः निदेशक के पद को छोड़ना पड़ा है।

इसी बीच पर्यवेक्षक बनाए गए सुपीम कोर्ट के एक अवकाश पाप्त जज श्री पटनायक ने बयान देकर देश की राजनीति में हलचल मचा दी है कि आलोक वर्मा पर कोई भी भ्रष्टाचार का मामला सिद्ध ही नहीं होता। इस ऊहापोह में आज देश का पूरा पशासनिक ढांचा सकते में है। इस पतिक्रिया में आलोक वर्मा ने अपनी नौकरी से ही त्याग-पत्र दे दिया है।

उपरोक्त शिक्षापद कहानी `पुनर्मूषिको भवः' में ऋषि ने शेर को पुनः चूहा बनने का जो शाप दिया था उसका महज एक ही कारण था कि शेर ऋषि को ही खाने पर अमादा हो गया था। इस पृष्ठभूमि में यक्ष प्रश्न यह उ"ता है कि क्या श्री आलोक वर्मा ने उनको निदेशक बनाने वाले श्री नरेंद्र मोदी पर ही तो हमला करने की तैयारी नहीं कर ली थी? वर्तमान परिस्थिति में अब इस संभावना के लक्षण भी दिखने लगे हैं। लोग भूले नहीं होंगे कि पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री यशवंत सिन्हा, श्री अरुण शौरी एवं श्री पशांत भूषण ने तत्कालीन सीबीआई निदेशक श्री आलोक वर्मा से मिलकर उन्हें फ्रांस से खरीदे जा रहे राफेल लड़ाकू विमानों में पधानमंत्री जी की भूमिका को लेकर जांच करने का एक आवेदन दिया था।

10 जनवरी 2019 को जब आलोक वर्मा को सीबीआई के निदेशक के पद से हटाया गया तो श्री पशांत भूषण ने टीवी पर साक्षात्कार देते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा है कि उन्हें शक है कि पधानमंत्री ने आलोक वर्मा को इसलिए हटाया क्योंकि वह राफेल लड़ाकू विमानों की खरीदगी में हुई गड़बड़ी की जांच करने वाले थे। श्री पशांत भूषण ने टीवी में एक साक्षात्कार देते हुए बड़ी बेबाकी से कहा है कि अक्तूबर 2018 की आधी रात को भी इसी शंका के आधार पर ही श्री आलोक वर्मा को जबरन छुट्टी पर भेजने का निर्णय लिया गया था। श्री आलोक वर्मा को निदेशक पद से हटाने के मामले में अपनी पतिक्रिया देते हुए कांग्रेस के अध्यक्ष श्री राहुल गांधी ने भी यही आरोप मढ़ दिए हैं। हकीकत जो भी हो देश की महत्वपूर्ण जांच एजेंसी सीबीआई में घट रही घटनाओं से देश के संवेदनशील लोग काफी चिन्तित हैं। इस उत्तेजनापूर्ण वातावरण में अब श्री आलोक वर्मा ही बता सकते हैं कि राफेल लड़ाकू विमानों की खरीदगी पर सीबीआई द्वारा जांच कराने को शुरू करने का मामला सही है या गलत?

(लेखक लोकसभा के पूर्व सांसद हैं।)

Share it
Top