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राजनीतिक महत्वाकांक्षा का नतीजा तो नहीं कश्मीरी आईएएस टॉपर का इस्तीफा

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:13 Jan 2019 3:19 PM GMT

राजनीतिक महत्वाकांक्षा का नतीजा तो नहीं कश्मीरी आईएएस टॉपर का इस्तीफा

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आदित्य नरेन्द्र

वर्ष 2010 में आतंकवाद से ग्रस्त कश्मीर के शाह फैसल ने आईएएस एग्जाम में टॉप पोजीशन हासिल करके पूरे देश को चौंका दिया था। आज एक बार फिर उन्होंने अपना इस्तीफा देकर पूरे देश को चौंका दिया है लेकिन अपना इस्तीफा देने का उन्होंने जो कारण बताया है उसे सुनकर हैरानी होती है। अपनी फेसबुक पोस्ट में उन्होंने भारतीय मुसलमानों को हाशिये पर धकेलने का आरोप लगाते हुए कहा है कि कश्मीर में लगातार हत्याओं के मामलों और केंद्र सरकार की ओर से कोई गंभीर प्रयास न होने के चलते, हिन्दुवादी ताकतों के द्वारा 20 करोड़ भारतीय मुसलमानों को हाशिये पर डालने की वजह से उनके दोयम दर्जे का हो जाने, जम्मू-कश्मीर राज्य की विशेष पहचान पर कपटपूर्ण हमलों तथा भारत में अतिराष्ट्रवाद के नाम पर असहिष्णुता व नफरत की बढ़ती हुई संस्कृति के खिलाफ मैंने अपने पद से इस्तीफा देने का फैसला किया है। इससे पहले सोमवार को उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृति के लिए अप्लाई किया था। उनके इस्तीफे की बात सामने आते ही अटकलों का बाजार गरम हो गया। आईएएस के एग्जाम में टॉप करने के बाद फैसल घाटी के उन युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए थे जो कंधो पर बंदूक उठाने की बजाय हाथ में कलम लेकर देश की सेवा करना चाहते थे। उम्मीद की जा रही थी कि जो युवा कश्मीर घाटी में आजादी की मांग को लेकर खूनखराबा कर रहे हैं वह फैसल की कामयाबी को देखकर अपने रुख में बदलाव लाएंगे और देश की मुख्य धारा से जुड़ने का प्रयास करेंगे। ऐसे में अब आठ साल की नौकरी के बाद शाह फैसल का इस्तीफा उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को बयान कर रहा है। उनके इस्तीफे की खबर सामने आते ही नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्लाह ने फैसल के राजनीति में आने का स्वागत किया। यहां तक चर्चा चली कि वह नेशनल कांफ्रेंस में शामिल होकर बारामूला से लोकसभा का चुनाव भी लड़ सकते हैं। फिलहाल उन्होंने इस विषय में कोई संकेत देने की बजाय घाटी के युवाओं और अपने समर्थकों से इस बारे में राय मांगी है। उनका कहना है कि उनका अगला कदम इस बात पर निर्भर करेगा कि कश्मीर के लोग खासकर युवा उनसे क्या चाहते हैं। उन्होंने कहा कि सरकारी सेवा छोड़ने के लिए उन्हें सराहना और आलोचना दोनों मिली हैं। उन्हें इसकी पूरी उम्मीद थी। युवाओं को अपने साथ जोड़ने की गरज से फैसल ने कहा कि यदि आप फेसबुक-ट्विटर से बाहर निकल कर श्रीनगर आते हैं तो हम साथ मिलकर विचार कर सकते हैं। राजनीति पर फैसला फेसबुक लाइक्स या कमेंट्स से नहीं बल्कि लोगों से मिलकर होगा। शाह फैसल के इस फैसले के सामने आते ही कांग्रेस नेता शशि थरूर ने टिप्पणी की कि उन्हें 2019 के लोकसभा चुनावों तक इंतजार करना चाहिए था। वहीं दूसरी ओर उन्हीं की पार्टी के एक अन्य नेता पी. चिदम्बरम ने फैसल के इस्तीफे को भाजपा सरकार के लिए कलंक बताते हुए कहा कि उनके इस कदम से दुनिया उनकी पीड़ा और आक्रोश पर ध्यान देगी। स्पष्ट है कि शाह फैसल का इस्तीफा अब राजनीतिक रूप लेने लगा है। उन जैसे युवाओं का राजनीति में आना अच्छी बात है लेकिन जिस तरह के आरोप सरकार पर लगाकर शाह फैसल कश्मीर की राजनीति में उतरने का प्रयास कर रहे हैं वह वाकई दुखद है। यह जितना देश के लिए दुखद साबित होगा उससे कहीं ज्यादा कश्मीर के लिए हो सकता है। क्योंकि उन्होंने जो आरोप लगाए हैं उनमें देश के बहुसंख्यक समुदाय के प्रति उनका अविश्वास झलकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि फैसल ने अपनी आईएएस की नौकरी के दौरान पूरे भारत को अच्छी तरह से देखा होगा। उन्हें बताना चाहिए था कि कहां-कहां हिन्दुवादी ताकतों ने मुसलमानों को हाशिये पर धकेला है। सच बात तो यह है कि कश्मीर घाटी में जैसा सलूक कश्मीरी पंडितों के साथ हुआ है वैसा पूरे देश में मुसलमानों के साथ कहीं नहीं हुआ। पूरे देश में हिन्दू-मुसलमान मिलजुल कर रह रहे हैं। यदि शाह फैसल राजनीति के माध्यम से कश्मीर और देश की सेवा करना चाहते हैं तो उनका स्वागत होना चाहिए लेकिन अपने इस्तीफे के समर्थन में उन्होंने जिस तरह के आरोप लगाए हैं उससे लगता है कि अपनी राजनीतिक महत्व आकांक्षाओं के चलते वह यह भी आसानी से भूल गए कि यह वही देश और वही लोग हैं जिन्होंने उनके टॉपर बनने पर कभी उन्हें सिर-माथे पर बिठाया था। कश्मीर को आज नफरत नहीं विकास की राजनीति की जरूरत है।

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