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न्याय प्रक्रिया के लिए उदाहरण प्रस्तुत करती सेना की न्याय प्रक्रिया

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:13 Jan 2019 3:18 PM GMT
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कर्नल (से.नि.) शिवदान सिंह

देश के प्रमुख समाचार पत्र टाइम्स ऑफ इंडिया के मुखपृष्ठ पर देश की निचली अदालतों में लंबित मुकदमों की रिपोर्ट यह दर्शाने के लिए पर्याप्त है कि पूरे देश में न्याय व्यवस्था की स्थिति कैसी है। रिपोर्ट के अनुसार इस समय पूरे देश की निचली अदालतों में 2 करोड़ 90 लाख मुकदमे लंबित है। इनमें से 160 मुकदमें 7 सालों तथा 66000 मुकदमें पिछले 30 सालों से लंबित हैं। देश में हर महीने 220000 केस दर्ज हो रहे हैं और यदि इसी गति से यह केस निपटाए गए तो अनुमानित इन को निपटाने में 324 साल लग सकते हैं। इन लंबित मुकदमों में 71 प्रतिशत अपराधिक हैं जिनमें आरोपी लंबे समय तक न्याय की आस में जेल में बंद रहते हैं। न्याय व्यवस्था की स्थिति में देश की जनता में न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास कम होता जा रहा है और इसी का परिणाम है कि अकसर लोग कानून को अपने हाथों में लेकर जघन अपराध कर बैठते हैं। उधर हमारे ही देश की सेना में गंभीर से गंभीर अपराध के केस मैं फैसला केवल 6 से 8 महीने में आ जाता है। इस कारण सेना में लंबित मुकदमे में ऐसा बिल्कुल नहीं है। और इसी का परिणाम है कि भारतीय सेना ने बाहरी दुश्मनों आंतरिक आतंकवाद तथा प्राकृतिक आपदाओं के समय पूरी श्रद्धा तथा समर्पण से उत्तरदायित्व का निर्वहन करते हुए देश की अखंडता की रक्षा की है और करती रहेगी। इस उच्च कोटि की कर्तव्यनिष्ठा के पीछे सेना का मनोबल राष्ट्रीयता तथा देश भक्ति की भावना प्रमुख है। सेना में इस प्रकार के विचारों एवं वातावरण के पीछे सेना का स्वच्छ तथा पारदर्शी प्रशासन समता की भावना एवं कानून एवं न्याय की दृष्टि में सबका समान होना है। सेना में कानून अपराधी का रैंक देखकर अपना काम नहीं करता बल्कि वह समान रूप से सब पर लागू होता है। इसका उदाहरण अभी कुछ दिन पहले पूरे देश ने देखा जब एक मेजर जनरल रैंक के अधिकारी को उसके अपराधों के लिए 4 वर्ष की सश्रम सिविल कारावास कोर्ट मार्शल द्वारा केवल 6 महीने की अवधि में सुना दी गई थी। इस अधिकारी पर आरोप था कि इसने अपने अधीनस्थ एक महिला अधिकारी से छेड़छाड़ की कोशिश की थी। इसी प्रकार आगरा में तैनात रहे एक भर्ती अधिकारी ब्रिगेडियर उसकी पत्नी एवं बेटी को सेना में भर्तियों में हुई गड़बड़ी के लिए लंबी अवधि की कारावास की सजा सुनाई गई। इसी प्रकार पूर्व में सेना के बड़े अधिकारियों को भी उनके अपराधों के लिए लंबी अवधि की सजाएं दी गई थी। इससे पूरी सेना में समानता तथा कानून सबके लिए बराबर है इसका साफ संदेश जाता है और इसी कारण सेना का मनोबल उच्च श्रेणी का रहता है।

