जातीय कटुता को कम करेगा आर्थिक आधार पर आरक्षण
बसंत कुमार
अभी पांच राज्यों के विधानसभा चुना सम्पन्न हुए और 15 वर्षों की एंटी इनकमबेंसी के कारण छत्तीसगढ़ में भाजपा हार गई और मध्यप्रदेश व राजस्थान में हम असेंबली बनी परन्तु कांग्रेस ने कर्नाटक की गति यहां भी जोड़-तोड़ की सरकार बना ली और यह प्रचारित किया जाने लगा कि इन राज्यों में बुरी तरह भाजपा पराजित हो गई क्योंकि सवर्ण मतदाता भाजपा से नाराज है जबकि ऐसा नहीं है। एससी/एसटी सेक्टर के पास होने से देश की 78 प्रतिशत जनसंख्या प्रभावित होने वाली थी तो फिर 12 प्रतिशत जनसंख्या वाले देश में 29.30 वर्ष पूर्व आया था।
जबसे मोदी सरकार ने अनारक्षित वर्ग के लिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को लिए आरक्षण का प्रावधान किया है तब से लगातार यह प्रचारित किया जा रहा है कि सरकार द्वारा वर्ष 2019 के चुनावों के मद्देनजर यह आरक्षण विल पास कराया गया है। जबकि वास्तविकता यह है कि वर्षों से लंबित मांग को पूरा करने का प्रयास किया। वर्षों से उपेक्षित गरीब सवर्ण समाज को अब समाज की मुख्यधारा में शामिल होने हेतु अकसर प्राप्त होगा। साथ ही साथ समाज के विभिन्न वर्गों में वर्षों से ब्याज कटता समाप्त करने का अवसर मिलेगा।
सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को जहां इस प्रावधान के द्वारा सरकार ने अकसर प्रदान किया है नहीं अनुसूचित जातियों अनुसूचित जनजातियों व अन्य पिछड़ा वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकार ने कोई अकसर प्रदान करने का प्रयास नहीं किया गया है यद्यपि इन वर्गों को सामाजिक व शौक्षिक रूप से पिछले होने के कारण वर्षों से आरक्षण मिला हुआ है परन्तु बन वर्गों के गरीबो को आरक्षण का लाभ लेने के लिए अपने ही समाज के उन बच्चों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है जिनके अभिभावक करोड़पति हैं, उच्च अधिकारी हैं सांसद या मंत्री हैं। यही कारण है कि दलितों एवं आदिवासियों के वे नवयुवक जिनके मां-बाप खेतों में हल चला रहे हैं, जमीदारों के यहां उटवारी कर रहे हैं 70 वर्ष का समय बीत जाने के पश्चात भी वही काम करने को मजबूर है जो उनके मां बाप सदियों से करते आ रहे हैं। आरक्षण या विकास की अन्य योजनाओं का लाभ उन तक नहीं पहुंच पाता। क्योंकि आरक्षण का प्रावधान होने के बावजूद उन्हें इन लोगों से कंपलीट करने को कहा जाता है जो माडर्न शिक्षा संस्थानों से पढ़ कर आ रहे। अत आरक्षित श्रेणी में क्रीमीलेयर के प्रावधान को जोड़ना पड़ेगा परन्तु त्रासदी यह है कि सभी राजनीतिक पार्टियां इस स्थिति को जानते हुए भी वोट बैंक की राजनीति के चलते आर्थिक रूप से कमजोर वंचित समाज के लोगों की सुरक्षा हेतु के लिए की पहल नहीं करती। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपनी राजनीतिक पारी में कई प्रकार के साहसिक फैसले लिए हैं जैसे सवर्णों व अन्य वर्गों को सर्वोच्य न्यायालय के फैसले के बावजूद पारित करवाया। उसी प्रकार वे राजनीतिक नफे नुकसान की परवाह किए बगैर जाति पर आधारित आरक्षण में भी आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों को रोकने का प्रावधान करे जिससे सुविधा सम्पन्न लोगों को रोकने का प्रावधान करे जिससे सुविधा