उधर दिल्ली में 1984 सिख दंगों के केस का फैसला सुनाते हुए दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश मुरलीधरन सिविल न्याय व्यवस्था की बेबसी एवं लाचारी जिसके कारण अपराधी को सजा मिलने में 34 साल लग गए पर इतने दुखी एवं भावुक हुए कि उनका गला भर आया एवं वह रोने लगे। उन्होंने विस्तार से बताया कि किस प्रकार कानूनी प्रक्रिया को संभालने वाली पुलिस तथा सरकार ने इस केस में न्याय मिलने में अवरोध पैदा किए। यही स्थिति मेरठ के हाशिमपुरा नरसंहार के केस में देखने में आई जिसमें 41 बेगुनाहों की हत्याओं के अपराधियों को 31 साल बाद सजा मिल पाई। भूतपूर्व रेलमंत्री ललित नारायण मिश्रा हत्याकांड के अपराधियों को 28 साल बाद सजा मिल सकी। अभी कुछ दिन पहले बिहार के विधायक को एक नाबालिक लड़की के बलात्कार के लिए 20 वर्ष बाद सजा मिल सकी। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में बड़े पैमाने पर भर्ती घोटालों की खबरें मीडिया में आई और इन में पाया गया कि बड़े पैमाने पर धांधली के द्वारा काबिल नौजवानों के स्थान पर दूसरे आयोगों को डिप्टी कलेक्टर जैसे पदों पर नियुक्त किया गया इसी प्रकार मध्यप्रदेश के स्वयं घोटाले में हुआ। परंतु क्या अभी तक इन घोटालों में किसी को दोषी ठहरा कर सजा दी गई है। जांच चल रही है चलती रहेगी और यदि दोबारा वही राजनीतिक दल सत्ता में आ गए तो हो सकता है यह सब घोटाले दबा दिए जाएं। उधर 2012 में निर्भया कांड के बाद पूरे देश में आक्रोश फैला तथा जगह-जगह धरना प्रदर्शन इस वीभत्स महिला अपराध के विरुद्ध हुए। इस प्रकार के महिला अपराधों को रोकने के लिए देश की लोकसभा ने पूरे महिला अपराध कानून को और कारगर बनाने के लिए इन कानूनों में भारी फेरबदल किया। इससे आशा की गई थी कि देश में महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों में भारी कमी आएगी। परंतु इतने कड़े कानूनों के बावजूद बिहार के समस्तीपुर महिला आश्रय गृह में 34 बालिकाओं के साथ बलात्कार होता रहा तथा उन्हें उनको वेश्यावृत्ति में धकेला गया। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के देवरिया में उसी प्रकार का कृत्य वहां के महिला आश्रय गृह में देखने में आया। 2013 में तरुण तेजपाल तथा 2015 में ट्राई प्रमुख आरके पचौरी ने अपने अधीनस्थों के साथ छेड़छाड़ तथा बलात्कार के प्रयास किए और इतने समय के बावजूद भी इनके विरुद्ध चलने वाले मुकदमे अभी तक प्रारंभिक स्टेजों में ही है। क्योंकि सिविल में कानून अपराधी का रुतबा देखकर कार्य करता है। नए कानून के अनुसार काम करने का उदाहरण देशवासियों ने उन्नाव रेप कांड में भी देखा जिसमें पीड़िता के पिता को पुलिस ने झूठे आरोप में जेल भेज दिया जहां अपमानित तथा बेचारगी में उसकी मौत हो गई। क्या इस प्रकार के वातावरण में देशवासियों का मनोबल एवं राष्ट्रीयता की भावना स्थिर रह पाएगी। इन भर्ती घोटालों तथा महिला अपराधों से प्रभावित नौजवानों एवं महिलाओं को तो मानसिक तथा शारीरिक आघात पहुंचा ही है इसके साथ साथ देशवासी को भी कानून की व्यवस्था एवं स्थिति से निराश। एवं हतोत्साहित महसूस कराया इसीलिए जगह-जगह नौजवान कानून को अपने हाथ में लेकर अपनी निराशा एवं आक्रोश प्रदर्शित करते हैं। परंतु इसी प्रकार के अपराधों में सेना की न्याय व्यवस्था ने तुरंत न्याय किया है।