सम्पन्न लोग 40 प्रतिशत अनारक्षित सीटों पर अपना दावा रखे चाहे वे किसी जाति या वर्ग के हैं। क्योंकि सम्पन्न व घनाढ्य वर्ग की कोई जाति नहीं होती क्योंकि धनाढ्य होने के पश्चात न ये दलित रहते हैं न आदिवासी। प्रमाण के तौर पर आप जितने भी अनुसूचित जाति व जनजाति के राष्ट्रीय नेता है व उच्च अधिकारी हैं रसोई में सवर्णों की भांति अछूत जातियों का घुसना भी वर्जित है फिर समाज के दबे कुचले वंचितों के उत्थान हेतु दिए गए आरक्षण में इनकी भागीदारी क्यों।
कुछ क्षेत्रीय राजनीतिक दल जातीय जनगणना के आधार पर आरक्षण की माग कर रहे हैं उनका नारा है जितनी जिसकी हिस्सेदारी उतनी उनकी भागीदारी। यह खतरनाक खेल सिर्प सरकारी नौकरियों में ही नहीं रहेगा बाद में यह भाग प्राकृतिक संसाधनो की उठेगी। अभी भी कही नकही यह मांग उठने लगी है कि मंदिर के पुजारी पीठों के शंकराचार्य जाति विशेष से क्यों। यहा योग्यता और मेरिट का रोना रोने वाले आगे क्यों नहीं आते। मुझे भय है कि सामाजिक न्याय के नाम पर जाति पांति, धर्म, सप्रदाय की इस लड़ाई में कहीं देश की अखंडता व एकता खतरे में न पड़ जाए। हमारे कानून निर्माताओं को संसद को इस विषय में सजग रहना होगा। क्योंकि प्रारंभ में आरक्षण का प्रावधान इन लोगों के उत्थान के लिए जिनका हजारों वर्षों से इस समाज में शोषण होता रहा है। कलांतर में मंडल आयोग की अनुशंसा को लागू करने पश्चात अति पिछड़ा वर्ग को मुख्य धारा में शामिल करने का प्रयास हुआ। परन्तु आज आरक्षण के नाम पर जातीय हिस्सेदारी व भागेदारी की बात चल रही है उसमे आरक्षण के मूल स्वरूप को ही बदल दिया है। अब यह न तो मेरिट का प्रश्न रह गया है और नहीं वंचितों, दबे, कुचलों को राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल करने का है रह गया है। मंडल कमीशन से पहले अति पिछड़ा वर्ग के लोग एससी/एसटी आरक्षण पर आपत्ति किया करते थे परन्तु 27 प्रतिशत आरक्षण हो जाने के पश्चात वे आरक्षण व्यवस्था के पोषक व समर्थक हो गए हैं। उसी प्रकार आर्थिक रूप से कमजोर अनारक्षित व सवर्ण समाज को एक ओर जहां विकास का अवसर मिलेगा और निस्संदेह उनके मन में अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के प्रति दुराभाव कम होगा और सरकारी कार्यालयों में कर्मचारियों में कोटे वाला और नॉन कोटे वाला नामक विभाजन हुआ करता था विभाजन ही नहीं इन दो समूहों में सदा नफरत देखी जाती रही इस आर्थिक आधार के आरक्षण से अब जातीय कटुता कम करने में मदद मिलेगी दूसरे शब्दों में एक कोटे वाला दूसरे कोटे वाले का दर्द समझेगा।
आर्थिक आधार पर दिया जाने वाला आरक्षण समाज में व्याप्त जातिगत कटुता को कम करेगा अब सरकारी कार्यालयों में बिगड़ने वाले काम या दुर्घटना आदि के लिए कोटे में आए कर्मचारियों को जिम्मेदार ठहराने की मनोवृत्ति से छुटकारा मिल सकेगा। परन्तु यह तभी संभव होगा जब 1991 की कांग्रेस सरकार द्वारा प्रारंभ की गई आउटसोर्सिंग या ठेके पर कर्मचारी रखे जानी वाली प्रथा को समाप्त कर ईमानदारी से चयन आयोगों द्वारा सभी वर्गों के भरा जाए जिससे संविधान द्वारा प्रदत्त सभी वर्गों के आरक्षण को पूरा किया जा सके। अपने इस साहसिक निर्णय के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का समर्थन किया जाना चाहिए।