राजनीति एवं समाज शास्त्र के प्रकांड पंडित चाणक्य ने न्याय को धर्म के साथ जोड़कर न्याय करने वाले शासक को ईश्वर का रूप माना है। क्योंकि अनैतिक तथा गैरकानूनी कृत धर्म विरुद्ध होते हैं जो ईश्वरीय विधान के भी विरुद्ध माने जाते हैं। परंतु भौतिकवाद तथा भ्रष्टाचार के चलते आज के युग में चाणक्य के इस कथन को कोई महत्व नहीं मिल रहा है। इस कारण समय-समय पर उचित न्याय न मिलने के कारण समाज में असंतोष देखा जा सकता है। पूरी न्याय प्रक्रिया को तीन भागों में बांटा जा सकता है पहला समाज में अनैतिक कृत्यों को रोकना जिनसे अपराध पैदा होता है दूसरा अपराध होने के बाद उसका संज्ञान लेकर उसकी जांच करके संबंधित अदालत में अपराधी एवं साक्ष्य प्रस्तुत करना कथा तीसरा अदालतों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर न्याय करना। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार न्याय के इन तीनों स्टेज पर भारी कमियां देखी जाती हैं। देश में जगह-जगह सत्तापक्ष के बाहुबलियों द्वारा गैर कानूनी तथा अनैतिक कार्य किए जाते हैं जैसे लंबे समय से समस्तीपुर देवरिया तथा सच्चा सौदा के आश्रम में बालिकाओं के साथ बलात्कार तथा वेश्यावृत्ति में धकेला जाना, परंतु उसको रोकने वाली सरकारी एजेंसियां इसे चुपचाप देखती रही। इसी प्रकार और तरह-तरह के अनैतिक कृत्य होते रहते हैं और जब मीडिया की सक्रियता से यह से यह सामने आते हैं तब सरकारी मशीनरी हरकतें में आती है। ऐसे अपराधों की जांच एवं अदालत तक अपराधी एवं साक्ष्यों को पेश करने की पूरी जिम्मेवारी राज्य पुलिस की होती है। परंतु देश की पुलिस प्रणाली में सुधार न होने से पूरी न्याय प्रक्रिया इस कड़ी के कारण फेल होती नजर आ रही है। जैसा की चर्चित मुकदमों में देखा गया है। सिख दंगों के केस में न्यायधीश महोदय ने स्वयं कहा कि 92 में पुलिस ने इस इस मामले को बंद ही कर दिया था। अकसर सत्तापक्ष या पुलिस के स्वयं के विरुद्ध यदि प्रकरण है तो पुलिस अपनी जिम्मेदारी को या तो निभाती नहीं है और यदि दबाव पड़ने पर निभाती है तो तो उसमें भारी कमियां छोड़ते हुए जिससे अपराधी साफ बच निकलते हैं। इसके बाद न्यायालय द्वारा न्याय कानून की किताब जैसे भारतीय दंड संहिता आईपीसी एवं दंड प्रक्रिया संहिता सीआरपीसी के द्वारा अदालतों में करवाई होती है। भारतीय दंड संहिता के द्वारा अपराध सिद्ध होने पर दंड दिया जाता है। परंतु समय अनुसार दंड प्रक्रिया संहिता में बदलाव न होने से अकसर बचाव पक्ष अदालती कानू कार्यवाही को लंबा खींच देता है तथा लंबे समय के कारण साक्ष्यों को मिटाने की कोशिश करता है। इस कारण अदालतें उचित दंड नहीं दे पाती है। न्याय प्रणाली को विफल बनाने में देश की बढ़ती जनसंख्या तथा अपराधों में बढ़ोतरी को भी माना जाता है। यहां पर यह विचारणीय है की उसी अनुपात अदालतें नहीं बढ़ रही है। इस कारण अदालतों में विचाराधीन मुकदमों का अंबार लगा हुआ है। इसलिए अदालत में अकसर लंबी-लंबी तारीख दी जाती हैं और इसी प्रकार न्याय में देरी होती रहती है।

उपरोक्त वर्णन से देश में न्याय प्रक्रिया की दयनीय स्थिति की झलक मिलती है। सेना में भारतीय दंड प्रक्रिया के स्थान पर सेना के कानून का प्रयोग एवं भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के साथ होने से अपराधों की जांच एवं प्रस्तुति निश्चित समय में की जाती है इस कारण सेना में न्याय शीघ्र होता है। इसके अलावा सेना में सिविल पुलिस की तरह सत्ता तथा बाहुबली का दवाब नहीं होता। बार-बार ज्यादातर राजनीतिक दल देश के आधारभूत ढांचे को सुधारने की बातें करते हैं। उन्हें देश के नागरिकों को उचित तथा शीघ्र न्याय प्रक्रिया को भी आधारभूत ढांचे सामान मानकर इसमें उन सब प्रक्रिया में सुधार करना चाहिए जिससे देशवासियों को शीघ्र तथा उचित न्याय मिल सके। क्योंकि न्याय में देरी न्याय न मिलने के समान है। इसके लिए सेना की न्याय प्रणाली का अध्ययन करके उसी हिसाब से दंड तथा अपराध प्रक्रिया में उचित सुधार किए जाने चाहिए। सेना के कानूनों की तरह ही अमेरिका तथा पश्चिमी देशों में न्याय प्रक्रिया कार्य करती है तथा वहां पर देशवासियों को उचित न्याय समय से मिल मिल पाता है। यदि देशवासी तथा सरकारें देश में अमेरिका तथा पश्चिमी देशों जैसी राष्ट्रीयता की भावना बनाना चाहते हैं तो मनुष्य की सबसे महत्वपूर्ण जरूरत उचित तथा शीघ्र न्याय को सुरक्षित करना होगा क्योंकि मनुष्य एक विचारशील प्राणी है तथा जब तक उसके विचारों को शांति नहीं प्राप्त होगी तब तक वह संतुष्ट नहीं रह सकता।

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